देवों के देव महादेव भगवान शिव के प्रति भारतीय जनमानस में अपार श्रद्धा है। भगवान शिव का पूजन शिवलिंग के रूप में किया जाता है। पूरे भारत में भगवान शिव से संबंधित प्राचीन व अदभुत मंदिर स्थित हैं। इन मंदिरों में रहस्यमयी शिवलिंग स्थापित हैं। प्रत्येक शिवलिंग का अपना इतिहास है। आज हम आपको एक ऐसे चमत्कारिक शिवलिंग के बारे में जानकारी देंगे जिसमें एक लाख छिद्र हैं। मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना भगवान लक्ष्मण ने स्वयं की थी। यह स्थान लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात है।
इसे भी पढ़ें…यहां होते हैं भगवान शिव के त्रिशूल के अंश के साक्षात दर्शन….
लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर
लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर की दूरी पर खरौद नगर में स्थित है। मान्यता है कि इस स्थान पर भगवन राम ने खर व दूषण का वध किया था इसलिए इस स्थान को खरौद के नाम से जाना जाता है। खरौद नगर में कई प्राचीन मंदिर स्थित हैं इसी कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है। यह मंदिर शिवरीनारायण से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
भगवान राम ने की थी मंदिर की स्थापना
मान्यता है कि लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना भगवान राम ने की थी। खर और दूषण के वध के बाद लक्ष्मण के कहने पर भगवान राम ने इस मंदिर की स्थापना की थी। यह शिवलिंग यानि लक्षलिंग जमीन से तकरीबन 30 फीट ऊपर है। इस शिवलिंग को स्वयंभू लिंग भी माना जाता है।
इसे भी पढ़ें…अद्भुत..! इस मंदिर में मौजूद है 200 ग्राम का गेहूं का दाना
गर्भगृह में स्थापित है लक्षलिंग
लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग स्थापित है मान्यता है कि इस अदभुत शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवान राम ने की थी। इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र हैं इसलिए इस शिवलिंग को लक्षलिंग कहा जाता है। संस्कृत में लाख को लक्ष कहा जाता है इसलिए इस शिवलिंग का दूसरा नाम लक्षलिंग भी है। इन एक लाख छिद्रों में से एक छिद्र ऐसा भी है जिसे पातालगामी कहा जाता है इसके पीछे कारण यह है कि उस छिद्र में जितना भी जल डाला जाता है वह सारा जल उस छिद्र में समा जाता है। इस रहस्यमयी शिवलिंग में एक छिद्र अक्षय कुण्ड है जिसमें हर समय जल भरा रहता है। यह भी मान्यता है कि लक्षलिंग पर चढ़ाया गया जल मंदिर के पीछे स्थित कुण्ड में चला जाता है क्योंकि यह कुण्ड कभी भी नहीं सूखता।
मंदिर से जुड़ी प्राचीन कथा
कहा जाता है कि भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को रावण का वध करने पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए वह रामेश्वर में शिवलिंग की स्थापना कर पूजा करना चाहते है। इस के लिए लक्ष्मण जी को सभी प्रमुख तीर्थों से जल लेकर आने का कार्य दिया गया था। लेकिन जब लक्ष्मण जी गुप्त तीर्थ शिवरीनारायण से जल लेकर वापिस लौट रहे थे तो वह बीमार हो गए। इसके उपरांत उन्होंने भगवान राम के पास पहुंचकर शिवलिंग स्थापित करके भगवान शिव की आराधना की। इस से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। इसके बाद यह स्थान लक्ष्मणेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
राजा खड्गदेव ने करवाया था मंदिर का जीर्णोद्धार
राजा खड्गदेव ने बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। कहा जाता है कि लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी में हुआ था। मंदिर के बाहर राजा खड्गदेव और उनकी पत्नी की हाथ जोड़े हुए मूर्ति भी स्थापित है।
इसे भी पढ़ें…क्या आप जानते हैं भगवान शिव के थे छह पुत्र ?
मंदिर में मौजूद हैं प्राचीन शिलालेख
लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर पश्चिम दिशा में स्थित है। मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही सभा मंडप बना हुआ है। इसके दक्षिण तथा वाम भाग में दीवार पर एक-एक शिलालेख देखने को मिलता है। दक्षिण भाग में मौजूद शिलालेख की भाषा अस्पष्ट है। दूसरे शिलालेख की भाषा संस्कृत है। इस पर 44 श्लोक लिखे हैं। इस शिलालेख में उल्लेख किया गया है कि चन्द्रवंशी हैहयवंश में रत्नपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इन्होंने अनेक मंदिरों, मठों और तालाबों का निर्माण करवाया। रत्नदेव तृतीय की राल्हा और पद्मा नामक दो रानियाँ थीं। पद्मा के घर खड्गदेव का जन्म हुआ। जो बाद में रत्नपुर के राजा बने। राजा खड्गदेव ने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इस शिलालेख के अनुसार आठवीं शताब्दी तक लक्ष्मणेश्वर मंदिर का निर्माण हो चुका था जिसके बाद इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। इसी तथ्य को आधार मानते हुए कुछ विद्वान लक्ष्मणेश्वर मंदिर को छठी शताब्दी का मानते हैं।
लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर में श्रावण महीने के सोमवार और शिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने और आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं।