-क्या सनातन धर्म की जर्मनी तक फैली हुई थी जड़ें ???
विश्व में सनातन धर्म को सबसे पुरातन माना गया। सनातन धर्म से संबंधित वेद. पुराण, उप-पुराण, श्री रामायण, श्री मद्भगवत गीता को मानव सभ्यता की आधारशिला कहा गया है। इन सभी पावन ग्रंथों में संस्कृत भाषा में ब्रह्रामांड के समूचे ज्ञान के अलावा नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्पराओं, विज्ञान के बारे विस्तार से जानकारी संग्रहित है। जर्मनी में भगवान नृसिंह की 32 हजार साल पुरानी प्रतिमा का मिलना सनातन धर्म के पुरातन होने की प्रमाणिकता की पुष्टि करता है। आईए आपको बताएं कि जर्मनी में भगवान विष्णू जी के अवतार भगवान नृसिंह की विशाल प्रतिमा के बारे रोचक तथ्य…
क्या जर्मनी तक फैली थी सनातन धर्म की जड़ें…
जर्मनी में आज से 79 साल पहले (वर्ष 1039) में एक गुफा में नृसिंह भगवान की 32 हजार साल पुरानी मूर्ति को ढूंड निकाला गया था। दूसरे विश्वयुद्ध के चलते इस प्रतिमा के बारे लोगों को सही जानकारी नहीं मिल सकी। इस गुफा में से कई जीवों के अवशेष और लोगों के कंकाल भी मिले थे। मूर्ति गुफा के मुख से 20 मीटर अंदर और जमीन में करीब 1.2 मीटर गहराई पर मिली थी। वर्ष 1998 में पुरातत्व विभाग से संबंधित वैज्ञानिकों ने इस खंडित मूर्ति के टुकड़ों को एक-एक करके जोड़ा। तो यह प्रतिमा भगवान विष्णू के अवतार भगवान नृसिंह के रूप में सामने आई। जिस गुफा से यह प्रतिमा मिली, वहां पर दिन और रात्रि का मिलन होता है। इस 20 मीटर लंबी गुफा में रोशनी की आखिरी किरण भी पड़ती है। हमारे पुराणों में यह वर्णित है कि हिरणकश्यप को मारने के लिए जब भगवान नृसिंह ने वक्त चुना था। उस समय रात और दिन का मिलन हो रहा था। इस मूर्ति के मिलने के बाद इतिहासकार यह सोचने पर मजबूर हो चुके हैं कि आखिर सनातम हिंदू धर्म कितना पुराना है। भगवान नृसिंह की प्राचीन मूर्ति का एशिया में न मिलकर यूरोप में जर्मनी की एक गुफा में पाया जाना हैरानीजनक है।
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भगवान नृसिंह ने की थी अपने भक्त की रक्षा
पौराणिक कथा अनुसार भगवान विष्णू ने अपने भक्त की रक्षा के लिए भगवान नृसिंह का अवतार लिया था। नृसिंह का असल में अर्थ आधा शेर और आधा मनुष्य। वेदो और शास्त्रों में भगवान नृसिंह से जुड़ी कथा वर्णित है। राजा कश्यप के पुत्र हिरण्य कश्यप द्वारा अपने ही पुत्र और भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को मारने के प्रयास के दौरान भगवान नृसिंह खंभा फाड़कर निकले थे। इसके बाद उन्होंने हिरण्य कश्यप को अपनी जांघ पर लिटा कर अपने नाखुनों से उसका पेट फाड़कर मार दिया था। जब हिरण्य कश्यप को मारा गया था, उस समय रात और दिन का मिलन हो रहा था।
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यूपी में भी भगवान नृसिंह की विशाल प्रतिमा
देश-दुनिया में ऐसी कई प्रतिमाएं हैं जो अपने आम में कई रहस्य छिपाए हुए हैं। जर्मनी से मिली प्राचीन भगवान नृसिंह की प्रतिमा के अलावा उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के गांव दुधई में भी भगवान नृसिंह की एक 35 फीट ऊंची प्रतिमा विद्यमान है। इस प्रतिमा को चट्टान को काटकर बनाया गया है। प्रतिमा का मुख शेर और शरीर मनुष्य के रूप में दर्शाया गया है। इस प्रतिमा में भगवान नृसिंह हिरण्य कश्यप को मारते नजर आते हैं। इस प्रतिमा को कब और किसने बनाया। इस बारे कोई जानकारी नहीं है। इस प्रतिमा के आसपास गुप्त कालीन कई मंदिर और मूर्तियां भी हैं। गौर हो गुप्त काल में भगवान विष्णू जी की पूजा अर्चना की जाती थी।
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भगवान नृसिंह हैं उत्तराखंड के कुल देवता
उत्तराखंड के अलग-अलग जिलों में कई मंदिर है। गांव दुधई में भगवान नृसिंह का मंदिर खास तौर से हमेशा से सुर्खियों में रहा है। पौराणिक मान्यता अनुसार आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने श्रृष्टि की रचना और देव उत्पत्ति के बारे में लोगों को जानकारी दी थी। शायद उक्त प्रतिमा उन्होंने ही स्थापित की होगी।
प्रतिमा में आ रहे अविश्वसनीय बदलाव
केदारखंड के सनत कुमार संहिता अनुसार जब भगवान नृसिंह की मूर्ति से उनका हाथ टूट कर गिर जाएगा। उस दिन विष्णू प्रयाग के समीप पटमिला नामक स्थान पर जय व विजय नाम के पहाड़ आपस में मिल जाएंगे। इसके बाद बद्रीनाथ के दर्शन नहीं हो पाएंगे। अब इस मूर्ति में कई आश्चर्य चकित करने वाले बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इस प्रतिमा की दाहिनी बाजू पतली है। जो धीरे-धीरे पहले से अधिक पतली होती जा रही है।
प्रदीप शाही