सर्व सिद्धियों की दात्री है ‘मां सिद्धिदात्री’

-मां दुर्गा का नौवा स्वरुप है मां सिद्धिदात्री
नवरात्रों के अंतिम दिन जग जननी, दुष्टों का संहार करने वाली मां दुर्गा के नौंवे स्वरुप मां सिद्धिदात्री का पूजन करने का विधान है। सच्चे मन, पूर्ण निष्ठा से माता का पूजन करने वालों को मां सिद्धिदात्री सभी सिद्धियां प्रदान करती है। आईए, आज आपको मां सिद्धिदात्री के पूजन के बारे जानकारी प्रदान करे।

मां भक्तों को प्रदान करती हैं यह सिद्धियां
मार्कण्डेय पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में कुल 18 सिद्धियों अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक्‌सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व और सर्वन्यायकत्व है। इन सभी सिद्धियों को मां सिद्धिदात्री का पूर्ण निष्ठा से पूजन कर हासिल किया जा सकता है। देवीपुराण अनुसार भगवान शिव ने भी माता की कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण देवों के देव महादेव को ‘अर्द्धनारीश्वर’ के नाम से भी पूजा जाता है। हर इंसान का यह फर्ज बनता है कि वह मां सिद्धिदात्री की कृपा हासिल करने के लिए हर समय प्रयासरत रहे। माता की आराधना कर उनकी कृपा से इस दुख रूपी संसार में रह कर भी सभी सुखों का भोग करते हुए मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।

नवरात्रि के नौंवे दिन होती हैं सभी मनोकामनाएं पूर्ण
मां दुर्गा की नौवीं शक्ति मां सिद्धिदात्री हैं। नवरात्र पूजन के अंतिम यानि नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा करने का विधान है। नवरात्रि पर माता की अराधना कर नौंवे दिन पूजन करने के बाद सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मां दुर्गा ने इस समूचे जगत का कल्याण करने के लिए नौ रुपों को धारण किया था। मां अंतिम दिन अपने भक्तों को रिद्धि सिद्धि प्रदान करती हैं।

 

मां का स्तुति मंत्र
स्तुति
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
अर्थ
हे देवी मां! सर्वत्र विराजमान और मां सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे देवी मां, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।

सिंह पर सवार है माता सिद्धिदात्री
सिंह पर सवार मां सिद्धिदात्री देवी की चार भुजाएं हैं। दायीं भुजा में माता चक्र और गदा धारण किए रहती है। जबकि बांयी भुजा में शंख और कमल का फूल धारण किए रहती हैं। कमल के आसन पर विराजमान रहने वाली मां सिद्धिदात्री की देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी पूजा करते हैं।

देवी सिद्धिदात्री का कवच मंत्र
ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो। हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥ ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥
भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती और क्षमा प्रार्थना करें।हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है। उसे लोगों में बांट दे। हवन की बची भस्म को भक्तों में बांट दें। क्योंकि यह भस्म रोग, संताप, दुख दर्द, ग्रह बाधा से रक्षा करती है।

माता की आरती
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता।
तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥

तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है॥

रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥

तू सब काज उसके करती है पूरे।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अंबे सवाली॥

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥

प्रदीप शाही

LEAVE A REPLY