कौन है त्रिशक्ति, माता सरस्वती, माता लक्ष्मी और माता पार्वती

-त्रिदेवियां ही हैं आदिशक्ति का स्वरुप

प्रदीप शाही

त्रिदेवियों में माता सरस्वती, माता लक्ष्मी व माता पार्वती की स्मरण करते ही सृष्टि के रचयिता भगवान श्री ब्रह्मा जी, भगवान श्री विष्णु हरि जी और भगवान भोले शंकर की अलौकिक छवि मन को आनंदित कर देती है। आखिर कौन हैं त्रिशक्ति माता सरस्वती जी, माता लक्ष्मी जी और माता पार्वती जी। यह भी पूर्णतौर से सत्य है कि यह त्रिदेवियों ही आदिशक्ति का स्वरुप हैं।

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माता सरस्वती जी

माता सरस्वती, भगवान श्री ब्रह्मा जी की अर्धांगनी हैं। माता सरस्वती सुर औऱ स्वर की देवी हैं। भगवान श्री ब्रह्मा जी और माता सरस्वती के बारे कई कथाएं प्रचलित हैं। मत्स्य पुराण अनुसार माता सरस्वती, सांध्य और ब्रह्मी को भगवान श्री ब्रह्मा जी ने अपने मुख से प्रकट किया था। देवी सरस्वती को कई अन्य नामों से भी पुकारा जाता है। जिसमें माता शारदा, शतरुप, वाणी, वागेश्वरी औऱ भारती नाम प्रमुख हैं। महालक्ष्मी के प्रधान रुप माता सरस्वती के एक हाथ में वीणा सजी हुई है। जबकि उनकी दूसरा हाथ वर मुद्रा में होता है। वही अन्य दो हाथों में एक में पुस्तक और दूसरी में माला ग्रहण की होती है।वीणा

एक प्रसंग अनुसार भगवान श्री ब्रह्मा जी अपनी मानव रचना से संतुष्ट नहीं थे। तब उन्होंने भगवान विष्णु हरि से आज्ञा लेकर पावन जल को इस पृथ्वी पर छिड़का तो आदि शक्ति स्वरुप सरस्वती अवतरित हुई। माता सरस्वती ने जब वीणा से तान छेड़ी तो पृथ्वी को वाणी प्राप्त हुई मानी जाती है।

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वहीं कई हिंदू पुराणों में माता सरस्वती को भगवान श्री ब्रह्मा जी की पुत्री भी कहा गया है। सरस्वती की सुंदरता से आसक्त हो कर भगवान ब्रह्मा जी ने उनसे विवाह करने का फैसला किया। इस फैसले की जानकारी मिलती ही सरस्वती ने हर दिशा में छिपने की कोशिश की। भगवान श्री ब्रह्मा जी अपने पांच मुखों के कारण वह हर दिशा में अपनी दृष्टि बनाने में सक्षम थे। इसलिए सरस्वती का किसी भी दिशा में छिपना नामुमकिन था। आखिर सरस्वती ने आसमान में छिपने की कोशिश की। तो ब्रह्मा जी के पांचवे मुख ने उन्हें भी वहां खोज निकाला था। सरस्वती ने अपने सभी प्रयत्नों को असफल होता देख कर आखिर मजबूरन ब्रह्मा जी से विवाह कर लिया। विवाह के 100 साल तक वह दोनों जंगल में रहे। जहां पर उन्होंने एक संतान को जन्म दिया। जिसे मनु कहा जाता है। मनु ही वह पहले मानव हैं, जिन्हें इस धरती पर जन्म लेने वाला पहला मानव कहा जाता है। गौर हो भगवान श्री ब्रह्मा जी के पांचवें मुख को काल भैरव ने कांट डाला था।

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माता लक्ष्मी जी

माता लक्ष्मी जी, भगवान श्री विष्णु हरि जी की अर्धांगिनी हैं। माता लक्ष्मी जी धन, संपदा, शांति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली के पर्व पर माता लक्ष्मी जी के अलावा भगवान श्री गणेश जी और कुबेर जी का पूजन किया जाता है।

माता लक्ष्मी जी भृगु ऋषि की सुपुत्री थी। लक्ष्मी अपने बाल्यकाल से ही भगवान श्री विष्णु हरि जी का गुणगान करती रहती थी। लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु हरि जी को अपने पति रुप में पाने के लिए समुद्र के तट पर घोर तपस्या शुरु कर दी। माना जाता है कि लक्ष्मी जी ने निरंतर एक हजार साल तक तपस्या की। लक्ष्मी जी को घोर तपस्या करते देख कर देवराज इंद्र ने उनकी परीक्षा लेनी चाही। देवराज इंद्र ने लक्ष्मी जी से वरदान मांगने को कहा। लक्ष्मी जी ने देवराज इंद्र को विश्वरुप में दर्शन देने की प्रार्थना की। परंतु देवराज इंद्र के लिए यह कर पाना नामुमकिन था। इस घटना के बाद भगवान श्री विष्णु हरि स्वयं लक्ष्मी के समक्ष प्रकट हुए। लक्ष्मी जी से वर मांगने के लिए कहा। लक्ष्मी जी ने उनके समक्ष भी अपने विश्वरुप दर्शन देने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु जी ने उन्हें अपने दर्शन दिए। आखिर भगवान विष्णु जी ने देवी लक्ष्मी को अपनी अर्धांगिनी के रुप में स्वीकार किया।

एक अन्य़ प्रसंग अनुसार धन, वैभव की देवी माता लक्ष्मी जी समुद्र मंथन के दौरान जी प्रकट हुई थी। धन की देवी लक्ष्मी को 10 महाविद्याओं में से अंतिम महाविद्या कहा जाता है।

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माता पार्वती जी

देवी पार्वती भगवान महादेव की अर्धांगिनी हैं। असल में भगवान शिव शंकर का विवाह माता सती के साथ हुआ था। माता पार्वती भी माता सती का ही एक अवतार स्वरुप हैं। माता सती के कई अवतार माने गए हैं। इनमें प्रमुख तौर से पार्वती, महागौरी, दुर्गा, काली, गौरी, उमा, जगदंबा, गिरिजा, अंबे शेरांवाली, अंबालिका, शैलपुत्री, पहाड़ांवाली, चामुंडा, तुलजा माता शामिल हैं।

कहा जाता है कि नारद मुनि के कहने पर ही माता पार्वती ने घोर तपस्या कर भगवान शिव शंकर को पति के रुप में पाया था। नवरात्रि का पर्व माता पार्वती के लिए मनाया जाता है। माता के यह नौ रुप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धदात्री हैं। यह सभी देवियों आदिशक्ति हैं।

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