प्रदीप शाही
-भारतीय ऋषि मुनियों का अनूठा गणना तंत्र अनुसंधान
विज्ञान हो या गणित। भारतीय ऋषियों मुनियों के ज्ञान का विश्व में कोई भी सानी नहीं माना जा सकता है। वेदों, उपनिषदों और पुराण में संग्रहित ज्ञान के समक्ष हर कोई नतमस्तक ही रहा है। एक से दस तक गिनती में छिपी रोमांचक जानकारियां देखने, सुनने व पढ़ने में अविश्वसनीय ही मानी जा सकती है। सदियों पहले हमारे महान ऋषियों, मुनियों ने जो ज्ञान विश्व के सामने प्रस्तुत किया है। वह हमारे लिए किसी गर्व से कम नहीं है। आखिर क्या है, एक से दस तक की गिनती में छिपे गहन रहस्य है।
इसे भी देखें…यह है कोणार्क के बाद विश्व का दूसरा सदियों पुराना सूर्य देव मंदिर
गिनती का सर्वप्रथम अंक एक—
सैकेंड के 34 हजार वें भाग को क्रति कहते हैं। जबकि सैकेंड के 300वें भाग को एक त्रुति, दो त्रुति को एक लव, एक लव को एक क्षण, 30 क्षणों को एक विपल, 60 विपल को एक पल, 60 पलों को एक घड़ी यानिकि 24 मिनट, 2.5 घड़ी को एक होरा यानिकि एक घंटा, 24 होरा यानिकि एक दिन बराबर होता है। सात दिन यानिकि एक सप्ताह, चार सप्ताह यानिकि एक माह बराबर होता है। एक ऋतू, दो माह बराबर, एक वर्ष, छह ऋतू बराबर होता है। एक शताब्दी, 100 वर्ष बराबर, दस शताब्दी यानिक एक सहस्राब्दी, 32 सहस्राब्दी यानिकि एक युग, दो युग यानिकि एक द्वापर युग, तीन युग यानिक त्रैता युग, चार युग का सतयुग होता है। द्वापर युग, त्रेता युग, सतयुग और कलयुग का एक महायुग होता है।सबसे दिलचस्प बात यह है कि एक महायुग के बाद एक नित्य़ प्रलय आती है। जिसमें धरती पर समूचे जीवन का अंत व फिर दोबारा आरंभ होता है। 76 महायुगों का एक मनवंतर, एक हजार महायुगों का एक कल्प होता है। वहीं एक कल्प के बाद एक निमितिका प्रलय आती है। जिसमें समूचे देवों का अंत व जन्म माना गया है। इतना ही नहीं 730 कल्प के बाद महाकाल आता है। जिसमें ब्रह्मा जी का अंत और जन्म माना गया है।
इसे भी देखें…जानिए भगवान श्री कृष्ण की आठ पत्नियों से थी कितनी संताने…?
गिनती का दूसरा अंक दो—
इस धरती पर प्रमुख तौर से दो लिंग (नर और मादा), दो पक्ष (शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष), दो पूजा (वैदिक और तांत्रिक), दो अयन ( उत्तरायन और दक्षिणायन) होते हैं।
गिनती का तीसरा अंक तीन–
तीन अंक में प्रमुख तौर से तीन देवों में भगवान ब्रह्मा, भगवान श्री विष्णु और भगवान शंकर, तीन देवियों में महा सरस्वती, महा लक्ष्मी और महा गौरी, तीन लोकों में पृथ्वी, आकाश और पाताल, तीन गुणों में सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण प्रमुख हैं। तीन स्थिति में ठोस, द्रव्य और वायु, तीन स्तरों में शुरुआत, मध्य और अंत, तीन पड़ावों में बचपन, जवानी और बुढ़ापा, तीन रचनाओं में देव, दानव और मानव, तीन अवस्थाओं में जागृत, मृत और बेहोशी, तीन कालों में भूत, भविष्य और वर्तमान, तीन नाड़ी में इडा, पिंगला औऱ सुषुम्ना, तीन प्रकार की संध्या ( सुबह, दोपहर और सायं, तीन प्रकार की शक्ति इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति प्रमुख हैं।
गिनती का चौथा अंक चार—
गिनती में चार अंक का अहम स्थान है। ऋषियों, मुनियों अनुसार इस धरती पर चार धाम (बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारिका जी), चार मुनियों में (सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार), चार वर्ण में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, चार निति में साम, दाम, दंड, भेद, चार वेद (सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद), चार स्त्री (माता, पत्नी, बहन, पुत्री), चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग), चार समय (सुबह, शाम, दिन, रात), चार अप्सराएं (उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा), चार गुरु (माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु), चार तरह के प्राणी (जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर), चार प्रकार के आश्रम ( ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास), चार प्रकार के भोजन (खाद्य, पेय, लेह्य, चौष्य), चार प्रकार के पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) होते हैं।
इसे भी देखें…जनिए ? पांच पांडवों, द्रोपदी में से सबसे पहले किसकी हुई मृत्यु, और कौन गया स्वर्ग!
गिनती का पांचवा अंक पांच–
अंक पांच का गिनती में विशेष महत्व है। पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु (पांच तत्व), भगवान श्री गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य (पांच देवता), आंख,नाक, कान, जीभ, त्वचा (पांच ज्ञानेन्द्रियां),
रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि (पांच कर्म), अंगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा (पांच अंगुलियां), गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य (पांच पूजा उपचार), दूध, दही, घी, शहद, शक्कर (पांच अमृत), भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस (पांच प्रेत), मीठा, चरखा, खट्टा, खारा, कड़वा (पांच स्वाद), प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान (पांच वायु), आंख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन (पांच इन्द्रियां, सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट ( प्रयागराज ), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया) (पांच वटवृक्ष), आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक (पांच पत्ते), अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी (पांच कन्याएं) प्रमुख हैं।
गिनती का छठा अंक छह–
गिनती के छठे अंक में शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर (छह ऋतु), शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष (छह ज्ञान के अंग), देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान (छह कर्म), काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य (छह दोष) ज्ञान की जानकारी मिलती है।
इसे भी देखें…जानिए कैसे एक बालक ने ध्रुव तारे का रूप ?
गिनती का सातवां अंक सात—
गिनती में अंक सात में कई बहुमूल्य जानकारियां समाहित हैं। जिनमें प्रमुख तौर से सात छंद ( गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती), सात स्वर (सा, रे, ग, म, प, ध, नी), सात सुर (षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद), सात चक्र (सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार), सात दिन (रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि), सात तरह की मिट्टी (गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब), सात महाद्वीप (जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप), सात ॠषि (वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक), सात धातु (शारीरिक) (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य), सात तरह के रंग (बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल), सात प्रकार के पाताल (अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल), सात पुरी(मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची), सात प्रकार के धान्य (उड़द, गेहूं, चना, चावल, जौं, मूंग, बाजरा) शामिल हैं।
इसे भी देखें…जानिए क्यों ? भगवान कृष्ण ने अपने हाथों पर किया था दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार
गिनती का आठवां अंक आठ—
आठ तरह की धातु सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा, आठ तरह की सिद्धियां अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व, वशित्व के अलावा आठ तरह की लक्ष्मी आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी होती है।
गिनती में नौंवा अंक नौ—
गिनती में नौ का अंक बेहद विशेष माना गया है। इनमें नवदुर्गा, नवग्रह, नवरत्न, नवनिधि का विशेष उल्लेख है। नवदुर्गा में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री, नवग्रह में सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु, नवरत्न में हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया, नवनिधि में पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि प्रमुख हैं।
इसे भी देखें…समूद्र में डूबा मिला पर्वत, वैज्ञानिकों ने माना इस पर्वत से ही हुआ था समुद्र मंथन
गिनती में दसवां अंक 10—
दस अंक में दस अवतारों के अलावा कई अन्य जानकारियों प्रमुखता से मिलती हैं। भगवान विष्णु जी दस प्रमुख अवतारों में मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि के नाम शामिल हैं। दस महाविद्या में काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, भैरवी, बगलामुखी, मातंगी, कमला, दस दिशाओं में पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे, दस दिक्पाल में इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत, दस सति में सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती के नामों का प्रमुखता से उल्लेख मिलता है।