-क्या नाम थे पांडवों व कौरवों के….
महाभारत युद्ध धर्म औऱ अधर्म में हुआ था। धर्म के पक्ष में भगवान श्री कृष्ण के अलावा पांच पांडव व दानवीर कर्ण और अधर्म के साथ 102 कौरव थे। परंतु क्या आप इस बात से हैरान नहीं होते कि आखिर कैसे 102 बच्चों को जन्म दिया जा सकता है। क्या यह संभव है। कौरवों का जन्म मौजूदा समय की टेस्ट टयूब बेबी समान ही था। आईए, आज आपके मन में उत्पन्न इस जिज्ञासा का समाधान करते हैं।
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भगवान शिव ने दिया था सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान
गांधारी, गंधार नरेश की बेटी थी। गंधारी भगवान शिव की भक्त थी। देवों के देव महादेव भगवान शंकर ने गांधारी से तपस्या से प्रसन्न हो कर उसे सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान दे दिया। युवा होने पर गांधारी का विवाह नेत्रहीन धृतराष्ट्र से हो गया। धृतराष्ट्र की इच्छा थी कि उसकी पत्नी नेत्रहीन न हो। ताकि वह राज्य की देखभाल कर सके। परंतु गांधारी ने विवाह प्रस्ताव मिलने पर पति के नेत्रहीन होने की बात सुन कर जीवन भर अपनी आंखों पर पट्टी बांधने की प्रतीज्ञा ले ली। इस प्रतीज्ञा को सुन धृतराष्ट्र बेहद गुस्सा हुए। इस कारण उनके स्थान उनके छोटे भाई पांडू का राजतिलक हो गया।
धृतराष्ट्र ने अपनी पत्नी गांधारी की प्रतिज्ञा को सुन उसे अपने समीप नहीं आने दिया। धृतराष्ट्र की इस बात को सुन कर गांधारी के भाई शकुनि ने धृतराष्ट्र को भगवान शिव के वरदान से अवगत करवाते कहा कि आपका पुत्र ही आपके स्वपन को पूरा करेगा। यह पुत्र अपने 99 भाईयों के सहयोग के कारण कभी हार नहीं सकेगा। आखिर धृतराष्ट्र ने गांधारी को अपनी पत्नी के रुप में स्वीकार कर लिया। वरदान के चलते गांधारी गर्भवती हुई। परंतु 10 माह के बाद भी प्रसव नहीं हुआ। 15 माह बाद गांधारी ने केवल एक मांस के बड़े टुकड़े को जन्म दिया। इस घटना के बाद धृतराष्ट्र ने गुस्से में आकर गांधारी को कष्ट देने के लिए अपनी दासी से संबंध बना लिए।
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इसी दौरान महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर आए। उन्होंने कहा कि भगवान शिव का वरदान व्यर्थ नहीं जा सकता है। इस मांस के टुकड़े में ही 100 संतान के बीज हैं। महर्षि वेद व्यास ने सौ मटकों में गर्भ की तरह का वातावरण निर्मित कर गांधारी के सौ पुत्रों के जन्म का राह पक्का किया। पहले बेटे का नाम दुर्योधन रखा गया। गांधारी ने भगवान से एक पुत्री की भी कामना की थी। इस तरह गांधारी ने एक बेटी दुशाल को भी जन्म दिया। वहीं दूसरी तरफ दासी से एक बेटे का जन्म हुआ। इस तरह दुर्योधन के 100 भाई व एक बहन थी। मौजूदा समय में महर्षि वेदव्यास की तकनीक की यदि बाते करें, तो कौरवों के जन्म को टेस्ट ट्यूब बेबी का नाम दिया जाता। जो इस बात को प्रमाणित करता है कि सदियों पहले भी सनातन धर्म में इस तरह से जन्म देने की तकनीक के बारे हमारे ऋषि मुनि बेहतर ढंग से जानते थे।
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पांच पांडवों को कुंती, माद्री ने दिया था जन्म
धृतराष्ट्र और पांडू दो भाई थे। धृतराष्ट्र औऱ गांधारी से 101 संतानों ने जन्म लिया। जबकि एक दासी से पुत्र जन्मा। वहीं दूसरी तरफ पांडू की दो पत्नियों कुंती से तीन और माद्री से दो पुत्रों ने जन्म लिया। कुंती ने विवाह से पहले सुर्य भगवान के तेज से उत्पन्न कर्ण को जन्म दिया था।
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पांडवों के नाम
युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, सहदेव व नुकल
102 कौरवों के नाम
दुर्योधन, दुशासन, जलसंघ, दुःसह, सम, विकर्ण, दुःशल, दुर्धर्ष, सुबाहू, चित्र, सह, दुषप्रधर्षण, सुलोचन, विंद, सत्वान, दुर्मुख, दुष्कर्ण, उपचित्र, चित्राक्ष, चारुमित्र, शल, दुर्मर्षण, सुनाभ, दुर्मद, शरासन, चित्रकुंडल, उर्णनाभ, दुर्विगाह, विकटानंद, उपनंद, नंद, विवित्सु, चित्रकुंडला, चित्रांग, चित्रवर्मा, महाबाहु, दुर्विमोचन, अयोबाहु, भीमबल, सुवर्मा, भीमवेग, निषंगी, चित्रवाण, सुषेण, कुंडधर, पाशी, महोदर, सदसुवाक, वसलर्धन, अग्रायुध, सत्यसंघ, जरासंघ, चित्रायुध, सोमकीर्ति, बालाकि, अनूदर, वृंदारक, विरज, उग्रश्रया, सुहस्त, दृड़हस्त, दुराधर, दृड़क्षत्र, दृड़संघ, विशालाक्ष, दृड़वर्मा, कुंडशायी, अपराजित, उग्रसेन, सेनानी, वातवेग, दीर्घरोमा, भीमविक्र, कुंडी, उग्रशायी, क्रथन, कवचि, दुषपराजय, विरवि, बह्वशी, सुवर्च, नागदत्त, कननध्वज, आदित्यकेतू, धनुर्धर, सुजात, कुंडभेदी, अनाधृष्य, अलोलुप, दृढरथाश्रय, प्रधम, युयुत्सु, वीरवाहु, दीर्घबाहु, अभय, दृड़कर्मा, कुंडाशी, अमाप्रमाथि, सुवीर्यवान, दुहशाला (बहन), सुखदा (दासी पुत्र)
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प्रदीप शाही