झाड़ा, भभूत और जल से किया जाता है इलाज, डाक्टर भी हुए हैरान

डॉ.धर्मेन्द्र संधू

पूरे भारत में कुछ ऐसे प्राचीन मंदिर हैं जहां श्रद्धालु नतमस्तक होने के लिए तो जाते ही हैं। साथ इन स्थानों पर उनके रोगों का निवारण भी होता है। एक ऐसा ही प्राचीन मंदिर पंजाब के शाही शहर पटियाला के नज़दीकी गांव सील में स्थित है। मान्यता है कि एक ऊंचे टीले पर स्थित माता शीतला के इस प्राचीन मंदिर में माथा टेकने व तीन बार झाड़ा लगवाने से छोटी व बड़ी माता से ग्रस्त लोग ठीक हो जाते हैं। इस मंदिर में पंजाब के अलावा हरियाणा व दिल्ली के साथ ही देश के अन्य हिस्सों से भी श्रद्धालु आते हैं। मंदिर में पीढ़ी दर पीढ़ी महंती की प्रथा चली आ रही है। सबसे पहले इस मंदिर में महंत भगतराम जी मुख्य सेवादार थे। उनके बाद उनके बेटे महंत संत राम जी मंदिर के मुख्य महंत बने। बाद में महंत संत राम जी के चेले महंत चरणदास जी ने मंदिर में सेवा की जिम्मेदारी संभाली और मौजूदा समय में महंत चरणदास जी के चेले महंत कर्मदास जी मंदिर में सेवाएं निभा रहे हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के चढ़ावे से ही मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है।

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मंदिर का इतिहास

कई सीढ़ियां चढ़ने के बाद माता शीतला के दर्शन होते हैं। मंदिर में माता शीतला की भव्य मूर्ति स्थापित है। मंदिर के इतिहास व निर्माण के बारे में जानकारी देते हुए महंत कर्मदास जी ने बताया कि जिस स्थान पर आज शीतला माता का मंदिर सुशोभित है, वह 117 बीघे का एक गांव हुआ करता था। प्राचीन समय में मोहम्मद गोरी ने इस गांव पर धावा बोलते हुए इसे लूटने के बाद कब्ज़ा कर लिया था। मोहम्मद गोरी द्वारा नियुक्त किए गए सूबेदार ने नवविवाहित लड़कियों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। इसके बाद एक लड़की ने माता की तपस्या की तो माता एक कन्या के रूप में डोला लेकर आई थी। सूबेदार ने उस कन्या के डोले को भी रोकना चाहा तो माता ने उसे बुरे कर्मों से तौबा करने को कहा। लेकिन वह सूबेदार नहीं माना। क्रोधित होकर माता ने सारा गांव ही पलटा दिया। बाद में डोले के साथ आए लोगों ने सील नामक गांव में पनाह न मिलने पर इस स्थान पर आकर माता की पूजा-अर्चना शुरू की थी।

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माता के दर्शन मात्र से ही होते हैं रोग दूर

मान्यता है कि माता शीतला की कृपा से यहां आने वाले श्रद्धालुओं के रोग दूर होते हैं। खासकर बड़ी माता व छोटी माता के रोग से पीड़ित लोग यहां बड़ी संख्या में आते हैं। मंगलवार के दिन तो भक्तों का तांता लग जाता है। मंदिर में आने वाले पीड़ितों को मंदिर के महंत व सेवादारों की ओर से झाड़ा लगाने के बाद एक धागा, भभूत व जल दिया जाता है। यह झाड़ा कुछ दिनों के अंतराल के बाद लगातार तीन बार लगवाना पड़ता है।

इस प्राचीन मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है। पंजाब के अलावा हरियाणा व दिल्ली से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता शीतला के दरबार में रोगमुक्त होने की कामना लेकर आते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि माता शीतला के मंदिर में माथा टेकने व झाड़ा लगवाने से उनके रोग दूर हुए हैं। कुछ श्रद्धालुओं का यह भी कहना है कि उन्होंने कई स्थानों से इलाज करवाया लेकिन उन्हें आराम इस मंदिर में आने के बाद ही मिला है। इस स्थान पर होने वाला इलाज डाक्टरों के लिए आज भी शोध का विषय बना हुआ है।

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मंदिर के पर्व व त्योहार

प्राचीन शीतला माता मंदिर में बासड़ियों का त्योहार श्रद्धा व उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार पर रात के 12 बजे से मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं। रात से ही श्रद्धालु लंबी-लंबी कतारों में लगकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके अलावा मंदिर में कांवड़ शिविर भी लगाया जाता है। मंदिर के महंत व पुजारी कर्मदास जी ने बताया कि इस शिविर में हरिद्वार से जल लाने वाले कांवड़िए विश्राम करते हैं। इस दौरान कुछ दानी सज्जनों के सहयोग से उनके खान-पान का इंतजाम भी किया जाता है।

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लोग तालाब से माता के नाम की निकालते हैं मिट्टी

मुख्य मंदिर के सामने ही एक छोटा सा मंदिर भी बना हुआ है। इसे सेढ़ला माता का मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में वह श्रद्धालु माथा टेकते हैं जिनका रोग भयंकर रूप धारण कर चुका होता है यानि शरीर पर चेचक के दाने इतने बढ़ जाते हैं कि उनका इलाज असंभव हो जाता है। इस मंदिर के पास ही एक तालाब भी बना हुआ है। श्रद्धालु इस तालाब से 7 देवियों के नाम की मिट्टी निकालते हैं और इस भयंकर रोग से बचने व उपचार के लिए प्रार्थना करते हैं।

इसके अलावा मुख्य मंदिर के साथ ही बाबा फरीद का मंदिर भी बना हुआ है। यहां आने वाले श्रद्धालु माता शीतला के दर्शन करने के बाद बाबा फरीद के मंदिर में माथा जरूर टेकते हैं। मंदिर परिसर में माता के वाहन शेर की विशाल प्रतिमा के दर्शन भी होते हैं।

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