भारतीय संस्कृति की पहचान माने जाने वाले कई प्राचीन मंदिर पूरे भारत में मौजूद हैं। यह मंदिर भारतीय संस्कृति, भारतीय सभ्यता और आध्यात्म का जीता जागता प्रमाण हैं। आपने अकसर भगवान शिव से संबंधित मंदिरों में शिवलिंग के दर्शन किए होंगे। यह शिवलिंग विभिन्न प्रकार व आकार के होते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे प्राचीन व अदभुत मंदिर के बारे बताएंगे जिसमें एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। इस अदभुत शिवलिंग से जुड़ी खास बात यह है कि इस विशाल शिवलिंग का निर्माण एक ही पत्थर को तराश कर किया गया है। इस शिवलिंग की एक और बड़ी विशेषता यह है कि यह एक ही पत्थर से निर्मित विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग है।
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भोजेश्वर मंदिर
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के भोजपुर में स्थित है ‘भोजेश्वर शिव मंदिर’ के नाम से विख्यात अधूरा शिव मंदिर। भोपाल से भोजपुर 32 किलो मीटर की दूरी पर स्थ्ति है। इस प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण परमार वंश के राजा भोज द्वारा 1010 ई और 1055 ई के मध्य करवाया गया था। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर में मौजूद एक शिलालेख पर राजा भोज का नाम भी अंकित है।
एक ही पत्थर से निर्मित विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग
इस मंदिर में स्थापित विशाल शिवलिंग का निर्माण एक ही पत्थर को तराशकर किया गया है। साथ ही यह शिवलिंग एक ही पत्थर से निर्मित विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग भी है। इस विशाल व अदभुत शिवलिंग की कुल लम्बाई 5.5 मीटर यानि 18 फीट , व्यास 2.3 मीटर यानि 7.5 फीट है और अकेले लिंग कि लम्बाई 3.85 मीटर यानि 12 फीट है।
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ढलान के द्वारा लाया गया था विशाल पत्थर
प्राचीन भोजेश्वर मंदिर के पिछले भाग में एक ढलान बनी हुई है। इस ढलान के रास्ते से ही मंदिर के निर्माण के दौरान विशाल व भारी भरकम पत्थरों को इस स्थान तक लाया जाता था। यह ढलान प्राचीन भवन निर्माण तकनीक का जीता जागता प्रमाण है। माना जाता है कि यह पूरी दुनिया की पहली तकनीक है जिसका प्रयोग भारी सामान व पत्थरों को ऊपर लेजाने के लिए किया गया है। पूरे विश्व में कहीं भी ऐसी तकनीक के प्रमाण नहीं मिलते। इस ढलान से यह राज़ खुल गया है कि किस तरह भारी भरकम विशाल पत्थरों को मंदिर के निर्माण स्थल तक पहुंचाया गया होगा।
मंदिर का निर्माण है अधूरा
प्राचीन भोजेश्वर मंदिर का निर्माण कार्य अभी भी अधूरा है। यह निर्माण कार्य क्यों अधूरा छोड़ा गया इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता लेकिन माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कार्य एक ही रात में पूरा होना था। लेकिन छत का काम पूरा होने से पहले ही सुबह होने के चलते यह निर्माण कार्य अधूरा छूट गया।
चार स्तम्भों पर टिकी है मंदिर की अधूरी छत
प्राचीन भोजेश्वर मंदिर की अधूरी छत 40 फीट की ऊंचाई वाले चार स्तम्भों पर टिकी हुई है। कहा जाता है कि भोजेश्वर मंदिर के चबूतरे पर ही मंदिर के अन्य हिस्सों, जैसे मंडप, महामंडप आदि का निर्माण करने की योजना बनाई गई थी लेकिन यह निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका। इस योजना के प्रमाण मंदिर के नज़दीक मौजूद पत्थरों पर बने हुए नक्शों से प्राप्त होते हैं।
इस्लाम धर्म के आगमन के पहले हुआ था मंदिर का निर्माण
इस मंदिर का निर्माण भारत में इस्लाम धर्म के आगमन के पहले हुआ माना जाता है । भोजेश्वर मंदिर की गुम्बदाकार छत अधूरी है जो इस मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बनी हुई है। यह अधूरी गुम्बदाकार छत इस बात का प्रमाण है कि भारत में इस्लाम धर्म के आने से पहले ही गुम्बद निर्माण का प्रचलन था। कुछ विद्धानों का मानना है कि यह प्राचीन मंदिर भारत में सबसे पहली गुम्बदीय छत वाली इमारत या मंदिर है।
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महाशिवरात्रि पर होता है ‘भोजपुर महोत्सव’
प्राचीन भोजेश्वर मंदिर में साल में दो बड़े मेलों का आयोजन होता है। एक मेला मकर संक्रांति और दूसरा मेला महाशिवरात्रि के अवसर पर लगता है। खासकर महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर तीन दिवसीय ‘भोजपुर महोत्सव’ का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में देश–विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
मंदिर के पास स्थित है पार्वती गुफा
प्राचीन भोजेश्वर शिव मंदिर के पास ही एक प्राचीन गुफा भी मौजूद है। इसे पार्वती गुफा कहा जाता है। यह गुफा ठीक मंदिर के सामने पश्चिम दिशा में स्थित है। इस गुफा में प्राचीन मूर्तियां संभालकर रखी गई हैं।
कैसे पहुंचें
भोपाल से भोजपुर 32 किलो मीटर की दूरी पर स्थ्ति है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए भोपाल में राजा भोज एयरपोर्ट नज़दीकी एयर पोर्ट है। भोपाल रेलवे स्टेशन से व बस स्टैंड से टैक्सी द्वारा भी मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
धर्मेन्द्र संधू