-भारत में 55 स्थलों पर किया जाता है पिंडदान
-धार्मिक ग्रंथों में पितरों के तर्पण का है विशेष महत्व
धार्मिक ग्रंथों में आत्मा को अजर अमर माना गया है। इंसान की मृत्यु के बाद प्रेत योनि से बचाने के लिए पितृ तर्पण का बहुत महत्व माना गया है। श्राद्ध का अर्थ अपने ईष्ट, अपने पितरों और वंश के प्रति श्रद्धा-भाव प्रकट करना माना गया है। ऐसा माना गया है कि यदि विधि विधान से श्राद्ध किया जाए, तो पूर्वजों मुक्ति मिल जाती है। पितरों की मुक्ति के लिए भारत में 55 स्थलों पर पिंडदान करने की परंपरा सदियों से जारी है। क्या आप जानते हैं कि भारत में कहां होता है पितृ पक्ष और मातृ पक्ष का तर्पण।
देश में कहां-कहां होता तर्पण…
भारत में हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर, बद्रीनाथ सहित 55 स्थानों पर श्राद्ध करने की परंपरा सदियों से प्रचलित है। शास्त्रों में इन तीन स्थानों पर पिंडदान करना खास माना गया है। इनमें बद्रीनाथ के पास ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति, हरिद्वार में नारायणी शिला के पास पूर्वजों का और बिहार के गया में पितृ-पक्ष तर्पण किया जाता है। पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर स्थित विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। गरुड़ पुराण में वर्णित है कि घर से निकल कर गया पहुंचने तक एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी का निर्माण करता है। सबसे खास बात यह है कि गुजरात के एतिहासिक सिद्धपुर “सिद्ध स्थल” के पावन बिंदु सरोवर में मातृ पक्ष का तर्पण किया जाता है। बिंदू सरोवर एकमात्र एेसा स्थल है, जहां मातृ पक्ष का तर्पण किया जाता है।
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क्यों किया जाता है श्राद्ध…
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का सबसे सरल मार्ग माना गया है। किदवंती अनुसार भस्मासुर के वंशज गयासुर नामक राक्षस ने कठोर तपस्या कर भगवान श्री ब्रह्मा से वरदान मांगा कि उसका शरीर भी देवताओं की तरह पवित्र हो जाए। उसके दर्शन मात्र से लोग पाप मुक्त हो जाएं। इस वरदान के चलते स्वर्ग की जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगी। लोग बिना भय के पाप करते फिर गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे। इस समस्या से निजात पाने के लिए गयासुर राक्षस से देवताओं ने यज्ञ के लिए एक पवित्र स्थल की मांग की। गयासुर ने अपना शरीर ही देवताओं को यज्ञ के लिए सौंप दिया। गयासुर जब लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। यही पांच कोस की जगह आज गया के रुप में पहचानी जाती है। वहीं दूसरी कथा अनुसार गयासुर की ओर से लोगों को तारने वाला बनाने के कारण ही गया को पूर्वजों के पिंडदान करने वाला माना गया। मान्यता है कि श्राद्धा के समय जो लोग किसी भी लोक में होते हैं। वह इस दौरान पृथ्वी पर किसी न किसी रुप में जरुर आते हैं।
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गया में पिंडदान से इंसान होता है पितरों के ऋण से मुक्त
बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान का बहुत महत्व है। माना जाता है कि इसी स्थल पर भगवान राम और देवी सीता ने राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था। महाभारत में लिखा है कि फल्गु तीर्थ में स्नान करके जो मनुष्य श्राद्ध पक्ष में भगवान गदाधर यानिकि भगवान विष्णु जी के दर्शन करता है, वह पितरों के ऋण से मुक्त हो जाता है।
विष्णू नगर से भी पहचाना जाता है गया
गया को विष्णु नगर के रुप में भी जाना जाता है। गया मोक्ष की भूमि का भी दर्जा प्राप्त है। विष्णु पुराण, वायु पुराण में इस जगह का उल्लेख है। विष्णू पुराण अनुसार गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है। और वह स्वर्ग में जाकर वास करते हैं। यहां पर भगवान श्री विष्णु पितृ देवता के रूप में विद्यमान है। इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है।
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गया में स्थापित 360 वेदियों में से मात्र 48 शेष
मोक्ष की भूमि, पितृ तीर्थ के रुप में विख्यात गया में पहले विभिन्न नामों की 360 वेदियां थीं। जहां पिंडदान करने की परंपरा थी। परंतु अब इनमें से केवल 48 वेदियां ही शेष हैं।
यहां होता है मातृ पक्ष पिंडदान
कपिल मुनि के पिता कर्दम ऋषि की 10 हजार वर्षों की तपस्या के फल से फलित एतिहासिक सिद्धपुर सिद्ध स्थल में पावन बिंदु सरोवर देश में केवल एक ऐसा तीर्थ है। जहा पुत्र अपनी माता की मोक्ष हेतु कार्तिक माह में आ कर पूजा अर्चना और कर्म काण्ड करते है। माता जाता है कि महान ऋषि परशुराम ने भी अपनी माता का श्राद्ध सिद्धपुर में बिंदु सरोवर के तट पर ही किया था। बिंदु सरोवर के किनारों पर पत्थर के घाट बनाये गए है। ऋषि परशुराम का आश्रम भी निकट है। पास ही मोक्ष पीपल है। जहां पुत्र अपनी माता के मोक्ष के लिए प्रार्थना करते है।
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किसे कहते हैं पिंड
विद्वानों के मुताबिक, किसी वस्तु के गोलाकर रूप को पिंड कहा जाता है। प्रतीक के रुप में शरीर को भी पिंड कहा जाता है। पिंडदान के समय मृतक की मुक्ति के लिए जौ या चावल के आंटे को गूंथकर बनाई जाने वाली गोलाकृति को पिंड कहते हैं। आचमन कर जनेउ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर व शहद को मिला कर बनाए गए पिंडों को श्रद्धा भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है। ल में काले तिल, जौ, कुश एवं सफेद फूल मिला कर उस जल से पूर्ण श्रद्धाभाव से की गई रीत से तर्पण किया जाता। इस रस्म कको पूरा करने से पितर तृप्त होते हैं।
कुमार प्रदीप