विश्व का पहला मंदिर… जिसमें नाग शय्या पर बिराजमान हैं भगवान शिव

भारत एक आस्था प्रधान देश है। भारतीय लोगों का ईश्वर में दृढ विश्वास है। भारत में मौजूद असंख्य मंदिर इसका प्रमाण हैं। यह मंदिर देवी-देवताओं से संबंधित हैं और साथ ही भगवान शिव के गले का आभूषण कहे जाने वाले नाग देवता के मंदिर भी देश के कोने-कोने में स्थित हैं। नाग पूजा की परंपरा भारत में सदियों से चली आ रही है। भारत में नाग को देवता मानते हुए इसकी पूजा की जाती है। आज हम आपको एक ऐसे नाग मंदिर के बारे में जानकारी देंगे जो साल में केवल एक बार ही खुलता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में नाग देवता खुद मौजूद हैं।

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नागचंद्रेश्वर मंदिर

नागचंद्रेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। यह मंदिर प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंज़िल पर स्थित है। इस मंदिर के कपाट भक्तों के लिए साल में केवल एक बार ही नागपंचमी के दिन खोले जाते हैं। मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं इस मंदिर में रहते हैं। इस मंदिर का निर्माण राजा भोज ने 1050 ई. के आस-पास करवाया था। बाद में 1732 में सिंधिया घराने के महाराजा राणोजी सिंधिया ने प्राचीन महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और साथ ही नागचंद्रेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार भी हो गया।

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मंदिर में स्थापित है शिव-पार्वती की अद्भुत मूर्ति

नागचंद्रेश्वर मंदिर में भगवान शिव और देवी पार्वती की अद्भुत मूर्ति स्थापित है जो 11वीं शताब्दी की मानी जाती है। इस अद्भुत मूर्ति में फन फैलाए हुए नाग के आसन पर भगवान शिव और देवी पार्वती बिराजमान हैं। साथ ही इस मूर्ति में भगवान शिव और देवी पार्वती के साथ गणेश जी के दर्शन भी होते हैं। यह मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें भगवान शिव सर्प शय्या पर बिराजमान हैं। अन्य मंदिरों में भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या पर बिराजमान होते हैं। कहा जाता है कि इस अद्भुत मूर्ति को नेपाल से लाकर स्थापित किया गया था। शिव-शक्ति का साकार रूप यह मूर्ति मराठाकालीन कला का सर्वश्रेष्ठ प्रमाण है।

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नागराज तक्षक ने की थी तपस्या

मान्यता के अनुसार भगवान शिव को मनाने के लिए नागराज तक्षक ने घोर तपस्या की थी। इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नागराज तक्षक को अमर रहने का वरदान दिया था। मान्यता है कि इसके बाद नागराज तक्षक ने भगवान शिव के पास ही निवास कर लिया। और साथ ही नागराज की यह मंशा थी कि उसके एकांत में किसी प्रकार का कोई विघ्न ना पड़े। इसके बाद से ही सदियों से यह प्रथा निरंतर जारी है। नागराज के सम्मान में यह मंदिर सारा साल बंद रहता है और केवल नाग पंचमी के दिन ही खुलता है।

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दर्शन करने से होता है कालसर्प दोष दूर

मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन खुलने वाले इस प्राचीन मंदिर में दर्शन करने से ही इंसान कालसर्प दोष से मुक्त हो जाता है। नाग पंचमी के दिन दर्शन करने के लिए भक्तों का तांता लग जाता है।

नागपंचमी पर ही खुलते हैं मंदिर के कपाट

हर साल नाग पंचमी के अवसर पर एक बार ही नागचंद्रेश्वर मंदिर के कपाट रात 12 बजे से अगली रात के 12 बजे तक खुलते हैं। इस मंदिर में सबसे पहले महानिर्वाणी अखाड़े के महंतों द्वारा पूजा की जाती है। उसके बाद स्थानीय कलेक्टर द्वारा मंदिर में सरकारी पूजा की जाती है। सरकारी पूजा की परंपरा राजाओं के समय से चली आ रही है।

धर्मेन्द्र संधू

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