प्रदीप शाही
–जोधपुर में आज भी मौजूद हैं रहस्यमयी गुफाएं
धरती के नीचे और उपर दोनों तरफ कई लोकों का उल्लेख पुराणों में वर्णित है। धरती के नीचे सात तरह के लोक अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल हैं। जबकि धरती के उपर भूवर्लोक, स्वर्लोक का उल्लेख मिलता है। धरती के नीचे विद्यमान लोक में जाने के लिए आज भी कई रास्ते मौजूद हैं। जोधपुर में आज भी कई रहस्यमयी गुफाएं मौजूद हैं। जिनका कोई ओर–छोर आज भी पता नहीं लगाया जा सकता है। इसके अलावा भी समुद्र में मौजूद कई अन्य रास्तों की सटीक जानकारी हासिल नहीं की जा सकी है।
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धरती के नीचे कौन–कौन से लोक हैं विद्यमान
पुराणों में धरती के नीचे सात तरह के लोक लोक अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल का उल्लेख मिलता है। पुराणों अनुसार प्रत्येक लोक की लंबाई चौड़ाई दस–दस हजार योजन की बताई गई है। भूमि के भीतर जगह–जगह बने हुए बिल भी धरती के नीचे जाने वाले लोक के रास्ते माने जाते हैं। धरती के नीचे बने लोकों में भी स्वर्ग समान अथाह सुख–सुविधाओं का होना माना गया है। धरती के नीचे स्थापित लोकों में मायावी असुर और नागों का वास प्रमुख तौर से माना गया है।
धरती के नीचे लोकों की जानकारी
कहा जाता है कि अतल लोक में मयदानव के पुत्र असुर बल का वास है। असुर बल ने छियानवें तरह की माया रची हुई है। जबकि वितल लोक में भगवान हाटकेश्वर नामक महादेव जी अपने गणों संग वास करते हैं। प्रजापति की सृष्टि वृद्धि के लिए भवानी भी वहां रहती हैं। सबसे खास बात यह है कि उन दोनों के प्रभाव से वहां हाटकी नाम की एक नदी भी बहती है। यहां पर स्वर्ग समान सभी सुविधाएं सुख, संपत्ति, आनंद, भोग है। वैभव युक्त भवन, पार्क व खेलने के स्थानों पर दैत्य, दानव व नाग रहते हैं। यहां पर इनके भाई, महिलाएं, बेटियां व अन्य सेवक आपस में बेहद प्रेम से रहते हैं। इनके रहन सहन में देवता भी विघ्न नहीं डालते हैं। कहां जाता है कि यहां कभी भी बुढ़ापा नहीं होता। हर कोई हमेशा जवान और सुंदर ही रहता है। इस क्षेत्र की भूमि शुक्ल, काली, अरुण, पीली, कंकरीली, पथरीली और सुवर्णमयी हैं।
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वितल लोक के नीचे सुतल लोक है। इस लोक में पवित्रकीर्ति विरोचन के पुत्र महाराजा बलि रहते हैं। धरती पर महाराजा बलि से वामन रूप में अवतरित हुए भगवान ने उनके तीनों लोक छीन लिए थे।
सुतल लोक से नीचे तलातल लोक है। इस लोक में त्रिपुराधिपति दानवराज मय का राज और वास है। तलातल लोक के नीचे महातल में कश्यप की पत्नी कद्रू से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सांपों का क्रोधवश नामक एक वंश रहता है। इनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण नामक प्रधान नागों का वास हैं। जिनके बड़े–बड़े फन हैं। तलातल लोक के नीचे रसातल लोक में पणि नामक दैत्यों और दानवों का वास है। यह निवातकवच, कालेय और हिरण्यपुरवासी भी कहलाते हैं। इनका देवताओं से हमेशा वैर रहा है। रसातल लोक के नीचे पाताल लोक है। वहां शंड्ड, कुलिक, महाशंड्ड, श्वेत, धनन्जय, धृतराष्ट्र, शंखचूड़, कम्बल, अक्षतर और देवदत्त नामक क्रोधी और बड़े बड़े फनों वाले नाग रहते हैं। वासुकि नाग इनका प्रधान नाग है। इन नागों के किसी के पांच किसी के सात, दस, सौ और हजार सिर भी हैं। उनके मस्तकों पर सुशोभित दमकती हुई मणियां से निकलने वाली रोशनी से पाताल लोक का समूचा अंधकार स्वत: ही समाप्त हो जाता है।
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यहां पर हिमालय के समान ही एक अरुणयन नामक पर्वत है। कहा जाता है कि जब देवताओं ने समुद्र मंथन के बाद दैत्यों का नाश कर अमृतपान किया था। तब उन्होंने अमृत पीकर उसका बचा हुआ भाग पाताल में ही रख दिया था। तभी से वहां जल का आहार करने वाली अग्नि सदा जलती रहती है। इस अग्नि को देवता नियंत्रित करते हैं। सबसे खास बात यह है कि अग्नि अपने स्थान के आस–पास नहीं फैलती।
मौजूदा समय में धरती पर ऐसे कई स्थान हैं। जिनके नाम के आगे पाताल लगा हुआ है। जैसे पाताल कोट, पाताल पानी, पाताल द्वार, पाताल भैरवी, पाताल दुर्ग, देवलोक, पाताल भुवनेश्वर नाम प्रमुख हैं। नर्मदा नदी को पाताल नदी भी कहा जाता है। इस नदी के भीतर भी ऐसे कई स्थान हैं, जहां से पाताल लोक पहुंचा जा सकता है। नदी के अलावा ऐसी कई गुफाएं भी हैं, जहां से पाताल लोक जाया जा सकता है। धरती पर कई ऐसी गुफाएं हैं। जिनका एक सिरा तो दिखाई देता है, लेकिन दूसरा कहां खत्म होता है, इसके बारे किसी को कुछ भी पता नहीं है। यह भी कहा जाता है कि जोधपुर के पास भी कई ऐसी गुफाएं हैं। जिनका दूसरा सिरा आज तक कोई भी नहीं खोज सका है। इतना ही नहीं पिथौरागढ़ क्षेत्र में भी है पाताल भुवनेश्वर गुफाएं। जिनकी कोई भी थाह नहीं ले सका है। कहा जाता है कि इन अंधेरी गुफाओं में देवी–देवताओं की बड़ी संख्या में मूर्तियों के साथ ही एक ऐसा खंभा लगा है, जो निरंतर बढ़ रहा है। इसके अलावा समुद्र में भी ऐसे कई रास्ते हैं। जहां से पाताल लोक पहुंचा जा सकता है। पुराणों में इसकी काफी जानकारी है। प्राचीनकाल में समुद्र के तटवर्ती इलाकों को पाताल लोक कहा जाता था। इतिहासकारों अनुसार वैदिक काल में धरती के तटवर्ती क्षेत्र और खाड़ी देश को पाताल का ही हिस्सा माना जाता था।
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पाताल लोक संबंधित रोमांचक कथाएं…
एक कथानुसार कहते हैं कि एक बार माता पार्वती के कान की बाली (मणि) गिर गई। वह मणि पानी में खो गई। खूब खोज–खबर की गई, लेकिन मणि नहीं मिल पाई। छानबीन के दौरान पता चला कि माता पार्वती की वह मणि पाताल लोक में शेषनाग के पास पहुंच गई है। शेषनाग को जब इसकी जानकारी मिली तो शेषनाग ने पाताल लोक से ही जोरदार फुफकार मारी। और धरती के अंदर से गरम जल फूट पड़ा। गरम जल के साथ माता की पानी में गिरी मणि भी बाहर निकल आई। मौजूदा समय में इस स्थान को मणिमहेश झील कहा जाता है।
पुराणों में पाताल लोक के बारे में सबसे लोकप्रिय कथा भगवान विष्णु के अवतार वामन अवतार और राजा बलि की मानी जाती है। राजा बली ही पाताल लोक के राजा माने जाते थे। जिन्हें वामन अवतार ने धरती से पाताल लोक भेज दिया था।
रामायण में भी रावण के भाई अहिरावण द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण का हरण कर पाताल लोक ले जाने पर श्री हनुमान ने वहां जाकर अहिरावण का वध कर श्री राम व लक्ष्मण को छुड़वाया था।
धरती के उपर स्थापित लोक
पुराणों में धरती सहित त्रैलोक्य का उल्लेख मिलता है। इसे कृतक त्रैलोक्य कहा जाता है। इस कृतक त्रैलोक्य में भूलोक, भुवर्लोक व स्वर्लोक की जानकारी वर्णित है।
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कृतक त्रैलोक्य
कृतक त्रैलोक्य को त्रिभुवन भी कहा जाता है। इसके बारे में पुराणों में कहा गया है कि यह नश्वर है। भगवान श्री कृष्ण इसे परिवर्तनशील मानते हैं। इसकी एक निर्धारित आयु है। त्रैलोक्य को तीन भाग में विभाजित किया गया है।
पहला भाग भूलोक है। पुराणों में दर्ज जानकारी अनुसार जितनी दूर तक सूर्य, चंद्रमा का प्रकाश जाता है। उस भाग को पृथ्वी लोक कहा जाता माना जाता है कि हमारी पृथ्वी सहित अन्य भी कई पृथ्वियां हैं।
दूसरा भाग भुवर्लोक है। पृथ्वी और सूर्य के बीच के भाग को भुवर्लोक कहते हैं। यह सभी ग्रह नक्षत्रों का मंडल है।
तीसरा भाग स्वर्लोक है। जिसे स्वर्गलोक भी कहा जाता है। पुराणों अनुसार सूर्य और ध्रुव के बीच चौदह लाख योजन का अंतर है। इसी अंतर के बीच में सप्तर्षि का मंडल है।
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