चंडीगढ़, 21 फरवरी:
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने रविवार को खेती कानूनों के प्रस्तावित निलंबन के विस्तार संबंधी मीडिया के उस बयान को ‘गलत व्याख्या’ करार देते हुए कहा कि शरारत के साथ इस मुद्दे पर उनके पक्ष के प्रति गलत प्रभाव देने के लिए इस बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया।
मुख्यमंत्री ने कुछ किसान नेताओं की उनके (मुख्यमंत्री) द्वारा आंदोलन में दख़ल देने की कोशिश करने की आशंकाओं को रद्द करते हुए कहा कि उनके इंटरव्यू से यह संदेश पहुँचाने कि की गई कोशिश पूरी तरह गलत है जैसे कि इस मुद्दे पर उनके बाकी बयान से स्पष्ट होता है।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि चाहे कि उन्होंने स्पष्ट तौर पर किसी भी दखलअन्दाज़ी या सीधे तौर पर मध्यस्थता जब तक दोनों पक्षों की तरफ से नहीं माँगी गई, से इन्कार कर दिया था। उन्होंने कहा कि सम्बन्धित इंटरव्यू में उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था ‘‘जहाँ तक मैं समझता हूँ वह यह है कि कुछ किसान नेता खेती कानूनों को 18 महीनों के लिए रोकने के लिए सहमत हैं परन्तु जिनकी मियाद 24 महीनों तक भी बढ़ाई जाने की संभावना हो सकती है।’’ उन्होंने उसी इंटरव्यू के दौरान यह भी कहा था कि जिस समय सीमा तक कानूनों पर रोक लगाने की बात हो रही है, वह पक्ष लगातार चर्चा का विषय है (सरकार और किसान यूनियन के दरमियान)।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनका बयान स्पष्ट तौर पर कुछ किसान यूनियनों की तरफ से इस मुद्दे पर आई फीडबैक के संदर्भ में था, जिसको तोड़ मरोड़ कर पेश करते हुए समझौते के लिए उनके निजी सुझाव के तौर पर पेश किया गया। उनके पूरे बयान के संदर्भ में लाए जाने की बजाय, इस ख़ास नुक्ते (खेती कानूनों के 24 महीनों के लिए निलंबन पर) को एक अलग बयान के तौर पर दिखाया गया जिसको उन्होंने तथ्यात्मक रूप से गलत करार दिया।
मुख्यमंत्री ने यह बात ज़ोर देकर दोहराते हुए कहा कि इस मसले का जल्द हल पंजाब की सुरक्षा के लिए बहुत नाजुक है जहाँ पिछले पाँच-छह महीनों में सरहद पार से राज्य में हथियारों की तस्करी में वृद्धि हुई है। उन्होंने यह बात दावे के साथ कही कि वह और उनकी सरकार इस मुद्दे पर किसानों के साथ निरंतर खड़ी रहेगी। उन्होंने शनिवार को हुई नीति आयोग की मीटिंग के लिए सौंपे भाषण में भी मौजूदा आंदोलन के तुरंत हल की ज़रूरत को स्पष्ट रूप में दिखाते हुए आंदोलन कर रहे किसानों के सभी शिकायातों का हल करते हुए उनकी संतुष्टि करवाने की बात कही थी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह फ़ैसला किसानों को ही करना पड़ेगा कि उनके हित में क्या है और किस हद तक खेती कानूनों को रद्द करने की अपनी माँग पर समझौता करें यदि वह वास्तव में इस तरह चाहते हैं, के लिए तैयार हैं। उन्होंने अपना पक्ष दोहराया कि केंद्र सरकार को इस मुद्दे को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बनाना चाहिए और संकट के प्रभावशाली और लम्बे समय के हल के लिए कानूनों को रद्द करने के लिए तैयार होना चाहिए।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार के दावे पर हैरानी ज़ाहिर की कि कल हुई नीति आयोग की छठी गवर्निंग कौंसिल की मीटिंग में किसी ने भी खेती कानूनों बारे बात नहीं की। उन्होंने कहा कि हालाँकि वह सेहत ठीक न होने के कारण वर्चुअल कॉन्फ्ऱेंस में निजी तौर पर शामिल नहीं हो सके थे परन्तु गुरूवार को नीति आयोग को सौंपे उनके भाषण में खेती कानूनों के मुद्दे को स्पष्ट तौर पर उभारा था।
उन्होंने न सिफऱ् अपनी सरकार के स्टैंड को दोहराया कि कृषि एक राज्यों का विषय है और इस पर कानून बनाने का मामला सहकारी संघवाद की असली भावना के साथ राज्यों पर छोड़ देना चाहिए। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने नीति आयोग के वाइस चेयरमैन के दावे को झूठा और बेबुनियाद करार देते हुए इसे पूरी तरह और स्पष्ट तौर पर रद्द करते हुए इस बात की ज़रूरत पर ज़ोर दिया कि किसानी मसले का हल तत्काल तौर पर करना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि उनका और उनकी सरकार का स्टैंड खेती कानूनों बारे हर मंच से एकसमान ही रहा है और विधानसभा में पास किये गए प्रांतीय संशोधन बिल उनके स्टैंड की पुष्टि करते हैं। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि राज्य के राज्यपाल इन बिलों को आगे राष्ट्रपति के पास भेजने की बजाय इनको अपने पास रोक कर बैठे हैं।
-Nav Gill