-सुंदर,स्वस्थ,दीर्घायु व प्रतिभाशाली संतान के लिए जरूरी है ‘गर्भाधान संस्कार’
आज के युग में अच्छी संतान की प्राप्ति किसी विशेष को ही होती है। अकसर आपने अपने आस-पास अपनी संतान को कोसने वाले बहुत से माता-पिता देखें होंगे। किसी को शिकायत रहती है कि उनका बच्चा उनकी आज्ञा का पालन नहीं करता तो कोई कहता है संतान सेवा कारक नहीं है। कुल मिलाकर शायद ही कोई ऐसा मिले जो अपनी संतान से संतुष्ट है। आखिर ऐसा क्यों घटित हो रहा है भारतीय समाज में ? उस समाज में जहां राम जैसे आज्ञाकारी पुत्र हुए तो वहीं श्रवण जैसे सेवाकारक पुत्र भी थे। जहां सीता जैसी चरित्रवान पुत्रियों का भी जन्म हुआ। किन्तु आज की ज्यादातर संतानें इन गुणों से रहित हैं। इसका कारण शायद माता-पिता का ही धर्म , रीति रिवाज़ों व मान्यताओं से दूर हो जाना है।
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भारतीय संस्कृति में पहला संस्कार ही गर्भधारण संस्कार है। जिसका उद्देश्य स्वस्थ, दीर्घायु, बुद्धिवान व कुलीन संतान की प्राप्ति है। बदलते परिवेश ने सब कुछ बदल दिया। हमारी सोच को , हमारे रहन-सहन को तथा साथ ही हमारी परम्पराओं के प्रति हमारे नज़रिए को भी। आधुनिक संस्कृति ने जीवन को सुखी बनाने के नाम पर हमें जो कुछ भी परोसा हम ग्रहण करते गए, बिना यह सोचे कि विदेशी कंपनियां जीवन को सुखी बनाने के नाम पर हमें जो परोस रहीं हैं वह कितना वैज्ञानिक है। इसीलिए हमने खो दिया अपना सुकून। भारतीय शास्त्रों ने हमें जो ज्ञान प्रदान किया उसका मूल उद्देश्य मानव जीवन व मानव समाज की उन्नति है। इन्हीं शास्त्रों में हमें उत्तम संतान प्राप्त करने हेतु गर्भाधारण संस्कार का उल्लेख मिलता है।
क्या है गर्भाधान या गर्भधारण संस्कार?
हिन्दू धर्म के सोलह संस्कारों में प्रथम संस्कार गर्भाधान संस्कार है। इस संस्कार के द्वारा ही जीवन की प्रक्रिया शुरू होती है। गृहस्थ जीवन का मुख्य उद्देश्य संतानोत्पत्ति माना गया है। श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति के लिए हमारे पूर्वज़ों ने अपने अनुभवों के आधार पर कुछ नियम बनाए थे। इन्हीं नियमों का पालन करते हुए संतान प्राप्ति के लिए किया गया आवश्यक कर्म ही ‘गर्भाधान संस्कार’ कहलाता है। माना जाता है कि जब स्त्री के गर्भ में जीव स्थान ग्रहण करता है तब गर्भाधान संस्कार के द्वारा जीव के पूर्वजन्म के विकारों को दूर कर उसमें अच्छे गुणों की उन्नति की जाती है।
मां की भूमिका
शिशु को सुसंस्कारित बनाने का सबसे उपयुक्त समय उसका गर्भकाल है। गर्भकाल में मां का चिंतन, चरित्र और व्यवहार तीनों ही गर्भ में पल रहे शिशु को प्रभावित करते हैं। इस अवस्था में मां जिस तरह के बच्चे की कल्पना करती है, जिस तरह का भोजन करती है, जिस प्रकार का वातावरण उसे मिलता है, वह सब बच्चे के अंदर सूक्ष्म रूप में समाहित होता रहता है। मां की आदतें, इच्छाएं इत्यादि भी संस्कार रूप में उसकी संतान के अंदर प्रवेश कर जाती हैं जो समयानुसार परिलक्षित होती हैं।
गर्भाधान संस्कार की विधि
गर्भ धारण से पूर्व ही गर्भ संस्कार की शुरूआत हो जाती है। गर्भवती स्त्री की दिनचर्या, आहार, प्राणायाम, ध्यान, गर्भस्थ शिशु की देखभाल आदि का वर्णन गर्भ संस्कार में किया जाता है। गर्भवती स्त्री को प्रथम तीन महीने में बच्चे का शरीर सुडौल व निरोगी हो इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए। तीसरे से छठे महीने में बच्चे की उत्कृष्ट मानसिकता के लिए प्रयत्न करना चाहिए। छठे से नौवे महीने में उत्कृष्ट बुद्धिमता के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
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क्यों आवश्यक है गर्भधारण संस्कार ?
वर्तमान समय में सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता बच्चों पर ही है। बच्चे ही समाज व राष्ट्र का भविष्य हैं। बच्चे ही इस देश की प्राण ऊर्जा हैं। यदि इन बच्चों को ठीक प्रकार से गढ़ा ना जाए, उनमें सही दृष्टि का निर्माण ना किया जाए तो उनकी कुंठित सोच परिवार तो क्या समाज के लिए भी घातक होगी।
गर्भाधान कर्म पर क्या कहते हैं धर्म ग्रन्थ ?
भारतीय शास्त्रों में गर्भाधान कर्म को एक पवित्र संस्कार का स्वरूप प्रदान किया गया है। शास्त्रों में यह मान्यता है कि स्त्री-पुरुष समागम काल में पति-पत्नी के विचार-व्यवहार भावी संतति के संस्कार को पूर्णरूप से प्रभावित करते हैं। केवल इन्द्रिय सुख के उद्देश्य से सम्पन्न समागम के फलस्वरूप जो आकस्मिक गर्भाधान होता है उससे धार्मिक, सदाचारी और यशस्वी संतान प्राप्ति की आशा नहीं की जा सकती । अतः सर्वगुण सम्पन्न संतान की प्राप्ति के लिए गर्भाधान संस्कार में पति-पत्नी के तन मन की पवित्रता के साथ-साथ मांगलिक परिवेश और ईश्वर की आराधना का विशेष महत्व रहता है।
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गर्भाधान में क्या है मना ?
गर्भाधान के लिए शाम का समय सही नहीं माना जाता है। एक प्राचीन कथा के अनुसार एक बार दक्षपुत्री दित्ति ने कामवश होकर शाम के समय ही अपने पति महर्षि कश्यप से पुत्र-प्राप्ति हेतु समागम की प्रार्थना की। महर्षि कश्यप ने इस कार्य के लिए सायंकाल के समय को अनुचित बताते हुए दित्ति को कुछ समय तक प्रतीक्षा करने को कहा लेकिन उचित-अनुचित के बारे में ना सोचते हुए दित्ति ने पति के साथ समागम किया। बाद में दित्ति इस निंदित कर्म से स्वयं लज्जित होकर अपनी भावी संतान की चिंता करने लगी। किन्तु अब इसका कोई हल नहीं था। महर्षि कश्यप ने दित्ति से कहा कि तुम्हारा चित्त कामवासना से मलिन था और समय भी ठीक नहीं था। तुमने मेरी बात नहीं मानी और इसलिए तुम्हारे गर्भ से दो बड़े अमंगलमय पुत्र उत्पन्न होंगे जो सम्पूर्ण लोक को अपने अत्याचारों से त्रस्त करेंगे।
गर्भाधारण संस्कार के बारे में क्या कहता है विज्ञान?
विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि गर्भ में शिशु सुनता है और ग्रहण भी करता है। मां के गर्भ में आने के बाद शिशु को संस्कारित किया जा सकता है। हमारे पूर्वज़ इन बातों से भली-भांति परिचित थे इस लिए उन्होंने ‘गर्भाधान संस्कार’ को भारतीय संस्कृति का प्राण सोलह संस्कारों में से एक मानकर उसे पूर्ण पवित्रता के साथ सम्पन्न करने की प्रथा प्रचलित की।
धर्मेन्द्र संधू