दशम पिता की बाल रुप निशानियों का साक्षात गवाह है श्री पटना साहिब

-पंघूडा, शस्त्र, कुंआ, पादुकाएं गुरुद्वारा साहिब में सुशोभित
किसी ने सच ही कहा है कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं। यह कहावत अजीम शख्सीयत के मालिक एक महान योद्धा, कवि, संत, गुरु, दशम पिता, सरबंसदानी, कलगीधर, संत सिपाही, खालसा पंथ के संस्थापक गुरु गोबिंद सिंह पर पूर्ण तौर से सटीक बैठती है। दशम पिता की बाल रुप निशानियों का साक्षात गवाह पटना साहिब है। जहां गुरु गोबिंद सिंह का गुरु तेग बहादुर साहिब व माता गुजरी जी के घर में 26 दिसंबर दिन शनिवार 1666 को अवतरण हुआ। पटना के जिस घर में गुरु साहिब ने जन्म लिया। आज वह पावन स्थान तख्त श्री पटना साहिब के नाम से विख्यात है।

इसे भी पढें…एक योद्धा, कवि, संत की अजीम शख्सीयत गुरु गोबिंद सिंह

गुरुद्वारा श्री पटना साहिब का इतिहास
गुरुद्वारा श्री पटना साहिब सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह के जन्म स्थान के अलावा गुरु नानक देव और गुरु तेग बहादुर साहिब की पवित्र यात्राओं से जुड़ा है। आनंदपुर साहिब जाने से पूर्व गुरु गोबिंद राय का बाल्यकाल यहीं व्यतीत हुआ। इस एतिहासिक गुरुद्वारा का निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था। गुरुद्वारा श्री हरिमंदर जी पटना शहर बिहार में स्थित है। गुरु तेग बहादुर साहिब यहां बंगाल व असम की फेरी दौरान आए। गुरू साहिब यहां पर सासाराम, गया का भ्रमण करते हुए आए। गुरू साहिब के साथ उनकी धर्मपत्नी माता गुजरी जी के भाई किरपाल दास साथ थे। अपने परिवार को यहां छोड़ कर गुरू साहिब आगे चले गए। यह स्थान सलिसराय जौहरी का घर था। सलिसराय जौहरी गुरू नानक देव जी का भक्त था। गुरु नानक देव जी भी सलिसराय जौहरी के घर आए थे। जब गुरू नानक देव जी यहां पहुंचे, तो देहरी लांघ कर अंदर आए। यह स्थान अब भी मौजूद है। गुरु तेग़ बहादुर साहिब की असम फेरी दौरान गोबिंद राय ने जन्म लिया। गुरु नानक देव की वाणी से प्रभावित सलिसराय जौहरी ने अपने महल को धर्मशाला बनवा दिया था। भवन के इस हिस्से को मिलाकर इस गुरुद्वारे का निर्माण किया गया।

इसे भी पढ़ें…माता गुजरी जी, बाबा जोरावर सिंह, फतेह सिंह का यहां हुआ था अंतिम संस्कार…

पटना में सुशोभित हैं गुरु साहिब की बाल रुप निशानियां
गुरु गोबिंद सिंह का मूल नाम गोविंद राय था। गुरु गोबिंद सिंह ने अन्याय के खिलाफ 1699 में खालसा पंथ का सृजन किया। पांच प्यारों के बाद उन्होंने छठे खालसा के रुप में अमृत छका (ग्रहण) किया। बाल गोबिंद राय पटना में छ्ह साल की आयु तक रहे। बाल गोबिंद राय के सोने के लिए एक छोटा मंजीनुमा पंघूड़ा गुरुद्वारा साहिब में सुशोभित है। कुछ बड़े होने पर बाल गोबिंद राय को शस्त्रों से प्रेम हो गया। गोविंद सिंह को सैन्य जीवन के प्रति लगाव अपने दादा गुरु हरगोविंद राय के सानिध्य से हुआ। वहीं महान बौद्धिक संपदा भी परिवार से विरासत में मिली। छोटी उम्र के में ही शस्त्र धारण करना बाल गोबिंद राय का शौक था। उनके इस शौक को देखते हुए गुरु परिवार के श्रद्धालू ने एक छोटा श्री साहिब भेंट किया। एक अन्य शस्त्र शिव प्रसाद, जैता सेठ ने भेंट किया। बाल गुरु अपनी कमर के साथ बाघ नख वाला ख़ंजर बांध कर रखते थे। यह खंजर आज भी गुरुद्वारा साहिब में दर्शन योग्य हैं। बाल गुरू जी जिस कुएं के पानी से नहाते, बालों को ठीक करते, पादुका प्रयोग करते। यह सारा पावन सामान आज गुरुद्वारा साहिब में मौजूद है।

इसे भी पढें…इन गुरुधामों में सुशोभित हैं बाबा नानक के पावन स्मृति चिह्न


बाल गोबिंद प्रतिदिन छोटा सा धनुष बना कर लकड़ी के तीर और गुलेल बना कर चलाते। घर के आंगन में मीठे जल का कुंआ था। जहां पर बहुत से लोग पानी भरने आते थे। बाल बाल गोबिंद राय पानी भर कर आने वालों के घड़ों को गुलेल मार कर तोड़ देते थे। गागर में छेद होने की जब वह लोग माता गुजरी जी के पास शिकायत ले कर जाते, तो माता जी उन को ओर नये घड़े, वस्त्र, नकदी दे कर उनका गुस्सा दूर करती। बाल गोबिंद राय की गुलेल की गोलियां, चार तीर आज भी भी पटना साहिब गुरुद्वारा में सुशोभित हैं।

इसे भी पढें….श्री गुरु नानक देव जी; एक परिचय


पटना निवासी फतेचन्द मैनी क्षत्रीय गुरु तेग बहादुर साहिब का श्रद्धालु था। बालक गुरू गोबिंद अक्सर उनके घर चले जाया करते थे। फतेह चंद की पत्नी बाल गोबिंद को पूरी, दूध, भुने हुए चने खिलाया करती थी। बाल गोबिंद कभी -कभी सारा दिन ही उन के आंगन में खेलते रहते थे। यहां पर उन्होंने एक पौधा भी लगाया। बाल गोबिंद राय का लगाया पौधा आज भी बारह महीने फल देता है। गुरु परिवार के पंजाब जाने की बात सुन कर उक्त परिवार बेहद दुखी हुआ और बेहोश होकर गिर गए। बाल गुरु जी ने अपने हाथों के साथ मुंह में केवड़ा पाया। तब उन्हें होश आई। बाल गुरु गोबिंद ने उक्त परिवार को एक कटार, तलवार, पोशाक, जूती प्रदान की। उक्त परिवार ने अपने घर को जहां बाल गुरू गोबिंद खेलते थे। उसको गुरुद्वारा बना दिया। गुरु साहिब की ओर से प्रदान चीजों को स्थापना कर दिया। पटना से निकलने के बाद गुरू परिवार दानापुर पहुंचा। यहां एक माता ने प्रेम के साथ हांडी में खिचड़ी बना कर खिलाई। गुरूधाम संग्रह के पन्ना 134 में यह वर्णित है। इस महिला का मकान हांडी कारण गुरूद्वारा हांडी वाली संगत हो गया। उक्त पावन निशानियों के बारे समूची जानकारी व चित्र हरप्रीत सिंह नाज ने हमें उपलब्ध करवाए।

प्रदीप शाही

LEAVE A REPLY