-गौवर्धन पूजा आठ नवंबर को
भारतीय संस्कृति में दीपावली की अगले दिन गोवर्धन पूजन करने की पंरपरा है। जनमानस में इस दिन को अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व से इंसान का प्रकृति संग सीधा संबंध भी महसूस होता है। इस पर्व की अपनी मान्यता है। कई लोककथाएं भी प्रचलित है। गोवर्धन पूजा में गौधन यानी गायों का पूजन किया जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि जिस तरह से गंगा नदियों में पावन है। उसी तरह गाय को भारत में पूजा जाता है। जिस तरह माता लक्ष्मी धन की देवी है। उसी तरह गाय माता भी अपने दूध से जनमानस को स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है ।
लोक कथा
गोवर्धन पूजा के संदर्भ में एक लोककथा भी प्रचलित है। देवराज इन्द्र को जब अभिमान हो गया था। तब इन्द्र का अभिमान चूर-चूर करने के लिए भगवान श्री विष्णू के अवतार भगवान श्री कृष्ण ने लीला रची। एक दिन श्री कृष्ण ने देखा के सभी बृजवासी पकवान बना किसी पूजा की तैयारी कर रहे हैं। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से पूछा कि मईया ये किनकी पूजा की तैयारी हो रही है। कृष्ण की बातें सुनकर मैय्या ने कहा कि हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं। मैय्या ने कहा वह वर्षा के देवता है। जिससे अन्न की पैदावार होती है। भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं। एेसे में गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। जबकि इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते। पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं। अत: ऐसे देव की पूजा नहीं करनी चाहिए।
श्री कृष्ण की लीला में सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज ने इसे अपना अपमान समझते हुए मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। तब श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलाधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी अंगुली पर उठा रखा था। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा। उसके बाद ही हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की परंपरा शुरु हुई। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।