देवों के देव महादेव भगवान शिव, ऐसे बने त्रिपुरारी

-भगवान शंकर ने किया था तारकाक्ष, कमलाक्ष, विदुयन्माली असुरों का वध

प्रदीप शाही

भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों में से भगवान शंकर ही एक ऐसे देव है। जिनका सबसे अधिक पूजन किया जाता है। भगवान शिव ही एक ऐसे देव हैं, जिनको भोले बाबा, भोले शंकर, शिव शंकर, कैलाशपति, महादेव, उमापति, गंगाधर, महाकाल और त्रिपुरारी जैसे न जाने कितने नामों से अंलकृत किया गया है। आज हम शिव पुराण में वर्णित भोले बाबा के त्रिपुरारी नाम के प्रसंग पर चर्चा करेंगे। आखिर यह नाम भगवान शंकर के साथ कैसे जुड़ा।

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भगवान श्री ब्रह्मा ने किन दैत्यों को दिया वरदान

जब भी किसी ने देवी-देवताओं की कठोर तपस्या कर वरदान हासिल किया है। इसके पीछे उसका हमेशा स्वार्थ भाव ही दिखाई दिया था। शिवपुराण में एक महादैत्य तारकासुर का उल्लेख मिलता है। इस दैत्य के तीन पुत्र तारकाक्ष, कमलाक्ष औऱ विदुय्नमाली हुए। तारकासुर ने चारों तरफ आतंक मचाया हुआ था। तारकासुर के बढ़े हुए आतंक को भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने असुर का वध कर समाप्त किया। कार्तिकेय के द्वारा पिता का अंत होने पर दैत्य पुत्रों तारकाक्ष, कमलाक्ष औऱ विदुय्नमाली के क्रोध की कोई भी सीमा नहीं रही। तीनों दैत्य पुत्रों ने अपने पिता के अंत का प्रतिशोध लेने की ठान ली। इसके लिए उन्होंने भगवान श्री ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या शुरु कर दी। तारकाक्ष, कमलाक्ष औऱ विदुय्नमाली की तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान ब्रह्मा जी प्रकट हुए। तारकाक्ष, कमलाक्ष औऱ विदुय्नमाली ने भगवान से अमर होने का वरदान मांगा। तब भगवान श्री ब्रह्मा जी ने कहा कि वह अमर होने का वरदान नहीं दे सकते हैं। वह कोई अन्य वरदान मांग लें। तब तीनों भाईयों ने कहा कि हमारे लिए तीन ऐसे नगरों का निर्माण करवाएं, जो आसमान में उड़ते हों। हमारी मौत तभी संभव हो, जब एक हजार साल बाद हमारे तीनों नगर (पुर) मिल कर एक हो जाएं। और कोई देवता हमारे त्रिपुरों को एक वाण से ही उन्हें नष्ट कर दे। भगवान ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह उन्हें वरदान दिया।

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मयदानव ने किया त्रिपुर का निर्माण

भगवान ब्रह्मा जी से वरदान पाकर मयदानव ने तारकाक्ष, कमलाक्ष औऱ विदुय्नमाली के लिए एक पुर सोने का, एक पुर चांदी का व एक पुर लोहे का निर्मित किया। तारकाक्ष सोने के पुर, कमलाक्ष चांदी के पुर औऱ विदुय्नमाली लोहे के पुर में निवास करने लगे। वरदान पाने के बाद तारकाक्ष, कमलाक्ष औऱ विदुय्नमाली के आंतक की कोई भी सीमा नहीं रही। मनुष्य ही नहीं देवता भी इन दैत्यों के आतंक से आहत हो गए। इस समस्या से निजात पाने के लिए सभी देवताओं ने भगवान शिव की प्रार्थना की। भगवान शिव ने देवताओं की समस्या का समाधान करने का आश्वासन दिया।

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भगवान शिव त्रिपुरों का अंत कर बने त्रिपुरारी

तारकाक्ष, कमलाक्ष औऱ विदुय्नमाली के त्रिपुरों का अंत करने के लिए भगवान शिव के लिए भगवान श्री विश्वकर्मा ने एक दिव्य रथ का निर्माण किया। इस दिव्य रथ में सभी देवी-देवताओं की असीमित शक्तियां समाहित थी। रथ में सूर्य व चंद्र के पहिए, इंद्र, वरुण, यम औऱ कुबेर इस दिव्य रथ में घोड़े के रुप में जुड़े। हिमालय धनुष व शेषनाग प्रत्यंचा बने। जबकि भगवान विष्णु वाण औऱ अग्निदेव उसकी नोक बने। इस दिव्य रथ को पास आता देख कर तारकाक्ष, कमलाक्ष औऱ विदुय्नमाली आतंकित हो गए। देवताओं औऱ असुरों के मध्य भयावह युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए। भगवान शिव ने अपने दिव्य वाण से त्रिपुर का अंत कर दिया। इस तरह से त्रिपुर का अंत करने पर भगवान शिव त्रिपुरारी कहलाए।

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