कुबेर को हुए धन के अहंकार को भगवान श्री गणेश ने कैसे तोड़ा

प्रदीप शाही

इंसान में इन पांच बुराईयां काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार का कहीं न कहीं वास पाया गया है। कहीं न कहीं इन पांच बुराईयों से देवता भी बच नहीं पाए हैं। जब भी किसी देवता में इन बुराईयों ने घेरा तो इनके नाश के लिए भगवान ने अपनी लीला को रचा। आज हम आपको कुबेर में पनपे धन अहंकार के बारे बताएंगे। उनके इस अहंकार को किस तरह से भगवान श्री गणेश ने अपनी लीला रच कर कैसे समाप्त किया।

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कुबेर को कैसे हुआ धन अहंकार

कहा जाता है कि एक बार कुबेर को अपने धन का अहंकार हो गया। कुबेर ने सोचा उनके पास इन तीनों लोकों में सबसे अधिक धन है। क्यों न एक भव्य भोज का आयोजन कर उन्हें अपना वैभव दिखाया जाए। कुबेर ने अपनी इस सोच को फलित करने के लिए सभी देवी-देवताओं को भव्य भोज में आमंत्रित किया। कुबेर सबसे पहले देवों के देव महादेव के निवास कैलाश पर्वत पर पहुंचे। भगवान शंकर, माता पार्वती को परिवार सहित महा भोज में सम्मलित होने का निमंत्रण दिया। भगवान शिव तो जानी जान थे। उन्हें समझ आ गई कि कुबेर को धन का अहंकार हो गया। भगवान शिह ने कुबेर को सही राह दिखाने का फैसला किया।

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भगवान गणेश ने किया कुबेर का अहंकार चूर

भगवान शिव ने कुबेर से कहा कि वह तो भव्य भोज में नहीं आ सकेंगे। परंतु उनके पुत्र श्री गणेश तुम्हारे भव्य भोज में शामिल जरुर होंगे। कुबेर प्रसन्न हो कर वापिस चले गए। आखिर महाभोज का दिन आ गया। कुबेर ने अपना वैभव दिखाने के लिए आमंत्रित मेहमानों को सोने चांदी के थालों में स्वादिष्ट व्यंजनों को परोसा। सभी देवी देवता स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लेकर भर पेट खा कर वहां से विदा होने लगे। आखिर में भगवान श्री गणेश का आगमन हुआ। कुबेर ने श्री गणेश का स्वागत कर उन्हें विशिष्ट स्थान पर बिठा कर खाना परोसना शुरु किया। भगवान श्री गणपति ने कुबेर के अहंकार को समाप्त करने के उद्देश्य से अपनी लीला रच दी। कुबेर खाना परोसते रहे और श्री गणेश खाना खाते जा रहे थे। धीरे-धीरे अन्न भंडार खाली होने लगा। परंतु भगवान गणेश की भूख समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थी। कुबेर की भोजन व्यवस्था चरमरा गई। भगवान गणेश जी अपनी भूख को समाप्त करने के उद्देश्य महल में रखी चीजों को खाना शुरु कर दिया। कुबेर के महल में चारों तरफ हाहाकार मचने लगा। कुबेर को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। वह क्या करें। उनका अहंकार चूर-चूर हो गया। वह समझ गए कि धन के देवता होने के बाद भी वह अपने अतिथि का पेट नहीं भर सकते हैं। कुबेर ने भगवान श्री गणेश जी के चरणों को पकड़ कर अपने अहंकार की क्षमा मांगी। तब भगवान श्री गणेश ने अपनी लीला को समाप्त कर कुबेर को माफ करते हुए उन्हें सदबुद्धि प्रदान की।

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