अंधविश्वासों में महत्वपूर्ण वैज्ञानिक तथ्यों का है समावेष

 

-भारतीय संस्कृति में सदियों से जारी अंधविश्वास आज भी हैं कायम

भारतीय संस्कृति पूरे विश्व भर में अपनी अलग पहचान रखती है। भारतीय संस्कृति के अपने रीति रिवाज़, मान्यताएं, परम्पराएं व लोक विश्वास हैं जो कि भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। चाहे विज्ञान ने कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो।  फिर भी भारतीय संस्कृति की यह विशेषताएं निरंतर पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रहीं हैं।

लोक विश्वास भारतीय संस्कृति में अपना विशेष स्थान रखते हैं। भारतीय जन मानस में कई प्रकार के लोक विश्वास व अंधविश्वास व्याप्त हैं। जिन पर कम पढ़े लिखे लोग खासकर ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित लोग आज भी पहरा दे रहे हैं। लोक विश्वास कब अंधविश्वास का रूप धारण कर जाएं यह पता नहीं चलता, लेकिन इन लोक विश्वासों के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी विद्यमान हैं। आज हम लोक विश्वासों के पीछे के वैज्ञानिक तथ्यों के ऊपर चर्चा करेंगे। लोक में कुछ ऐसे विश्वास प्रचलित हैं जो समय के साथ-साथ रूढ़ हो गए हैं।

विश्वास और अंध विश्वास में अंतर

विश्वास और अंधविश्वास में बहुत बड़ा अंतर है। विश्वास हमें विवेकवान बनाता है, तर्क बुद्धि को बल देता है। जबकि अंधविश्वास विवेक को भ्रष्ट करता है तथा इंसान को तर्कहीन बनाता है, लेकिन फिर भी लोग अंधविश्वासों को मानते हुए शुभ-अशुभ का विचार करके ही आगे बढ़ते हैं या कोई काम करते हैं।

अंधविश्वास के पीछे के वैज्ञानिक तथ्य

नींबू मिर्ची लटकाना

घरों व दुकानों के बाहर अकसर लोगों द्वारा नींबू व मिर्ची लटकाई जाती है माना जाता है कि इससे घर परिवार व कारोबार को बुरी नज़र नहीं लगती। लेकिन इस विश्वास के पीछे वैज्ञानिक तथ्य यह है कि नींबू व मिर्ची में साइट्रिक एसिड पाया जाता है जिससे कीटाणु खत्म होते हैं और कीड़े-मकौड़े नहीं आते।

शव यात्रा व दाह संस्कार से लौटकर स्नान करना

किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी शव यात्रा में शामिल होने व अंतिम संस्कार से लौटने के बाद स्नान करना जरूरी समझा जाता है। ऐसा ना करना अशुभ माना जाता है। इस विश्वास के पीछे वैज्ञानिक तथ्य है कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद मृतक शरीर में कई प्रकार के बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं जिनका दूसरे स्वस्थ शरीरों में  फैलने का डर रहता है इस लिए शव यात्रा के बाद नहाना जरूरी माना जाता है ताकि बैक्टीरिया से दूर रहा जा सके।

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ग्रहण के समय बाहर न निकलना

ग्रहण के समय अक्सर घर के बुज़र्ग किसी को घर से बाहर नहीं निकलने देते। माना जाता है कि ग्रहण के समय बुरी ताक़तें हावी हो जाती हैं। इस के पीछे वैज्ञानिक तथ्य है कि ग्रहण के समय सूर्य की किरणें ज्यादा प्रभावी होती हैं। जिनके संपर्क में आने से त्वचा रोग होने की संभावना बनी रहती है। साथ ही इन किरणों का नंगी आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है यहां तक कि इंसान अंधा भी हो सकता है।

 

रात के समय नाखून काटना

रात को नाखून काटने को लेकर लोगों में अंधविश्वास है कि रात को नाखून काटना अशुभ होता है इसका बुरा प्रभाव भाग्य पर पड़ता है। रात को नाखून ना काटने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य है कि पुराने समय में बिजली ना होने के कारण रात के अंधेरे में नाखून नहीं काटे जाते थे क्योंकि उस समय नाखून काटने के लिए औजारों का इस्तेमाल होता था। इस लिए रात के अंधेरे में नाखून के साथ-साथ उंगलियां कटने डर बना रहता था।

 

बिल्ली द्वारा रास्ता काटना

अगर कहीं जाते समय बिल्ली रास्ता काट जाए तो इसे अशुभ माना जाता है। पुराने समय में आने जाने का मुख्य साधन बैल व घोड़ा गाड़ी थी। जब रात के समय लोग अपने कामों व व्यापार के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाया करते थे तो अचानक बिल्ली के रास्ते में आने से बिल्ली की अंधेरे में चमकती आंखों से बैल या घोड़े डर जाते थे इस लिए कुछ समय के लिए बैल अथवा घोड़ा गाड़ियां रोक दी जाती थी।  यही आगे चलकर अंधविश्वास बन गया।

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शाम के समय झाड़ू लगाना

शाम के समय या सूर्यास्त के बाद झाड़ लगाना अशुभ माना जाता है। पुराने समय में बिजली की सुविधा ना होने के कारण शाम के समय या सूर्यास्त के बाद झाड़ू लगाने से ज़मीन पर पड़ी किसी कीमती वस्तु के गुम होने काख़तरा बना रहता था। इस लिए इस समय झाड़ू लगाने के लिए मना किया जाता था। जो बाद में अंधविश्वास में बदल गया।

नदी के पानी में सिक्के डालना

मान्यता है कि नदी के पानी में सिक्के डालने से मनोकामना पूर्ण होती है व सफलता मिलती है। लेकिन पानी में सिक्के डालने के पीछे वैज्ञानिक कारण है। पुराने समय में सिक्के पीतल व तांबे के होते थे । तांबे व पीतल का सिक्का पानी में डालने से पानी में मौजूद कीटाणु मर जाते थे और पानी शुद्ध होता था। लेकिन समय के साथ साथ यह क्रिया अंधविश्वास में बदल गई।

 

मंगलवार व गुरुवार को बाल न धोना

ज्यादातर लोग मंगलवार व गुरुवार को बाल नहीं धोते इसका कारण इन दिनों में बाल धोना अशुभ माना जाता है। पुराने समय में पानी दूर से किसी तालाब या कुएं से भरकर लाना पड़ता था। इस लिए पानी व समय को बचाने के लिए लोग सप्ताह में एक-दो दिन बाल नहीं धोते थे, लेकिन धीरे-धीरे लोगों ने इसे अंधविश्वास के साथ जोड़ लिया।

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घर से दहीं खाकर निकलना

मान्यता है कि जब भी घर से किसी शुभ व अच्छे कार्य के लिए निकले तो दहीं खाकर निकलना चाहिए तो भाग्य साथ देता है। इस विश्वास के पीछे भी वैज्ञानिक तथ्य है कि दहीं खाने से शरीर में ताज़गी व ठंडक बनी रहती है। साथ ही दहीं में शक्कर डालकर खाने से शरीर में ग्लूकोज़ की कमी नहीं होती जिसके कारण थकान महसूस नहीं होती।

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