ग्रह, नक्षत्रों के परिवर्तन से घटता, बढ़ता है अर्ध-नारीश्वर शिव लिंग

काठगढ़ महादेव मंदिर में अर्ध-नारीश्वर रुप में विद्यमान है भोले बाबा

भारत में हिमाचल प्रदेश को देवों की तपो भूमि या देव भूमि के नाम से भी पुकारा जाता है। इस धरती पर जगह-जगह पर देवी देवताओं का वास है। धार्मिक दृष्टि से शिव ही इस धरती का शुभारंभ और अंत है। या यूं कहें कि यह समूचा ब्राह्मांड शिव ही है। धरती पर जगह-जगह पर शिवालय की मौजूदगी शिव की महिमा का बखान करती है। देवभूमि पर ही एक एेसा रहस्यमयी अर्ध-नारीश्वर शिव लिंग काठगढ़ महादेव मंदिर में है। ग्रह, नक्षत्रों के परिवर्तन से आकार लेने वाले दो भागों में विभाजित शिवलिंग का गर्मियों में अलग होना व सर्दियों में एक होना सदियों से एक रहस्य है। जो इंसान की समझ ही नहीं साइंस की समझ से भी परे है। शिव और शक्ति के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप का शिव रात्रि के दिन इस श्री संगम के दर्शन मात्र से ही मानव जीवन में होने वाले सभी दुखों का अंत हो जाता है।

कहां स्थित है अर्ध-नारीश्वर शिव लिंग काठगढ़ मंदिर

देव भूमि के कांगड़ा जिले की इंदौरा सब डिवीजन में स्थित काठगढ़ महादेव मंदिर विश्व का इकलौता मंदिर है, जहां पर शिवलिंग दो भागों में विद्यमान है। दो भागों में विभाजित शिव लिंग के एक रुप को मां पार्वती और दूसरे भाग को भगवान शिव का हिस्सा माना जाता है। काले रंग का यह शिवलिंग अष्टकोणीय है। अर्ध-नारीश्वर रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊचांई सात से आठ फीट और पार्वती के रूप में अराध्य का भाग पांच से छह फीट उंचा है।

 

अर्ध-नारीश्वर शिव लिंग का शिव-रात्रि को होता है मिलन

शिव पुराण की विधेश्वर संहिता अनुसार पद्म कल्प के प्रारंभ में एक बार भगवान श्री ब्रह्मा और भगवान श्री विष्णु के बीच श्रेष्ठ होने का विवाद पैदा हो गया। दोनों देव दिव्यास्त्र लेकर युद्ध करने के लिए अग्रसर हो गए। इस स्थिति को देख शिव वहां पर आदि अनंत ज्योतिर्मय स्तंभ के रूप में प्रकट हो गए। तब दोनों देवताओं के दिव्यास्त्र शांत हो गए। दोनों देव ब्रह्मा जी और विष्णु जी उस स्तंभ के आदि-अंत का मूल जानने के लिए जुट गए। विष्णु जी शुक्र का रूप धरकर पाताल गए, मगर अंत न पा सके। वहीं ब्रह्मा जी आकाश से केतकी का फूल लेकर विष्णु के पास पहुंचे कर बोले, मैं स्तंभ का अंत खोज आया हूं, जिसके ऊपर यह केतकी का फूल है। ब्रह्मा जी के इस झूठ को देखकर भगवान शंकर वहां प्रकट हुए। तब शंकर जी ने कहा कि आप दोनों समान हैं। यही अग्नि तुल्य स्तंभ का काठगढ़ के रूप में पूजा जाने लगा। ईशान संहिता अनुसार इस शिवलिंग का प्रादुर्भाव फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि को हुआ था। भगवान शिव का भी यह दिव्य लिंग शिवरात्रि को ही प्रगट हुआ था। इसलिए लोक मान्यता अनुसार काठगढ महादेव शिवलिंग के दो भाग भी चन्द्रमा की कलाओं के साथ करीब आते और दूर होते हैं। शिवरात्रि के दिन ही इनका मिलन माना जाता है। शिवरात्रि के अवसर पर हर साल यहां पर तीन दिवसीय भारी मेला लगता है। इस दिन भगवान शिव की शादी माता पार्वती के साथ हुई थी। उनकी शादी का उत्सव मनाने के लिए रात में शिव जी की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।

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सिकंदर ने बनवाए थे अष्टकोणीय चबूतरे

विश्वविजेता सिकंदर ईसा से 326 वर्ष पूर्व जब पंजाब पहुंचा, तो प्रवेश से पूर्व मीरथल नामक गांव में पांच हज़ार सैनिकों को खुले मैदान में विश्राम की सलाह दी। इस स्थान पर उसने देखा कि एक फकीर शिवलिंग की पूजा कर रहा था। फकीर से कहा कि तुम मेरे साथ यूनान चलो। मैं दुनिया का हर सुख दूंगा। फकीर ने सिकंदर की बात को अनसुना करते हुए कहा आप थोड़ा पीछे हट जाएं और सूर्य का प्रकाश मेरे तक आने दें। फकीर की इस बात से प्रभावित होकर सिकंदर ने एक टीले पर काठगढ़ महादेव का मंदिर बनाने के लिए भूमि को समतल करवाया और चारदीवारी बनवाई। इस चारदीवारी के ब्यास नदी की तरफ बनवाए अष्टकोणीय चबूतरे आज भी मौजूद हैं। शिवालय की चारदीवारी में यूनानी शिल्पकला का प्रतीक व प्रमाण आज भी मौजूद है।

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महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था पुनरुद्धार

कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह ने जब गद्दी संभाली थी तो समूचे राज्य के सभी धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया था।  जब वह काठगढ़ पहुंचे तो बेहद आनंदित हो गए। उन्होंने इस आदि शिवलिंग पर एक सुंदर मंदिर बनवाया था। मंदिर बनने के दौरान वह यहीं पर मौजूद रहे।

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महाराज दशरथ ने करवाया था कुंए का निर्माण

त्रेता युग में जब महाराज दशरथ की शादी हुई थी। तो उनकी बारात पानी पीने के लिए यहां ही रुकी थी। बारात की प्यास बुझाने के लिए यहां एक कुएं का निर्माण भी किया गया था। यह कुआं आज भी यहां स्थापित हैं। जब भी भरत व शत्रुघ्न अपने ननिहाल कैकेयी देश वर्तमान कश्मीर जाते थे। तो वह व्यास नदी के पवित्र जल से स्नान करके राजपुरोहित व मंत्रियों सहित यहां स्थापित काठगढ़ शिवलिंग की पूजा-अर्चना कर आगे बढ़ते थे।

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प्रदीप शाही

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