तप की देवी ‘मां ब्रह्मचारिणी’ देती है तपस्या का फल

-चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन होती है ‘मां ब्रह्मचारिणी’ का पूजन
नवरात्र के नौ दिन माता दुर्गा के नौ रुपों के पूजन का विधान है। चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन तप की देवी, तपस्या का फल देने वाली ‘मां ब्रह्मचारिणी’ का पूजन किया जाता है। मां के इस रुप के किस विधि से पूजन किया जाना चाहिए। कौन से मंत्रोचारण करने से माता प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं।

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कौन है ‘मां ब्रह्मचारिणी’
मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा रुप ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का असल अर्थ तपस्या होता है। मां दुर्गा का यह रुप भक्तों को उनकी तपस्या का फल देने वाला है। माता की पूजा अर्चना करने से इंसान के भीतर त्याग, सदाचार, प्रेम और संयम की भावना का समावेष होता है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली होता है। ‘मां ब्रह्मचारिणी’ के इस रुप में माता अपने दाएं हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में एक कमंडल धारण किए रहती हैं। पुराणों में वर्णित है कि पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था। और नारदजी के उपदेश से देवों के देव भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इस रुप में माता ने घोर तपस्या की थी। कठिन तपस्या के चलते ही इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम पुकार गया। इस रुप में माता एक हजार साल तक केवल फल खाकर बिताए। लंबे समय तक कठिन उपवास रख, खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के कष्ट भी सहे। कहा जाता है कि माता ने तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खा कर भगवान शंकर की आराधना की। इसके बाद न्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम भी पड़ गया।
मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज तीनों लोको को उजागर करने लगा। तब देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व बताते कहा कि हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी। भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। इस कथा का सार यह है कि इंसान को जीवन के कठिन समय में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।

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मां ब्रह्मचारिणी के पूजन की विधि
नवरात्रि के पहले दिन जिन देवी, देवताओं की स्तुति कर कलश की स्थापना की थी। उस कलश की फूल, अक्षत, रोली, चंदन से पूजा करें। दूध, दही, शर्करा, घी और शहद से आराध्य को स्नान कराते हुए, देवी को कुछ प्रसाद अर्पित करें। प्रसाद अर्पण करने के बाद आचमन करते हुए पान, सुपारी भेंट करें। कलश देवता की पूजा के साथ नवग्रह, सभी दिशाओं, नगर देवता औऱ ग्राम देवता की पूजा करें। इस विधि विधान के बाद मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। देवी की पूजा करते समय अपने हाथों में फूल लेकर प्रार्थना करें। माता को कमल बेहद पसंद होने के कारण उन्हें कमल की माला पहनाएं।

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मां ब्रह्मचारिणी का स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभू‍तेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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प्रदीप शाही

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