किस संत, फकीर को भक्तों ने दिया भगवान का दर्जा…

-द्वारकामाई ही नहीं हर जगह आज भी हरते हैं भक्तों के कष्ट साईं
यह पूर्णतया से सच है कि जो भी इंसान सच्चे मन से भगवान का पूजन करता है। तो भगवान किसी भी जाति, धर्म से संबंधित इंसान के कष्ट बिना किसी भेदभाव के हर लेते है। एेसे ही हिंदू, मुस्लिमों में एक समान पूजे जाने वाले शिरड़ी में वास करने वाले साईं बाबा के नाम से विख्यात संत, फकीर इस फानी दुनिया को अलविदा कहने के बाद आज भी द्वारका माई ही नहीं हर जगह भक्तों की आवाज सुन कर उनके कष्टों को हरने पहुंच जाते हैं। आज शिरडी हर धर्म के मानने वालों के लिए एक पावन स्थल के रुप में विख्यात है। सबका मालिक एक…, अल्लाह मालिक… से अपने भक्तों को आशीर्वाद देने वाले साईं बाबा को आज भगवान के अवतार के रुप में ही पूजते हैं।


शिरडी के साईं बाबा का इतिहास
भक्तों की ओर से ओंम साईं नाथ, ओंम साई राम, ओंम साईं बाबा जैसे पावन संबोधित किए जाने वाले साईं बाबा का असल नाम व जन्म स्थल के बारे कोई भी पुख्ता जानकारी नहीं है। कुछ लोग उनके जन्म की तारीख 28 सितंबर 1835 मानते हैं। इस बाबत पूछे जाने पर वह कभी भी कोई जवाब नहीं देते थे। इस फकीर को साईं व बाबा का नाम शिरडी में आने पर ही मिला। तबीयत से फकीर रहे साईं का खंडोबा मंदिर के पुजारी महालसापति, उपासनी महाराज, संत बिड़कर महाराज, संत गंगागीर, संत जानकीदास महाराज और सती गोदावरी माता उनका बेहद सम्मान करती थी।
पहली बार साईं जब 16 साल के थे, तब वह शिरडी पहुंचे थे। हमेशा नीम के पेड़ के नीचे बैठ कर ध्यान मग्न रहते थे। गर्मी व सर्दी में भी उनकी तपस्या हमेशा से चर्चा रही। उनके इस पागलपन के चलते गांववासी परेशान थे। लोगों की ओर से पत्थर फेंकने की घटना से वह गांव छोड़ कर चले गए। करीब एक साल तक वह शिरडी से दूर रहे। इसके बाद वह अपने अंतिम समय 15 अक्टूबर 1918 तक शिरडी में ही रहे। गौर हो बाबा ने अपनी देह का त्याग विजय दश्मी के पावन दिन किया था।


जब वह वापिस शिरडी आए तो उन्होंने एक चोला पहना हुआ था और सिर पर एक टोपी पहनी हुई थी। यह गांववासियों के लिए उनका एक नया रूप था। उनकी इस पोषाक से वह एक मुस्लिम फकीर लगते थे। परंतु उनके चाहने वालों में हिंदू व मुस्लिम दोनों ही थे। वापिस आने के बाद तक़रीबन चार पांच साल वह एक नीम के पेड़ के नीचे ही पड़े रहे। आखिर गांववालों ने उन्हें एक पुरानी मस्जिद में रहने के लिए जगह दे दी। वह गांव से भीक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करते थे। मस्जिद में पवित्र धार्मिक आग भी जलाते थे। जिसे उन्होंने धुनी का नाम दिया। इस धुनी की राख को वह उधि कहते थे। इस उधि से बीमार लोगों को ठीक कर देते थे।

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मन ही नहीं भविष्य को भी पढ़ लेते थे साईं
एक दिन सुबह-सुबह साईं बाबा हाथ से पीसने वाली चक्की से गेहूं पीसने लगे। जिसे देखकर सभी हैरान हो गए। जब सारा गेहूं पिस गया तो उन्होंने चारों महिलाओं को आटे के चार हिस्से कर दे दिया। साईं ने उन्हें उस आटे को गांव की मेड़ पर बिखेरने के लिए कहा। इस आटे के बिखेरने के बाद आसपास फैला हैजा गांव में प्रवेश नहीं कर पाया। साईं बाबा 60 साल तक शिरडी में रहे और वह हर समय गेहूं पीसने का काम करते रहे।
शिरडी के साईं बाबा का मंदिर अमीर मंदिरों में एक
18वीं शताब्दी में अवतरित हुए साईं बाबा का शिरडी स्थित मंदिर आज हर धर्म के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। हर वर्ष लाखों भक्त यहां पर नमन करने पहुंचते हैं। कहा जाता है कि बाबा का सिंहासन ही 94 किलोग्राम सोने का बना हुआ है। यहां पर भक्तों द्वारा 100 मिलियन राशि दान की जा चुकी है।

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