आखिर कौनसा जीपीएस था आर्यों के पास

आखिर कौनसा जीपीएस था आर्यों के पास जो एक सीधी रेखा में तीन हजार किलोमीटर तक एक के बाद एक मंदिर बनते चले गए। इसे आप ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम कहें या फिर गुरु पोजिशनिंग सिस्टम लेकिन कुछ तो रहा होगा। जो आधुनिक जीपीएस के समान सनातन धर्म में विश्वास रखने वालों का मार्ग दर्शन करता रहा। इसे आप देवीय शक्ति कह कर पल्ला नहीं झाड़ सकते। ये ऐसा कोई विज्ञान रहा होगा जिसकी उत्पति का आज आधुनिक साइंस को ज्ञान नहीं है।

हम बात कर रहे हैं, उत्तर में हिमालय पर्वत में स्थित श्री केदारनाथ धाम से लेकर सूदूर दक्षिण में स्थित श्री रामेश्वरम मंदिर की…

महाकाल से शिव ज्योतिर्लिंगों के बीच कैसा सम्बन्ध है……??

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की भारत में ऐसे शिव मंदिर है जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक सीधी रेखा में बनाये गये है। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक थी जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाये? उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडू का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः रामेश्वरम मंदिरों को 79 डिग्री एल्टीट्यूट और 41 प्वाइंट 54 लोंगटीट्यूटपर भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है।

यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं।  जिसे हम आम भाषा में पंच भूत कहते है। पंच भूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन्ही पांच तत्वों के आधार पर इन पांच शिव लिंगों को प्रतिष्ठित किया गया है।

जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम में है और अतं में अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है!

वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पांच मंदिर।

भोगौलिक रूप से भी इन मंदिरों में विशेषता पायी जाती है। इन पांच मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था, और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। इस के पीछे निश्चित ही कोई विज्ञान होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा।

यह भी पढ़ें ….अंतरिक्ष में मैसेज भेजने की समस्या का हल निकाला इस भारतीय भाषा ने…

इतना ही नहीं इन मंदिरों का करीब चार हजार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं था। तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पांच मंदिरों को प्रतिष्ठित किया गया था?

संभव है कि इसका उत्तर या तो भगवान ही जानते हैं या फिर हमारे वो पूर्वज जिन्होंने आदि शंकराचार्य के काल में जीवन के कुछ पल बिताए हों, कम से कम नासा के किसी वैज्ञानिक के पास तो इसका उत्तर नहीं है।

यह भी पढ़ें ….भगवान जगननाथ मंदिर के अजूबों को क्यों नहीं समझ पाई साइंस ??

केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है। लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते है। आखिर हजारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयोग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया है यह आज तक रहस्य ही है। श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है। तिरूवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है। अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्नि लिंग है। कंचिपुरम के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है और चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान के निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।

अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करनेवाले पांच लिंगो को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्टिापित किया गया है। हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्दिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसा विज्ञान और तकनीक था जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है। माना जाता है कि केवल यह पांच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होगें जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते है। इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है। संभवता यह सारे मंदिर कैलाश को घ्यान में रखते हुए बनाए गए हों जो 81 प्वाइंट 3119 एल्टीटयूट में पड़ता है? उत्तर भगवान शिवजी ही जाने। …

LEAVE A REPLY