जानिए ‘पंचामृत’ बनाने की पूरी विधि…इसके सेवन से कई रोगों से मिलेगी मुक्ति

मंदिर हमारी आस्था और श्रद्धा का केन्द्र हैं। मंदिर में प्रयूक्त होने वाली प्रत्येक वस्तु व पदार्थ का विशेष महत्व है। चाहे वह पूजा सामग्री हो, हवन सामग्री हो या फिर प्रसाद हो यह सब अपना खास महत्व रखते हैं। मंदिर में प्रसाद के रूप में कई वस्तुएं व पदार्थ आराध्य देव या देवी को चढ़ाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। तथा इन्हीं वस्तुओं को प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा भी जाता है। प्रसाद में मुख्य रूप से मिठाई, हलवा, फल, नारियल आदि बांटे जाते हैं।  

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मंदिर में इन वस्तुओं के अलावा चरणामृत और पंचामृत भी दिया जाता है। भक्त चरणामृत और पंचामृत को पूरी श्रद्धा से ग्रहण करते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को चरणामृत व पंचामृत के महत्व व महिमा और इसे बनाने की प्रक्रिया व विधि के बारे में जानकारी होगी।

चरणामृत या पंचामृत का अर्थ

चरणामृत का अर्थ है भगवान के चरणों का अमृत और पंचामृत का अर्थ है पांच पवित्र पदार्थों से बना हुआ अमृत। चरणामृत या पंचामृत को ग्रहण करने यानि पीने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है जिससे सकारात्मक भाव पैदा होते हैं। साथ ही इनके सेवन से कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं।

क्या है पंचामृत

पंचामृत पावन माने जाने वाले पांच पदार्थों का मिश्रण होता है। इसमें मुख्य रूप से  दूध, दही, घी, शहद, शकर को मिलाया जाता है। इन पांच तत्वों से बनने वाला पंचामृत सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने के साथ-साथ मन को शांति प्रदान करता है और कई रोगों से भी बचाव करता है। जिन पदार्थों से पंचामृत का निर्माण किया जाता है वह आत्मोन्नति और मन की शांति के प्रतीक माने जाते हैं। पंचामृत से भगवान का अभिषेक किया जाता है और पंचामृत को प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा भी जाता है।

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पंचामृत बनाने की विधि

एक बर्तन में गाय का दूध और दही डालकर अच्छे से मिला लें जब यह दोनों पदार्थ अच्छी तरह से मिक्स हो जाएं तो इसमें घी और शहद डालकर मिलाएं। इसके बाद इस मिश्रण में शक्कर डालकर अच्छी तरह से घोल लें। इसके अलावा इसमें तुलसी के कुछ पत्ते भी डाल सकते हैं।

 दूध

दूध पंचामृत का प्रमुख अंग है। इसे स्वच्छता व शुभता का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि मनुष्य का जीवन भी दूध की तरह ही निष्कलंक और स्वच्छ होना चाहिए। इसी लिए दूध को पावन और पवित्र मानते हुए ईश्वर का स्वरूप मंदिर में स्थापित मूर्तियों को दूध से स्नान करवाया जाता है। शास्त्रों में भी दूध को एक प्रकार का अमृत बताया गया है। खासकर गाय के दूध को अमृत समान माना जाता है।

दही

दही का निर्माण भी दूध से ही किया जाता है इस लिए दही को भी दूध की तरह ही शुभ माना जाता है। दही का मुख्य गुण यह होता है कि दूध को भी अपने जैसा बना लेता है। भगवान को दही चढ़ाने का भी यही अर्थ है कि पहले मानव निष्कलंक होकर सद्गुणों को अपने में आत्मसात करे और इसके बाद दूसरे लोगों को भी अपने जैसा बनाए या अपने जैसा बनने के लिए प्रेरित करे। मानव शरीर के लिए दही को भी अमृत माना गया है इसी लिए पंचामृत में दही का प्रयोग भी एक अमृत के रूप में किया जाता है। किसी शुभ कार्य के लिये घर से बाहर निकलते समय भी दही का सेवन किया जाता है।

घी

दही की तरह ही घी का निर्माण भी दूध से ही किया जाता है। गाय के दूध से बने घी को स्वच्छ, शुभ और अमृत के समान माना जाता है। घी समर्पण और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। मंदिर में पूजा के दौरान शुद्ध घी का दीपक जलाया जाता है।  इस लिए घी का प्रयोग भी पंचामृत बनाते समय किया जाता है।

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शहद

पंचामृत में शहद का प्रयोग भी किया जाता है। स्वाद में मीठा होने के साथ-साथ शहद स्वास्थ्य वर्धक भी होता है। मानव शरीर के लिए शहद अमृत समान है। इस लिए शहद को पंचामृत में मिलाया जाता है।

शक्कर

शक्कर पंचामृत का अभिन्न अंग है। शक्कर का स्वाद मीठा होता है। शक्कर मधुरता, खुशी व सद्भावना का प्रतीक है। शक्कर के स्थान पर मिश्री का प्रयोग भी किया जा सकता है। पंचामृत में शामिल पदार्थों में पाए जाने वाले गुणों को अगर इंसान अपने जीवन में भी आत्मसात व धारण करे तो वह अपने जीवन में सफल हो सकता है। 

पंचामृत के लाभ

आयुर्वेद के अनुसार पंचामृत शीतल, बलवर्धक, पौष्टिक, कफनाशक और पाचक तत्वों से भरपूर होता है। पंचामृत में दूध, दही और घी का इस्तेमाल किया जाता है इस लिए पंचामृत में कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो हड्डियों को मजबूत करता है। पंचामृत का सेवन करने से दिमाग शांत रहता है और भूख भी बढ़ती है। इसके नियमित सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है और हर प्रकार के संक्रमण से बचाव होता है। पंचामृत का प्रयोग करने से त्वचा संबंधी समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है। पंचामृत में तुलसी के पत्ते डालकर सेवन करने से कैंसर, हार्ट अटैक, कब्ज और ब्लड प्रेशर आदि समस्याओं से बचा जा सकता है।

धर्मेन्द्र संधू

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