आश्चर्य ! महादेव और भगवान श्री कृष्ण के मध्य क्यों हुआ था भीष्ण युद्ध

-वाणासुर को प्राप्त था देवों के देव महादेव का आशीर्वाद

देवों के देव महादेव के भगवान श्री कृष्ण परम आराध्य थे। भगवान श्री विष्णु के धरती पर श्री कृष्ण के रुप में अवतरित होने पर वह अपने आराध्य के दर्शन करने पहुंचे। दर्शन करने के दौरान उन्हें बांसुरी की भेंट की। जिसे श्री कृष्ण ने मृत्यु होने तक अपने आप से कभी अलग नहीं किया। परंतु क्या  आप जानते हैं  कि एक दूसरे के प्रति अनन्य प्रेम करने वाले महादेव और भगवान श्री कृष्ण के मध्य भी एक राक्षस के कारण युद्ध हुआ था। आज हम आपको इस युद्ध के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं। आखिर यह युद्ध क्यों हुआ।

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किस राक्षस ने वरदान हासिल कर भगवान शिव को ही दी चुनौती

पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख है कि राक्षसों ने हमेशा अपने स्वार्थ के लिए त्रिदेवों की कठोर उपासना कर बलशाली होने के वरदान हासिल किए। इन वरदानों को हासिल करने के बाद राक्षसों ने देवताओं को ही चुनौती प्रदान की। इस तरह की घटना वाणासुर से भी संबंधित है। दैत्यराज बलि के 100 पुत्र थे। उसके सबसे बड़े पुत्र का नाम वाणासुर था। जो बचपन से ही भगवान शिव का उपासक था। वाणासुर बड़ा होकर हिमालय पर्वत पर जाकर भगवान शिव की तपस्या करने लगा। उसकी तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने उसे वरदान मांगने को कहा। वाणासुर ने भगवान शिव से उसे सहस्त्रबाहु संग अत्यंत बलशाली होने का वरदान मांगा। भोले शंकर के इस वरदान के चलते कोई भी युद्ध में उसके आगे कुछ समय भी नहीं टिक पाता था। इस अभिमान के चेलते उसने कैलाश पर्वत पहुंच कर भगवान शिव को ही युद्ध की चुनौती दे दी। वाणासुर की इस मूर्खता को देख भगवान शिव ने कहा कि  मूर्ख ! तेरे घमंड को चूर करने वाला पैदा हो चुका है। जिस समय तेरे महल का ध्वज गिरे जाए, तो समझ लेना की तेरा शत्रु आ चुका है।

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वाणासुर की पुत्री ने किया श्री कृष्ण के पौत्र का हरण

वाणासुर की एक उष। नाम की पुत्री थी। एक दिन उषा को सपना आया। जिसमें उसने एक आकर्षक युवा को देखा। उषा उस युवा पर मोहित हो गई। उषा ने सुबह उठा कर अपने स्वप्न वाली बात अपनी सखी चित्रलेखा को बताई। सखी चित्रलेखा ने अपनी योगमाया से अनिरुद्ध का चित्र बनाकर उषा को दिखाया। उषा तुरंत उस चित्र को पहचान गई। सखी चित्रलेखा अपनी योगमाया से द्वारिका जाकर सोते हुए भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध को पलंग सहित उषा के महल में पहुंचा दिया। जब अनिरुद्ध नींद से उठा को अपने आपको एक नए स्थान पर पाया। उसके पलंग के सामने एक सुन्दर कन्या बैठी थी। तब उषा ने अनिरुद्ध को अपने स्वप्न वाली बात बताई।  साथ ही उससे विवाह करने की अपनी इच्छा जाहिर की। अनिरुद्ध भी उषा पर मोहित हो कर उसके साथ महल में रहने लगा। एक दिन उषा के महल से किसी पुरष की आवाज पहरेदारों को सुनाई दी। उन्होंने यह बात वाणासुर को बताई। वाणासुर अपने महल से ध्वज गिरने की बात को समझ गया। उसने सोचा कोई उसके महल में आ चुका है। जो उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। तब वाणासुर ने अनिरुद्ध को बलपूर्वक बंदी बना लिया। जब द्वारिका में अनिरुद्ध के महल से गायब होने की जानकारी मिली। तो सब चिंतित हो गए। अनिरुद्ध को खोजने का काम शुरु हो गया। तब देवऋषि नारद ने  श्रीकृष्ण को बताया की उनके पौत्र अनिरुद्ध वाणासुर के पास बंदी है।

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श्री कृष्ण और भगवान शिव के मध्य शुरु हुआ युद्ध

भगवान श्री कृष्ण बलराम संग वाणासुर से युद्ध के लिए निकल पड़े।. बलराम ने अपने बल से वाणासुर के सभी सैनिको का वध कर दिया।  भगवान श्री कृष्ण और वाणासुर के मध्य भी भीषण युद्ध होने लगा। जब वाणासुर ने युद्ध में भगवान श्री कृष्ण का पलड़ा भारी होते देखा तो उसने भगवान शिव को याद किया। अपने भक्त वाणासुर की पुकार को सुन भगवान शंकर ने अपने रुद्रगणों की सेना को युद्ध में भेज दिया। परन्तु उन्हें भी युद्ध में पराजय का समाना करना पडा। अंत में स्वयं महादेव शिव अपने भक्त की रक्षा के लिए युद्ध में उतरे। भगवान शिव और श्री कृष्ण के मध्य भयंकर युद्ध हो गया। इससे समूची सृष्टि में भय का माहौल पैदा हो गया। श्री कृष्ण को लगा की भगवान शंकर के रहते वे अनिरुद्ध को नहीं छुडा पाएंगे।  तब उन्होंने भगवान शिव की स्तुति करते कहा कि हे देव ! आपने ने कहा था कि मैं वाणासुर के मृत्यु का कारण बनूंगा। आपके रहते यह कार्य संभव नहीं हो सकता। अब आप कोई मार्ग सुझाएं। तब भगवान शिव का इशारा पाते ही श्री कृष्ण ने उन पर निद्रास्त्र चला दिया। जिस से भगवान शिव गहरी निद्रा में चले गए औऱ युद्ध रुक गया। अंत में श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र निकाल कर वाणासुर की भुजाएं काटना शुरू कर दी। भगवान श्री कृष्ण ने वाणासुर की चार भुजाएं छोड़ कर सभी भुजाएं काट दी ।

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जैसे ही भगवान श्री कृष्ण वाणासुर के सर को उसके धड़ से अलग करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र को इशारा कर रहे थे। तभी भगवान शिव जाग गए। एक बार फिर भगवान शिव रणक्षेत्र में आ गए। और कहा कि वाणासुर उनका भक्त है। वह इसको मरने नहीं दे सकते। तब भगवान शिव की बात मान श्रीकृष्ण ने बाणासुर को मारने का विचार तज दिया । तब भगवान शिव ने बाणासुर को अनिरुद्ध को मुक्त करने की आज्ञा द।. बाणासुर ने अपनी पुत्री का हाथ अनिरुद्ध के हाथ में देकर उन्हें विदा किया।

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प्रदीप शाही

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