भारत में कई प्राचीन व ऐतिहासिक स्थान हैं जो लोगों की आस्था का केन्द्र हैं। इन प्राचीन स्थानों में भगवान शिव से संबंधित स्थान भी मौजूद हैं। आज हम आपको एक ऐसे धार्मिक स्थान के बारे में जानकारी देंगें जो पाताल में यानि जमीन के नीचे एक गुफा में स्थित है। यह मंदिर उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के गंगोलीहाट कस्बे में स्थित है और इसे प्राचीन पाताल भुवनेश्वर नाम से जाना जाता है।
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स्कंद पुराण में है इस स्थान का वर्णन
पाताल भुवनेश्वर मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण के 103वें अध्याय में भी मिलता है। स्कंद पुराण में इस पावन स्थान को भूतल का सबसे पावन क्षेत्र बताया गया है। इस अध्याय में यह भी वर्णन किया गया है कि पाताल भुवनेश्वर में पूजा करने से अश्वमेध से कई गुणा अधिक फल की प्रप्ति होती है।
मंदिर से जुडी किवदंतियां
इस पावन गुफा में कई प्राचीन आकृतियां बनी हुई हैं। इन आकृतियों से कई किवदंतियां जुड़ी हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर पांडवों ने तपस्या की थी। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव यहां निवास करते थे और अन्य देवी-देवता भी भगवान शिव के दर्शन करने के लिए इसी स्थान पर आते थे।यह भी कहा जाता है कि जनमेजय के नागयज्ञ का हवन कुंड भी इस स्थान पर मौजूद है। मान्यता है कि अपने पिता परीक्षित को श्राप से मुक्त करने के लिए जनमेजय ने सभी नागों को मार दिया था। लेकिन इसके बावजूद तक्षक नाग बच गया। बाद में तक्षक नाग ने परीक्षित को मार दिया। कहते हैं कि नागयज्ञ के कुंड के ऊपर जो चित्र है वह उसी नाग का है। एक और मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने क्रोध में आकर गजानन का मस्तक घड़ से अलग किया था। उस मस्तक को भगवान शिव ने इसी गुफा में रखा था।
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इस मंदिर में छिपा है प्रलय का राज
इस मंदिर में चार युगों का प्रतिनिधित्व करते चार प्रस्तर खंड हैं। इन खंडों में तीन खंडों का आकार एक जैसा है और अंतिम खंड आकार में बड़ा है, इस बड़े खंड जिसे शिवलिंग भी माना जाता है को कलयुग का प्रतीक माना गया है। इस खंड के ऊपर एक पिंड लटक हुआ है। मान्यता है कि हर 7 करोड़ साल में इस पिंड का आकार एक इंच के करीब बढ़ रहा है। जब यह पिंड इस प्रस्तर को स्पर्श करेगा उस दिन प्रलय आएगी।
राजा ऋतुपर्णा को हुए थे भगवान शिव सहित अन्य देवताओं के दर्शन
इस प्राचीन गुफा की खोज राजा ऋतुपर्णा द्वारा की गई थी। राजा ऋतुपर्णा सूर्यवंश से संबंध रखते थे और त्रेता युग में इनका अयोध्या पर शासन था। स्कंद पुराण में वर्णन किया गया है कि राजा ऋतुपर्ण एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफा तक पहुंचे थे और इस गुफा में उन्हें भगवान शिव और अन्य देवताओं के साक्षात दर्शन हुए थे। जगदगुरु आदि शंकराचार्य भी इस गुफा तक पहुंचे थे। इसलिए कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने ही इस गुफा की खोज की थी। उन्होंने इस स्थान पर तांबे का बना हुआ एक शिवलिंग भी स्थापित किया था।
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गुफा में जाने के लिए लेना पड़ता है जंजीरों का सहारा
गुफा की दीवारों से लगातार पानी रिसाव होता है इस लिए गुफा में फिसलने का डर बना रहता है। गुफा के अंदर लोहे की जंजीरों को पकड़कर जाना पड़ता है।
धर्मेन्द्र संधू