कवि कालिदास के प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के विकास की शुरुआत हुई इस मंदिर से

वंदना

एक ऐसा प्राचीन मंदिर जिसके बारे में यह तो कोई नहीं जानता कि वह कितना पुराना है परंतु इतना जरूर माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना महाभारत काल में हुई थी। मूर्ति सतयुग काल की है। बाद में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन ने करवाया था। जिसका वर्णन इतिहासकारों ने बखूबी किया है। यह मंदिर शिप्रा के किनारे काली घाट पर स्थित है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में कालिका माता के इस प्राचीनतम मंदिर को गढ़कालिका के नाम से भी जाना जाता है। माना यह भी जाता है कि देवियों में गढ़कालिका सबसे महत्वपूर्ण हैं।

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गढ़कालिका से जुड़ा इतिहास

हिंदू ग्रंथों में महानतम कवियों की श्रेणी में कवि कालिदास का नाम सर्वोपरि है। कवि कालिदास कालिकादेवी के उपासक थे। मान्यता कहे या दंत कथाएं सबके अनुसार कहा जाता है कि कवि कालिदास ने जब से इस मंदिर में पूजा-अर्चना करना शुरू किया था तभी से उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का विकास होना शुरु हो गया था। महाकाली स्त्रोत “श्यामला दंडक” महाकवि कालिदास की श्रेष्ठतम एवं सुंदर रचना है। ऐसा माना जाता है कि कवि के मुंह से पहली बार यहां यह स्त्रोत निकला था, जिस कारण मां कालिका उन पर प्रसन्न हुई थी। इसके बाद से ही कवि कालिदास जी का प्रतिभाशाली व्यक्तित्व उभर कर सामने आया। उन्हें शास्त्रों का दिव्य ज्ञान यहीं प्राप्त हुआ था।

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कैसे पड़ा नाम गढ़कालिका

त्रिपुरा महात्म्य के अनुसार देश के 12 शक्तिपीठ में से छठे स्थान पर यह गढ़कालिका मंदिर है। पुरानी अवंतिका नगरी भी यही बसी हुई थी।  कालांतर में यह धूल के गुब्बार यानी कि धूलकोट में दब गई मगर गढ़ की देवी होने के कारण इनका नाम गढ़कालिका पड़ा था।

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गढ़कालिका का पौराणिक महत्व

गढ़कालिका का वर्णन लिंग पुराण में भी किया गया है । एक कथा के अनुसार जब रामचंद्र जी युद्ध में विजय होकर वापस अयोध्या लौट रहे थे तब वे रूद्र सागर के तट पर रुके थे और इसी रात भगवती कालिका भोजन की तलाश में यहां पहुंची। वहां उन्होंने हनुमान जी को देखा फिर उन्हें पकड़ने का प्रयत्न किया परंतु हनुमान जी ने जैसे ही भीषण रूप धारण किया तो देवी कालिका डर के वहां से भागीं। उस समय वहां उनके अंश यानी कि होठ गिर पड़े और तभी से यह स्थान गढ़कालिका के नाम से प्रसिद्ध हो गया ।

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इस मंदिर में शुंगकालीन, गुप्तकालीन और परमार कालीन मूर्तियां हैं। मंदिर परिसर में बहुत ही प्राचीन दीपस्तंभ भी है। इस दीपस्तंभ में 108 दीपक है। जिन्हें नवरात्रि में प्रज्वलित किया जाता है।

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गढ़कालिका में लगने वाले मेले

मौनी अमावस्या, कुंभ व नवरात्रि में लगने वाले मेलों के अलावा यहां कालिदास समारोह भी मनाया जाता है। इस दौरान यज्ञ का आयोजन भी होता है और भक्त दूर-दूर से दर्शन करने यहां आते हैं। इसके अलावा देश-विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक भी पहुंचते हैं।

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कैसे पहुंचें

उज्जैन में देश के किसी भी कोने से आसानी से सड़क, रेल या वायुमार्ग से पहुंचा जा सकता है। शिप्रा नदी के किनारे बसा यह शहर धार्मिक के साथ ही ऐतिहासिक महत्व भी रखता है।

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