अदभुत्! झूले में बैठी देवी करती है, जंगली जानवरों से ग्रामीणों की रक्षा

धर्मेन्द्र संधू

भारत में कई ऐसे प्राचीन मंदिर मौजूद हैं जो देश के साथ ही विदेश के श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र भी हैं। इन मंदिरों के साथ कई कहानियां भी जुड़ी हुई हैं। एक ऐसा ही प्राचीन मंदिर उत्तराखंड में है जिसे ‘झूला देवी मंदिर’ के नाम से जाना जाता है।

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झूला देवी मंदिर

देव भूमि उत्तराखंड के शहर रानीखेत से 7 किलोमीटर की दूरी पर चौबटिया नामक स्थान पर स्थित है प्राचीन ‘झूला देवी मंदिर’। मां दुर्गा को समर्पित यह मंदिर 700 साल के करीब पुराना माना जाता है। इस मंदिर को ‘घंटियों वाला मंदिर’ भी कहा जाता है। आज जिस मंदिर के दर्शन होते हैं, उसका निर्माण 1935 में करवाया गया था। झूला देवी को स्थानीय लोगों की कुल देवी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि 1959 में देवी की मूल व प्राचीन मूर्ति चोरी हो गई थी।

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मंदिर से जुड़ी कथा

पहाड़ी क्षेत्र में स्थित इस प्राचीन मंदिर के साथ एक कथा जुड़ी है। इस इलाके में लोग जंगली जानवरों से परेशान थे। तेंदुआ व बाघ जैसे जंगली जानवर ग्रामीणों पर हमला कर उन्हें घायल कर देते थे। यह जानवर ग्रामीणों के पालतु जानवरों व पशुओं को भी नुकसान पहुंचाते थे। यहां रहने वाले लोग अकसर मां दुर्गा से अपनी व अपने पशुओं की रक्षा के लिए प्रार्थना करते रहते थे। मान्यता है कि मां दुर्गा ने एक चरवाहे को सपने में दर्शन दिए थे। माता ने सपने में उस चरवाहे को एक स्थान पर खुदवाई करने को कहा था। इसके बाद उस चरवाहे ने उस स्थान पर जाकर खुदाई की तो उसे वहां मिट्टी में दबी एक मूर्ति मिली। ग्रामीणों ने देवी मां की उस मूर्ति को स्थापित कर एक मंदिर का निर्माण किया। कहते हैं कि उसके बाद वहां के लोग जंगली जानवरों के भय से मुक्त हो गए और जंगली जानवरों ने लोगों को नुकसान पहुंचाना बंद कर दिया।

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ऐसे पड़ा मंदिर का नाम

मंदिर के नामकरण के साथ भी एक कथा जुड़ी है। मान्यता है कि माता के कहने पर ही उनकी मूर्ति को झूले पर स्थापित किया गया था। कहते हैं कि इस इलाके के एक निवासी को मां दुर्गा ने सपने में आकर झूला लगाने को कहा था कि वह झूला झूलना चाहती हैं। इसके बाद लोगों ने एक झूला बनवाकर माता को उस पर विराजमान कर दिया। धीरे-धीरे यह मंदिर झूला देवी के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

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मनोकामना पूरी होने पर भक्त चढ़ाते हैं घंटी

माता के मंदिर में दर्शनों के लिए आने वाले भक्तों का विश्वास है कि मां झूला देवी सब की मनोकामनाएं पूरी करती है। मनोकामना पूरी होने पर भक्तों द्वारा माता के दरबार में तांबे की घंटी चढ़ाई जाती है। मंदिर में लटकी हुई सैंकड़ों घंटियां भक्तों की की इस आस्था व विश्वास का जीता जागता प्रमाण हैं। हवा चलने या हल्की सी हिलजुल से इन घंटियों से पैदा होने वाली मधुर आवाज़ मंदिर में आने वाले भक्तों के मन को आनन्द से भर देती है। वैसे तो सारा साल ही बड़ी संख्या में भक्त मां का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं लेकिन नवरात्र के पावन पर्व पर भक्तों की संख्या बढ़ जाती है। झूला देवी मंदिर के पास ही भगवान राम का मंदिर भी है। माता के दर्शनों के लिए आने वाले भक्त भगवान राम के दर्शन भी करते हैं।

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कैसे पहुंचें

उत्तराखंड में स्थित माता झूला देवी मंदिर तक रेल गाड़ी, बस, हवाई जहाज़ व टैक्सी के द्वारा देश के किसी भी हिस्से से पहुंच सकते हैं। रानीखेत से नज़दीकी हवाई अड्डा पंतनगर में स्थित है। यहां से रानीखेत की दूरी 115 किलोमीटर के करीब है। वहीं नज़दीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम रेलवे स्टेशन है। काठगोदाम से रानीखेत की दूरी 80 किलोमीटर के करीब है। इसके अलावा सड़क मार्ग से भी रानीखेत तक बस, कार या टैक्सी के द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। रानीखेत से माता झूला देवी का दरबार केवल 7 किलोमीटर के करीब दूर रह जाता है।

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