चंडीगढ़, 28 अगस्त:
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने पुन: मरम्मत किए गए जलियांवाला बाग़ स्मारक को महान शहीदों को श्रद्धाँजलि और नौजवानों के लिए प्रेरणा का प्रतीक करार देते हुए कहा कि यह स्मारक हमारी भावी पीढिय़ों को लोकतांत्रिक ढंग से शांतमयी रोष प्रकट करने के लोगों के अधिकार के बारे में याद करवाता रहेगा।
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शांतिपूर्ण ढग़ से संघर्षशील किसानों के चल रहे आंदोलन का स्पष्ट रूप में जि़क्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इस स्मारक के साथ-साथ राज्य सरकार द्वारा हाल ही में लोगों को समर्पित की गई जलियंवाला बाग़ शताब्दी स्मारक को हमारे नेताओं को यह याद दिलाना चाहिए कि शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक ढंग से रोष प्रकट करना भारतीयों का अटूट अधिकार है, जिसको कुचला नहीं जा सकता क्योंकि अंग्रेजों ने भी जलियांवाला बाग़ की घटना से सबक सीखा था।
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प्रधानमंत्री द्वारा जलियांवाला बाग़ राष्ट्रीय यादगार (स्मारक) को रिमोट के द्वारा राष्ट्र को समर्पित करने से पहले अपने संक्षिप्त भाषण में मुख्यमंत्री ने कहा कि यह स्मारक और राज्य सरकार द्वारा स्थापित की गई शताब्दी यादगार हमारे महान शहीदों को श्रद्धाँजलि देने की विनम्र कोशिश है, जिससे इतिहास हमेशा उनके बलिदानों को याद रखे और हमारी वर्तमान एवं भावी पीढिय़ाँ उनकी देशभक्ति से प्रेरणा ले सकती हैं।
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कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि भारत सरकार को अपना प्रभाव इस्तेमाल कर शहीद उधम सिंह जिन्होंने इस हत्याकांड की बेइन्साफ़ी का बदला लिया था, के पिस्तौल और निजी डायरी जैसी निशानियों को यू.के. से भारत लाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने बताया कि वह इस सम्बन्ध में पहले ही केंद्रीय विदेश मामलों संबंधी मंत्री डॉ. जयशंकर को पत्र लिख चुके हैं।
इस समागम में कई केंद्रीय मंत्री, पंजाब के राज्यपाल, विरोधी पक्ष के नेता और जलियांवाला बाग़ के ट्रस्टी के अलावा कुछ सांसदों और विधायकों ने भी शिरकत की। जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के शहीदों के परिवार भी उपस्थित थे।
जलियांवाला बाग़ स्मारक को भारत की आज़ादी के लिए अहिंसक और शांतमयी संघर्ष का शाश्वत प्रतीक करार देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘‘दूसरी ओर यह शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित हुए लोगों के खि़लाफ़ हिंसा और स्टेट के सबसे बर्बर कृत्यों में से सबसे घिनौनी कार्यवाही की गवाही देता है।’’
उन्होंने कहा कि 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के मौके पर सैंकड़ों निर्दोष लोगों की हत्या ने न सिफऱ् देश बल्कि समूचे विश्व की अंतरात्मा को हिलाकर रख दिया था। उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध पंजाबी कवि नानक सिंह, जो इस शौर्यगाथा में खुशकिस्मती से बच गया था, के मुताबिक यह ‘‘खूनी बैसाखी’’ बर्तानवी साम्राज्य की ताबूत में आखिरी कील साबित हुई थी। मुख्यमंत्री ने कहा इस अमानवीय कृत के रोष में गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर ने ‘नाइटहुड’ की उपाधि वापस कर दी थी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जलियांवाला बाग़, पवित्र नगरी में आने वाले लाखों सैलानियों और श्रद्धालुओं के लिए अमृतसर की ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। उन्होंने इस बात पर खुशी ज़ाहिर की कि जब देश इस दुखांत की शताब्दी मना रहा है, सभ्याचार मंत्रालय ने इस स्मारक के नवीनीकरण के लिए बड़े स्तर पर कार्य किए हैं और इसको और ज्यादा प्रौद्यौगिकी-आधारित रूप दिया है, जिसमें साउंड एंड लाईट शो शामिल है जिससे और अधिक लोग आकर्षित होंगे।
यह याद करते हुए कि इस पवित्र स्मारक की कहानी दुखांत के बाद शुरू हुई थी, जब 1920 में इस स्थान पर स्मारक बनाने का प्रस्ताव पास किया गया था और फिर ट्रस्टी द्वारा ज़मीन खऱीदी गई थी, मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत की आज़ादी के बाद 1951 में सरकार ने इसको ‘‘राष्ट्रीय स्मारक’’ घोषित कर दिया।
कैप्टन अमरिन्दर ने कहा कि राज्य सरकार ने इस दुखांत की शताब्दी को मनाने के हिस्से के तौर पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए हाल ही में 14 अगस्त, 2021 को अमृतसर में एक अलग स्थान पर जलियांवाला बाग़ शताब्दी स्मारक समर्पित किया था। उन्होंने बताया कि इस स्मारक पर रिकॉर्ड के अनुसार उपलब्ध सभी 488 शहीदों के नाम उकेरे गए हैं। उन्होंने आगे बताया कि उनकी सरकार ने गुरू नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर की एक विशेष अनुसंधान टीम भी गठित की थी, जिससे उन शहीदों के लापता नामों का पता लगाया जा सके जिनको इस स्मारक पर दिखाए जाने की ज़रूरत है, जिसके लिए अपेक्षित जगह छोड़ी गई है।
-Nav Gill