द्वापर युग के इस शिवलिंग का स्वयं होता है जलाभिषेक…द्वापर युग में करती थी दूध की धाराएं अभिषेक

देवों के देव महादेव को समर्पित मंदिर पूरे देश में मौजूद हैं। भगवान शिव के यह रहस्यमयी मंदिर आज भी शोधकर्ताओं के लिए अध्ययन व शोध का विषय बने हुए हैं। भगवान शिव के मंदिरों में कुछ ऐसे चमत्कार होते हैं जिन्हें देखकर वैज्ञानिक भी हैरान हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही प्राचीन व रहस्यमयी मंदिर के बारे जानकारी देंगे जहां स्थापित शिवलिंग का अभिषेक प्राकृतिक रूप से टपक रहे जल से होता है।

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टपकेश्वर मंदिर

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित है टपकेश्वर मंदिर। देहरादून शहर से इस मंदिर की दूरी 5 किलोमीटर के करीब है। यह मंदिर एक नदी के तट पर स्थित है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर गुफा की छत से प्राकृतिक रूप से पानी टपकता रहता है। इस मंदिर का वर्णन महाभारत में भी मिलता है। जिस नदी के तट पर यह प्राचीन मंदिर है, उसके तट पर महर्षि द्रोण और अश्वत्थामा ने तप किया था। कहा जाता है कि द्वापर युग में इस प्राचीन शिवलिंग का अभिषेक दूध की धाराएं किया करती थीं। टपकेश्वर मंदिर का निर्माण कब और किसने करवाया इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग के बारे में कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि यह शिवलिंग स्वयंभू है और कुछ का मानना है कि यह पूरा मंदिर ही स्वर्ग से निर्मित होकर धरती पर उतरा था।

मंदिर से जुड़ी कथाएं

इस मंदिर में स्वयं प्रकट हुए दो शिवलिंग स्थापित हैं। इनमें से मुख्य शिवलिंग एक गुफा के अंदर स्थित है। मंदिर के पास ही संतोषी माँ और श्री हनुमान जी के मंदिर भी मौजूद हैं। महाभारत में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने इस गुफा मंदिर के माध्यम से दूध का निर्माण करके गुरु द्रोर्णाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को दिया था। इसी स्थान पर ही गुरु द्रोण ने भगवान शिव से शिक्षा भी ग्रहण की थी। द्वापर युग में टपकेश्वर मंदिर को तपेश्वर व दूधेश्वर नामों से जाना जाता था।

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एक अन्य कथा के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य इस स्थान पर आए थे तो उनकी मुलाकात एक महर्षि से हुई थी। उस महर्षि से द्रोणाचार्य ने भगवान शिव के दर्शन करने की बात की थी। महर्षि ने द्रोणाचार्य को इस इच्छा की पूर्ति के लिए ऋषिकेश जाने को कहा था। इसके बाद उन्हें इस स्थान पर इस पावन शिवलिंग के दर्शन हुए थे। 

मान्यता है कि आज भी देव व गंधर्व भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं और मंदिर के पास बहती नदी में जल क्रीडा करते हैं। द्वापर युग में इस नदी को तमसा नदी के नाम से जाना जाता था।

शिवरात्रि पर्व पर लगता है बड़ा मेला

वैसे तो सारा साल ही इस मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। लेकिन शिवरात्रि के पावन पर्व पर प्राचीन टपकेश्वर मंदिर में बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें देश-विदेश से भगवान शिव के भक्त पहुंचते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं। मान्यता है कि इस गुफा में बैठकर ध्यान लगाने से भोलेनाथ अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। लोगों का विश्वास है कि इस मंदिर में भगवान शिव की कृपा से हर रोग दूर होता है।

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मंदिर तक कैसे पहुंचें

टपकेश्वर मंदिर देहरादून शहर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर हरिद्वार-देहरादून मुख्य मार्ग पर स्थित है।  देहरादून से ऑटो रिक्शा से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है। हवाई मार्ग से भी मंदिर तक पहुंच सकते हैं इसके लिए नजदीकी हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। इस हवाई अड्डे से टपकेश्वर मंदिर की दूरी 35 किलोमीटर के करीब है।

धर्मेन्द्र संधू

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