-माता पार्वती, भोले शंकर का समावेष है ज्योतिर्लिंग श्री मल्लिकार्जुन
इस सृष्टि के रचियता कहे जाने वाले त्रिदेव भगवान ब्रह्मा, श्री हरि विष्णू और महादेव भोले शंकर मृत्य़लोक में विभिन्न रुप धर कर सभी के पाप व कष्टों को दूर करने के लिए अवतरित हुए। परंतु देवों के देव महादेव ने द्वादश ज्योतिर्लिंगों 1. सोमनाथ, 2. वैद्यनाथ, 3. काशी विश्वनाथ, 4. मल्लिकार्जुन, 5. भीमशंकर, 6. त्रिंबकेश्वर, 7. महाकालेश्वर, 8. रामेश्वर, 9. केदारनाथ, 10. ओंकेश्वर, 11. नागेश्वर, 12. घृष्णेश्वर के रुप में इस धरती वासियों को साक्षात दिए। आईए आपको को बताएं कि देवों के देव महादेव भगवान शिव ने किस पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रकट कर जनमानस का उद्धार किया।
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कहां पर स्थित है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
दक्षिण का कैलाश माने जाने वाले आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रुप में भगवान शिव प्रकट हुए। श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में महादेव भोले शंकर के अलावा माता पार्वती समाहित है। अनेक धर्मग्रन्थों में इस पावन स्थल की महिमा बतायी गई है। महाभारत अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से ही अश्वमेध यज्ञ करने का लाभ प्राप्त होता है। कई ग्रंथों में वर्णित है कि श्रीशैल के शिखर के महज दर्शन करने से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
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कैसे भगवान महादेव मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रुप में हुए प्रकट
एक कथा अनुसार शिव पार्वती के पुत्र स्वामी कार्तिकेय और सिद्धिविनायक श्री गणेश दोनों भाई विवाह के लिए आपस में कलह करने लगे। कार्तिकेय ने कहा कि वे बड़े हैं, इसलिए उनका विवाह पहले होना चाहिए। परंतु श्री गणेश अपना विवाह पहले करना चाहते थे। दोनों भाई इस समस्या के समाधान के लिए भोले बाबा व माता पार्वती के पास पहुंचे। माता-पिता ने कहा कि जो इस पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले वापिस आएगा। उसी का विवाह पहले होगा। शर्त सुनते ही स्वामी कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए दौड़ पड़े। जबकि बुद्धि के सागर भगवान श्री गणेश ने माता पार्वती तथा पिता देवाधिदेव महेश्वर को एक आसन पर बैठने का आग्रह किया। उनके बैठने के साथ ही श्रीगणेश ने उनकी सात परिक्रमा कर शर्त को पूर्ण कर दिया। उन्होंने कहा कि माता-पिता से बड़ी कोई परिक्रमा का विधान नहीं हो सकता है। शिव-पार्वती ने प्रसन्न हो कर श्रीगणेश का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि के साथ करवा दिया। श्री गणेशजी को पत्नी ‘सिद्धि’ से ‘क्षेम’ तथा पत्नी बुद्धि से ‘लाभ’ नामक दो पुत्ररत्न प्राप्त हुए। देवर्षि नारद ने स्वामी कार्तिकेय को यह सारी जानकारी प्रदान की। स्वामी कार्तिकेय इससे क्रोधित हो गए। माता-पिता से नाराज होकर स्वामी कार्तिक स्वामी क्रौंच पर्वत पर रहने लगे। पुत्र स्नेह में व्याकुल माता पार्वती भगवान शिव जी को लेकर पर्वत पहुंची। पंरतु स्वामी कार्तिकेय पर्वत से छत्तीस किलोमीटर दूर चले गये। कार्तिकेय के जाने के बाद भगवान शिव उसी पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गये। तभी से यह स्थान ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध है। माता पार्वती को ‘मल्लिका’ के नाम से भी पुकारा जाता है। जबकि भोले बाबा को ‘अर्जुन’ के नाम से पुकारा जाता है। इस स्थान पर माता पार्वती व भगवान शंकर दोनों समान रुप से विराजमान है।
दो हजार साल प्राचीन है मंदिर
पुरातत्त्ववेत्ताओं अनुसार यह मंदिर लगभग दो हज़ार वर्ष प्राचीन है। मुख्य मंदिर के बाहर पीपल का वृक्ष है। उसके आस-पास चबूतरा है। इस मंदिर में मूर्ति तक जाने का टिकट लगता है। तभी लिंग मूर्ति का स्पर्श प्राप्त होता है। मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे माता पार्वती का एक मंदिर है। इसे मल्लिका देवी कहते हैं। सभा मंडप में नन्दी की भी विशाल मूर्ति है। मंदिर के पूर्वद्वार के पास पातालगंगा है। यहां पर जाना काफी कठिन है। भक्त स्नान करके वहां से जल लाकर शिवलिंग पर चढाते हैं। पूर्व की ओर एक गुफा में भैरव की मूर्तियां भी हैं। यह गुफा कई मील गहरी मानी जाती है। श्रीशैल का यह पूरा क्षेत्र वन से घिरा है। लगभग 500 साल पहले श्री विजयनगर के महाराजा कृष्णराय यहां आए थे। उन्होंने यहां पर स्वर्ण मंडित एक सुंदर मंडप का भी निर्माण करवाया।
कुमार प्रदीप