-चंद्र देव के पुत्र थे अभिमन्यु
प्रदीप शाही
द्वापर युग में हुए महाभारत काल में भगवान श्री विष्णु हरि के अवतार श्री कृष्ण के अलावा अन्य सभी देवी-देवताओं ने स्वयं या अपने पुत्रों को अवतार रुप में धरती पर भेजा। पौराणिक महाभारत युद्ध में पांडवों व कौरवों के पक्ष में लड़ने वाले हर पात्र का अद्वितीय शौर्य सुनने वाले को हतप्रभ करता है। महाभारत युद्ध में अदम्य साहसी चंद्र देव के पुत्र अभिमन्यु का छल से किया गया अंत बेहद कारुणिक रहा। अभिमन्यु का जन्म से पहले ही अपनी माता के गर्भ में चक्रव्यूह को भेदने की कला को ग्रहण करना आश्चर्य से कम नहीं है। आईए, आज आपको बताए कि आखिर अभिमन्यु ने कैसे चक्रव्यूह को भेदने की कला को सीखा।
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कौन था अभिमन्यु ?
वीर अभिमन्यु भगवान श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा और वीर अर्जुन का पुत्र था। कहा जाता है कि अभिमन्यु चंद्र देव का पुत्र था। चंद्र देव अपने पुत्र से बेहद अधिक प्यार करते थे। इसलिए लंबे समय तक अपने पुत्र से अलग न रहने के लिए ही अभिमन्यु को मानव योनि में महज 16 साल के लिए इस धरती पर भेजा था। बेहद अधिक क्रोधी होने के कारण इस बालक का नाम अभिमन्यु रखा गया। अभिमन्यु के नाम में अभि का अर्थ निर्भय और मन्यु का अर्थ क्रोध होता है। अभिमन्यु का बचपन अपने ननिहाल द्वारिका में व्यतीत हुआ। अभिमन्यु का विवाह महाराज विराट की बेटी उत्तरा से हुआ था। अभिमन्यु के बेटे परीक्षित का जन्म पिता की मौत के बाद हुआ था। परीक्षित ने ही पांडवों के वंश को आगे बढाया था।
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अभिमन्यु ने कैसे सीखा चक्रव्यूह भेदना
कहा जाता है कि अर्जुन प्रतिदिन युद्ध समाप्त होने के बाद अपनी पत्नी सुभद्रा संग महाभारत युद्ध की दिनचर्या और अगले दिन की रणनीति पर चर्चा किया करते थे। एक दिन अर्जुन, सुभद्रा को चक्रव्यूह की रचना के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान कर रहे थे। अर्जुन चक्रव्यूह में प्रवेश करने की सारी जानकारी प्रदान कर रहे थे। उस दौरान सुभद्रा गर्भवती थी। अर्जुन ने गर्भवती सुभद्रा को चक्रव्यूह के हर पक्ष मकरव्यूह, कर्मव्यूह, सर्पव्यूह की जानकारी दी। जानकारी के दौरान सुभद्रा को नींद आ गई। वह केवल चक्रव्यूह को भेदने की जानकारी तो सुन पाई। परंतु इससे बाहर निकलने की जानकारी को नहीं सुन सकी। इस तरह गर्भ में अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदन की जानकारी तो हासिल कर ली, परंतु इसमें से बाहर निकलने की जानकारी हासिल न कर सका। कहा जाता है कि बचपन में अभिमन्यु को शास्त्रों का ज्ञान भगवान श्री कृष्ण के पुत्र प्रदयुम्न ने प्रदान किया। जबकि धनुष विद्या अर्जुन ने स्वयं प्रदान की थी।
अभिमन्य़ु को कैसे मिली वीरगति ?
कौरवों ने पांडवों को कड़ी चुनौती देने के लिए चक्रव्यूह की रचना की। उन्हें मालूम था कि चक्रव्यूह को भेदना औऱ इससे बाहर निकलना केवल अर्जुन ही जानते हैं। कौरवों ने अर्जुन को युद्ध के एक हिस्से में उलझा लिया। ऐसे में वीर अभिमन्यु पांडवों को मिली चुनौती को स्वीकार कर चक्रव्यूह को भेदने के लिए आगे आ गया। अभिमन्यु ने युधिष्ठर को बताया कि वह चक्व्यू को भेदना जानते हैं। परंतु बाहर आने की कला नहीं जानते हैं। आप की सर्वश्रेष्ठ सैन्य टुकड़ी मेरे साथ ही चक्रव्यूह में दाखिल हो। तब हम इस व्यूह रचना को तोड़ पाएंगे। अभिमन्यु एक खिलौने की भांति चक्रव्यूह को तोड़ता भीतर जाने लगा। इससे दुर्योधन व कर्ण चिंतित हो गए। उन्होंने सोचा कि यदि अभिमन्यु को न रोका गया तो हमारी योजना असफल हो जाएगी। चक्रव्यूह के बाहर राजा जयदथ्र पांडवों को रोके हुए था। जबकि भीतर अकेले अभिमन्यु से कौरव सेना घबरा रही थी। ऐसे में दुर्योधन का पुत्र लक्ष्मण अकेला ही अभिमन्यु से भिड़ गया। कौरव सेना भी लक्ष्मण का साथ देने लगी। परंतु अभिमन्यु के पराक्रम के समक्ष लक्ष्मण पस्त हो गया। और मारा गया। पांडवों की ओर से किसी तरह की मदद न मिलने पर कौरवों की सेना ने सभी मानदंडों को भुला कर अकेले अभिमन्यु को मार गिराया। जब अर्जुन को अपने बेटे अभिमन्यु के वीरगति की जानकारी मिली तो उन्होंने जयद्रथ को सूर्यास्त से पहले मारने की प्रतिज्ञा ली। भगवान श्री कृष्ण की मदद से अर्जुन ने अपनी इस शपथ को पूर्ण किया।
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