यूनानियों से 800 साल पहले हमारे ऋषि मुनियों ने विज्ञान व  गणित को दिए ये फार्मूले

-प्रदीप शाही

भारतीय ऋषियों के आविष्कारों की पहचान आज भी है कायम

हमारे वेदों में ज्ञान और विज्ञान से संबंधित ऐसी जानकारी संग्रहित है। जिसे आधुनिक विज्ञान आज खोजने में जुटा है। जबकि सत्य यह है कि इन्हें हमारे भारतीय ऋषियों ने सदियों पहले ही खोज लिया था। आज का विज्ञान जो खोज कर रहा है। इन आविष्कारों को वह अपना बता रहा है। इतना ही नहीं इन आविष्कारों पर पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक  अपनी खोज का लेबल लगा रहे हैं। हमारे इन भारतीय ऋषियों के किए गए आविष्कारों की पहचान आज धूमिल हो चुकी है। जबकि यह सिद्ध हो चुका है कि भारत का विज्ञान और धर्म अरब के रास्ते यूनान पहुंचा और वहां से यूनानियों ने इस ज्ञान के दम पर नए आविष्कार किए और सिद्धांत बनाए। इन सिद्धांतों ने आधुनिक विज्ञान की मदद की।

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पाइथागोरस नहीं बौधायन थे ज्यामिति के रचयिता

मौजूदा समय में समूचे विश्व में यूनानी ज्यामितिशास्त्री पाइथागोरस और यूक्लिड के सिद्धांत ही पढ़ाए जाते हैं। जबकि असल में भारत के महान गणितज्ञ बौधायन ने शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र की रचना की थी। बौधायन ने रेखागणित, ज्यामिति के नियमों की खोज पाइथागोरस की ओर से खोजे गए सिद्धांतों को 800 ईसा पूर्व ही खोज लिया था। उस समय भारत में रेखागणित, ज्यामिति (त्रिकोणमिति) को शुल्व शास्त्र कहा जाता था।

आपको को यह बता दें कि शुल्व शास्त्र के आधार पर ऋषि मुनि विविध आकार की यज्ञवेदियों का निर्माण करते थे। बौधायन ने दो समकोण समभुज चौकोण के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी। क्षेत्रफल का समकोण, समभुज चौकोन बनाना, उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान वृत्त में परिवर्तित करना, इस तरह के अनेक कठिन सवालों का प्रश्नों को बौधायन ने आसानी से सुलझा दिया था।

योगसूत्र के रचयिता पतंजलि थे तन और मन के चिकित्सक

योगसूत्र के रचयिता पतंजलि को भारत के पहले तन और मन (मनोवैज्ञानिक) के चिकित्सक कहा जाता है। काशी में महान चिकित्सक पतंजलि का दूसरी शताब्दी में सभी तरफ बोलबाला था। पतंजलि ने योगसूत्र, पाणिनी के अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर तीन ग्रंथों की रचना की। पतंजलि ने योगशास्त्र को पहली बार चिकित्सा और मनोविज्ञान से जोड़ा। आज विश्व भर में लोग योग के माध्यम से लाभ उठा रहे हैं। राजा भोज ने चिकित्सक पतंजलि को तन के साथ मन के चिकित्सक की उपाधि दे कर सम्मानित किया था। सबसे खास बात यह है कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्था (एम्स) ने निरंतर पांच साल की गई शोध में यह निष्कर्ष निकाला कि योगसाधना से कैंसर (कर्क रोग) से मुक्ति पाई जा सकती है।

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रसायन शास्त्र, धातु विज्ञान के माहिर थे नागार्जुन

नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किए। सबसे अहम बात यह है कि रसायन शास्त्र पर नागार्जुन ने रस रत्नाकर और रसेन्द्र मंगल नामक पुस्तकों की रचना की। जो बेहद प्रसिद्ध हुई।

रसायनशास्त्री व धातुकर्मी होने के साथ-साथ नागार्जुन ने अपनी चिकित्सकीय ‍सूझ-बूझ से कई खतरनाक रोगों के उपचार के लिए औषधियां भी तैयार की थी। नागार्जुन की चिकित्सा विज्ञान में कक्षपुटतंत्र, आरोग्य मंजरी, योग सार और योगाष्टक नामक पुस्तकें बेहद अहम हैं। इतना ही नहीं नागार्जुन ने स्वर्ण (सोना) धातु और पारे पर भी शोध की। उनके द्वारा किए प्रयोग और शोध आज भी चर्चा में रहे हैं। नागार्जुन ने पारे पर गहन अध्ययन कर लगातार बारह साल तक शोध की। सबसे खास बात यह है कि नागार्जुन पारे से सोना बनाने की विधि भी जानते थे। नागार्जुन ने अपनी लिखित किताब में बताया कि पारे के कुल 18 संस्कार होते हैं। पश्चिमी देशों में नागार्जुन के पश्चात जो भी प्रयोग हुए। उनका मूलभूत आधार नागार्जुन के सिद्धांत ही है। नागार्जुन का जन्म 931 में गुजरात में सोमनाथ के निकट दैहक नामक किले में हुआ माना जाता है।

त्वचा के महान चिकित्सक थे आचार्य चरक

भारत के ऋषियों ने शरीर को तंदरुस्त रखने के लिए अनेक शोध कर कई ग्रंथों की रचना की। ऋषि धन्वंतरि, चरक, च्यवन और सुश्रुत ने विश्व को पेड़-पौधों और वनस्पतियों पर आधारित कई महत्वपूर्ण  चिकित्साशास्त्र दिए। आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान में प्रमुख रूप से होती है। आचार्य चरक ने 300-200 ईसा पूर्व चरक संहिता ग्रंथ की रचना की। इसी वजह से आचार्य चरक को त्वचा चिकित्सक भी कहा जाता है। आचार्य चरक ने शरीर शास्त्र, गर्भ शास्त्र, रक्ताभिसरण शास्त्र, औषधि शास्त्र पर शोध किया। इतना ही नहीं मधुमेह (शूगर), क्षय रोग, हृदय विकार (हार्ट अटैक) जैसे  रोगों के उपचार के लिए औषधि के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान की।

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आचार्य चरक के अलावा ऋषि सुश्रुत ने अथर्ववेद से ज्ञान प्राप्त कर तीन खंडों में आयुर्वेद पर प्रबंध लिखे। इन्होंने दुनिया के सभी रोगों के उपचार का उपाय और उससे बचाव का तरीका भी बताया। इन्होंने साथ ही अपने ग्रंथ में इस तरह की जीवन शैली के बारे जानकारी प्रदान की। ताकि इंसान को किसी भी तरह का कोई रोग और शोक न हो। आठवीं शताब्दी में चरक संहिता का अरबी भाषा में अनुवाद किया गया। चरक संहिता ग्रंथ की पहचान विश्व भर में है।

विश्व के पहले व्याकरण के रचयिता थे पाणिनी

विश्व का पहला व्याकरण पाणिनी द्वारा रचित माना जाता है। 500 ईसा पूर्व पाणिनी ने भाषा के शुद्ध प्रयोगों की सीमा निर्धारित की थी। पाणिनी ने भाषा को सबसे सुव्यवस्थित रूप दिया और संस्कृत भाषा को व्याकरणबद्ध किया। आठ अध्यायों और चार हजार संस्कृत भाषा के सूत्रों को पाणिनी ने अष्टाध्यायी व्याकरण नामक ग्रंथ में बेहद तर्कसंगत व वैज्ञानिक ढंग से संग्रहित किया।

अष्टाध्यायी व्याकरण ग्रंथ में मौजूदा भारतीय समाज का पूरा चित्र दिखाई देता है। इस ग्रंथ में उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, खान-पान, रहन-सहन की समूची जानकारी है। अष्टाध्यायी का जन्म आधुनिक पेशावर (पाकिस्तान) के करीब उत्तर-पश्चिम भारत के गांधार में शालातुला स्थान पर हुआ था। गौर हो पाणिनी से पहले भी कई विद्वानों ने संस्कृत भाषा को नियमों में बांधने का प्रयास किया था। परंतु पाणिनी का शास्त्र सबसे खास है।

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19वीं सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी फ्रेंज बॉप (14 सितंबर 1791- 23 अक्टूबर 1867) ने पाणिनी के कार्यों पर शोध किया। उन्हें पाणिनी के लिखे हुए ग्रंथों में, संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को पहले से अधिक मजबूत करने के सूत्र मिले। पाणिनी के लिखे ग्रंथ से आधुनिक भाषा विज्ञान को विशेष मदद मिली। विश्व की सभी भाषाओं के विकास में पाणिनी के ग्रंथ का अहम योगदान माना गया है।

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