जानिए क्यों दिन में दो बार गायब हो जाता है यह अदभुत शिवलिंग…!

पूरे देश में भगवान भोलेनाथ से संबंधित मंदिर मौजूद हैं। इन मंदिरों में मुख्य रूप से स्थापित शिवलिंगों की पूजा अर्चना की जाती है। कुछ स्थानों पर ऐसे रहस्यमयी व चमत्कारिक शिवलिंग स्थापित हैं जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए रहस्य बने हुए हैं। कहीं पर अदभुत शिवलिंग खंडित होने के बाद रहस्यमयी ढंग से अपने आप जुड़ जाता है तो कहीं पर स्थापित शिवलिंग दिन में कई बार अपना रंग बदलता है। आज हम आपको एक ऐसे ही अदभुत शिवलिंग के बारे में बताने जा रहे हैं जो दिन में दो बार यानि एक बार सुबह और एक बार शाम को भक्तों की आंखों से ओझल हो जाता है।

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इस स्थान को ‘स्तंभेश्वर महादेव’ के नाम से जाना जाता है। यह अदभुत मंदिर गुजरात के वडोदरा से 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जंबूसर तहसील के गांव कावी-कंबोई में स्थित है। इस अदभुत मंदिर का उल्लेख शिवपुराण में भी मिलता है। शिव पुराण में रुद्र संहिता भाग-दो , अध्याय 11 में स्तंभेश्वर महादेव का उल्लेख किया गया है।  कहा जाता है कि इस मंदिर की खोज लगभग 150 साल पहले हुई थी। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की ऊंचाई 4 फीट और व्यास तकरीबन दो फीट का है। यह अदभुत शिवलिंग अरब सागर के किनारे पर स्थित है।

दिन में दो बार क्यों गायब होता है यह शिवलिंग

यह मंदिर समुद्र के किनारे पर स्थापित है। इस शिवलिंग के आंखों से ओझल होने का कारण समुद्र में आने वाला ज्वारभाटा है। ज्वारभाटा उठने के कारण यह शिवलिंग समुद्र के पानी में समा जाता है और ज्वारभाटा उतरते ही श्रद्धालु इस शिवलिंग के दर्शन करते हैं। इस स्थान पर आने वाले श्रद्धालुओं को पर्चे बांटे जाते हैं। इन पर्चों पर ज्वारभाटा आने का समय लिखा होता है। यह पर्चे बांटने का मुख्य कारण दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं को किसी भी तरह की परेशानी से बचाना है।

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ज्वारभाटा आने के कारण मंदिर में पूरी तरह से जलभराव हो जाता  है। इस दौरान किसी को भी मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता ।

भगवान कार्तिकेय से जुड़ा है मंदिर का इतिहास

पौराणिक मान्यता के अनुसार राक्षस ताड़कासुर ने कठोर तप करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इसके उपरांत भगवान शिव ने ताड़कासुर को दर्शन दिए तब ताड़कासुर से भगवान शिव से वरदान मांगा कि उसे केवल भगवान शिव का पुत्र ही मार सकेगा वह भी मात्र छह दिन की उम्र का। भगवान शिव ने ताड़कासुर को यह वरदान दे दिया। वरदान पाते ही उस राक्षस ने देवताओं और ऋषि-मुनियों को आतंकित करते हुए हाहाकार मचा दिया। ताड़कासुर के अत्याचारों से तंग आकर देवता भगवान शिव के पास पहुंचे तो श्वेत पर्वत के कुंड में उत्पन्न हुए भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने केवल छह दिन की उम्र में ही ताड़कासुर का वध कर दिया। वध के बाद यह पता चलने पर कि ताड़कासुर भगवान शिव का परम भक्त था तो भगवान कार्तिकेय काफी दुखी हुए। उनको इस दुख से उभारने के लिए भगवान विष्णु ने भगवान कार्तिकेय को ताड़कासुर के वध वाले स्थान पर शिवालय बनवाने को कहा। बाद में देवताओं ने मिलकर महिसागर संगम पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की और इस स्थापित स्तंभ में भगवान शिव स्वयं बिराजमान हुए। खास बात यह है कि इस स्थान पर महिसागर नदी का सागर के साथ संगम होता है। इसी स्थान को आज स्तंभेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

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देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु समुद्र द्वारा स्तंभेश्वर महादेव के जलाभिषेक का अदभुत और प्रभावशाली दृश्य देखने के लिए आते हैं। स्तंभेश्वर महादेव पर प्रत्येक अमावस्या और महाशिवरात्रि को मेला लगता है। साथ ही प्रदोष , एकादशी और पूर्णिमा को पूरी रात इस स्थान पर पूजा-अर्चना होती है।

धर्मेन्द्र संधू

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