भगवान के सिर के बाल, ठोडी के घाव में छिपे हैं अनुसुलझे रहस्य

-हजारों साल से गर्भगृह में जल रहे हैं चिराग
–तिरुपति बाला जी के मंदिर में छिपे हैं कई रहस्य
भारत के हर राज्य में हजारों की तादाद में स्थापित प्राचीन मंदिर देश की पुरातन संस्कृति की धरोहर हैं। इनमें से बड़ी संख्या में एेसे मंदिर हैं। जो आज भी साइंस के लिए अजूबे से कम नहीं हैं। इनके रहस्यों को कोई नहीं समझ पाया है। एेसे ही एक रहस्यमयी प्राचीन मंदिर श्री वेंकटेश्वर वेंकटाद्रि, वैंकटचला नामक पर्वत की सातवीं चोटी पर स्थित है। इस मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित भगवान तिरुपति बाला जी की प्रतिमा के सिर के बाल, ठोडी पर घाव के अलावा कई अन्य रहस्य हजारों सालों से अनसुलझे हैं। इतना ही नहीं इस मंदिर के गर्भगृह में हजारों सालों से चिराग अनवरत जल रहे हैं।


कहां स्थित है मंदिर श्री वेंकटेश्वर तिरुपति बाला जी
इतिहासकारों अनुसार 5वीं शताब्दी में यह क्षेत्र हिंदुओं का प्रमुख धार्मिक केंद्र था। 9वीं शताब्दी में कांचीपुरम के पल्लव शासकों ने इस पर कब्जा कर लिया। जबकि 15वीं शताब्दी में तिरुपति बालाजी मंदिर को प्रसिद्धि मिली। तमिल साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगम कहा जाता है। यह मंदिर तिरुपति में स्थित है जो आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले का हिस्सा है। इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय की ओर से की गई बताई जाती है। यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता है। इस मंदिर की महिमा का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार कहा गया है। कहा जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों तरफ स्थित पहाड़ियां, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं सप्तगिरि कहलाती हैं। यह पवित्र व प्राचीन मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि, वैंकटचला नामक सातवीं चोटी पर स्थित है। इसी कारण बालाजी को भगवान ‘वेंकटेश्वर’ और ‘श्रीनिवास’ कहा जाता है। बालाजी को भगवान विष्णु का ही एक रूप माना गया है।

मंदिर के गर्भगृह में विराजमान है भगवान वैंकटेश्वर
वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्‍हें वैंकटेश्‍वर भगवान कहा जाने लगा। इन्‍हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान वैंकटेश्चर की प्रतिमा स्थापित है। यह मुख्य मंदिर के प्रांगण में है। मंदिर प्रांगण में मनमोहक अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर हैं। मंदिर प्रांगण में में मुख्य दर्शनीय स्थलों में पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम तिरुमला राय मंडपम, आईना महल, ध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम, श्री वरदराजस्वामी श्राइन पोटु प्रमुख हैं।

अनसुलझे रहस्यों के नाम से प्रसिद्ध है तिरुपति बाला जी मंदिर

बाजाजी की मूर्ति पर हैं चोट के निशान
बाला जी की प्रतिमा पर चोट के निशान दिखाई देते हैं। पौराणिक किवदंती अनुसार भगवान बालाजी का एक भक्त प्रतिदिन दुर्गम पहाड़ियों को पार को भगवान को दूध अर्पित करने आता था। भक्त की इस अथाह भक्ति और उसकी कठिनाई को देखते हुए भगवान ने फैसला किया कि वह अब प्रतिदिन भक्त की गौशाला में जाकर खुद ही दूधपान करने जाएंगे। इस फैसले के बाद भगवान ने रोजाना मनुष्य का रुप धारण कर गौशाला जाना शुरु कर दिया। एक दिन उस भक्त ने मनुष्य रूप में भगवान को दूध पीते देख लिया। भक्त ने गुस्से में आकर उनकर प्रहार कर दिया। प्रहार से खून निकलने लगा। उस प्रहार का निशान आज भी भगवान की ठोडी पर मौजूद है। इसीलिए हर रोज भगवान को ठोडी पर हुए घाव पर औषधि के रूप में चंदन का लेप लगाया जाता है।

प्रतिमा के बाल आज भी हैं रेशमी
भगवान बालाजी के प्रतिमा के सिर के बाल आज भी रेशमी बाल हैं। सबसे खास बात यह है कि यह बाल कभी उलझते नहीं है। साथ ही यह बाल हमेशा ही ताजा लगते है। बालाजी को प्रतिदिन नीचे धोती और उपर साड़ी से सजाया जाता है। वहीं मंदिर में भक्तों की ओर से भी अपने बालों को भगवान के चरणों में अर्पित करने की परंपरा है।

गांव से लाए फूल, दूध, घी, मक्खन चढ़ाने की परंपरा
मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गांव से ही भगवान की पूजा के लिए फूल लाकर चढ़ाए जाते हैं। इसके अलावा इसी गांव की अन्य वस्तुओं दूघ, घी, मक्खन को ही चढाया जाता है।

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प्रतिमा मध्य भाग में खड़ा होने का देती है भ्रम
मंदिर के गर्भगृह के बाहर से देखने पर भगवान बालाजी गर्भगृह के मध्य भाग में खड़े दिखाई देते हैं। जबकि सत्य यह है कि भगवान की प्रतिमा गर्भगृह के दाई तरफ के एक कोने में स्थित है। गर्भगृह में चढ़ाई गई किसी वस्तु को बाहर नहीं लाया जाता है। बाला जी मंदिर के पीछे एक जलकुंड है। इन सभी वस्तुओं का पीछे देखे बिना विसर्जन किया जाता है।

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प्रतिमा की पीठ पर हमेशा रहता है गीलापन
भगवान बालाजी की पीठ को जितनी बार भी साफ करो। वहां गीलापन रहता है। जो सभी के लिए हैरानी से कम नहीं है। इतना ही नहीं प्रतिमा की पीठ पर कान लगाने पर समुद्र की लहरों की आवाजें सुनाई देती है। तिरुपति बालाजी की मूर्ति हमेशा नम ही रहती है।

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बाला जी की छाती पर लक्ष्मी जी की छवि उभरती है
भगवान श्री विष्णू हरि के रुप बालाजी के वक्षस्थल पर लक्ष्मीजी निवास करती हैं। हर गुरुवार को निजरूप दर्शन के समय भगवान बालाजी की चंदन से सजावट की जाती है। उस चंदन को निकालने पर वहीं पर माता लक्ष्मी जी की छवि उतर आती है। इसे बाद में बेचा जाता है।

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हजारों साल से जल रहे हैं गर्भगृह में चिराग
गर्भगृह में हजारों साल से चिराग जल रहे हैं। इस बारे किसी को कुछ भी नहीं पता है। यह चिराग हमेशा जलते रहते हैं।

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विशेष तरह के कपूर से होती है प्रतिमा की सफाई
बालाजी मंदिर में भगवान की मूर्ति की सफाई के लिए विशेष तरह का कपूर लगाए जाने की परंपरा है। यह कपूर जब दीवार पर लगाया जाता है, तब यह टूट जाता है। परंतु बाला जी की प्रतिमा पर लगाने पर यह कपूर साबुत रहता है।

मंदिर की रसोई में रोजाना होता है तीन लाख लड्डूओं का निर्माण
इस मंदिर में रोजाना 3 लाख लड्डूओं का निर्माण किया जाता है। इन लड्डूओं को बनाने के लिए कारीगर तीन सौ साल पुरानी पारंपरिक विधि का प्रयोग करते हैं। इन लड्डुओं का निर्माण बालाजी मंदिर की गुप्त रसोई में किया जाता है। यह गुप्त रसोईघर पोटू के नाम से जानी जाती है।

माता पदमावती के दर्शन के बाद ही पूरी होती है यात्रा
माना जाता है कि तिरुपति मंदिर की यात्रा तभी पूरी होती है। जब उनकी पत्नी पद्मावती माता लक्ष्मी की अवतार के मंदिर की यात्रा की जाए। माता पद्मावती का मंदिर तिरुपति मंदिर से करूब पांच किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

प्रदीप शाही

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