आश्चर्य ! जब माता गंगा, लंकापति रावण के पेट में समा गई

-कहां पर स्थित हैं लंकापति रावण का शिवलिंग

प्रदीप शाही

महाबली, प्रकांड पंडित, चारों वेदों के ज्ञाता, संगीत विशेषज्ञ, वीणा वादक, ज्योतिष के विद्वान, महर्षि विश्रवा और राक्षसी माता कैकसी की संतान, देवों के देव महादेव के अनन्य भक्त लंकापति रावण की विद्धता के समक्ष हर कोई नतमस्तक रहा है। जहां माता कैकसी से राक्षसी प्रवृति की भावनाएं मिली। वहीं ब्राह्मण कुल का होने की वजह से रावण जैसा प्रकांड विद्वान इस विश्व में कोई भी नहीं था। आज आपको लंकापति रावण संबंधित एक ऐसी घटना से अवगत करवाते हैं। जब माता गंगा, लंकापति रावण के पेट में समा गई। ताकि लंकापति रावण, भगवान शिव को अपने साथ लंका न ले जा पाए। साक्षात शिवलिंग में समाए भगवान शंकर का वह शिवलिंग कहां पर स्थित हैं। इस रहस्य से गिरे पर्दे को आज उठाते हैं।

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भगवान शिव को कैसे लंकापति रावण ने किया प्रसन्न

यह सर्वविदित है कि लंकापति रावण, भगवान शिव का परम भक्त था। लंकापति रावण चाहता था कि उसके परम आराध्य भगवान शिव उसके साथ लंका में वास करें। इसके लिए वह हरसंभव प्रयास करने में हमेशा तल्लीन रहा। एक बार लंकापति रावण ने पूरा कैलाश पर्वत उठा कर ही लंका ले जाने की कोशिश भी की थी। परंतु भगवान शिव ने अपने पांव के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया। इससे उसका यह प्रयास विफल हो गया। रावण के सभी प्रयास हर बार असफल रहे। तब लंकापति रावण ने भगवान शिव की कठोर तपस्या आरंभ कर दी। तपस्या के दौरान उसने अपने दसों शीश को एक-एक करके भगवान शिव को अर्पित करने शुरु कर दिए। लंकापति रावण की घोर तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने उससे मनचाहा वरदान मांगने को कहा। तब रावण ने भगवान शिव से प्रार्थना की वह उसके साथ लंका चलें। भगवान शिव ने कहा कि वह एक ऐसा शिवलिंग निर्मित करे। जिसमें वह समा जाएंगे। तुम इस शिवलिंग को अपने हाथों में उठा कर लंका तक ले जाओ। जहां भी तुम यह शिवलिंग रखोगे। यह उसी जगह पर स्थापित हो जाएगा। अहंकार में चूर लंकापति रावण ने भगवान शिव की शर्त को स्वीकार कर भगवान शिव के विराजमान शिवलिंग को हाथों में उठा कर लंका की तरफ प्रस्थान किया।

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भगवान विष्णु की माया से माता गंगा ने किया रावण के पेट में प्रवेश

लंकापति रावण ने जैसे ही शिवलिंग को लंका की तरफ ले कर चलना शुरु किया। तो समस्त देवी देवता भगवान श्री विष्णु की शरण में पहुंचे। ताकि लंकापति रावण को शिवलिंग लंका में न ले जा सके। सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु हरि जी ने सभी देवताओं को आश्वस्त कर वापिस जाने के लिए कहा। पैदल चलते-चलते रावण को प्यास लगने लगी। वह पानी की तलाश करने लगा। इसके बाद भगवान श्री विष्णु ने बालक चरवाहे का रुप धर रावण का रास्ता रोक लिया। रावण ने बालक से पानी पिलाने के लिए कहा। तब बालक ने अपने कमंडल में माता गंगा को प्रवेश करने के लिए कहा। रावण ने जैसे ही पानी पीना शुरु किया। तो माता गंगा रावण के पेट में प्रवेश कर गई। कुछ दूर जाने के बाद रावण को लघुशंका सताने लगी। वह इस बात से भी डर गया। यदि यह शिव लिंग धरती पर रखा तो वह वहीं स्थापित हो जाएगा। कुछ दूर जाने के बाद उसे वही चरवाहा बालक मिला। तो रावण ने उसे स्वर्ण मुद्राओं का लालच प्रदान कर शिव लिंग को अपने हाथों में ही उठाए रखने के लिए कहा। बालक ने इसे स्वीकार कर लिया। रावण लघुशंका के लिए चला गया। पेट में गंगा समाए होने के कारण लघुशंका समाप्त होने का नाम नहीं ले रही थी। तब बालक के रुप में भगवान श्री विष्णु ने शिवलिंग को वहीं धरती पर रख दिया। जैसे ही धरती पर शिवलिंग को रखा। वहीं माता गंगा भी रावण के पेट से आलोप हो गई। जैसे ही रावण वापिस आया। तो उसने शिवलिंग को धरती पर पड़ा देखा। तो वह क्रोधित हो गया। बालक को काफी ढूंडा परंतु नहीं मिला। शिवलिंग को उठाने की काफी कोशिश की। परंतु सब बेकार हो गई। तब गुस्से में आकर रावण ने शिवलिंग को लात मार दी। तब शिवलिंग धरती में धंस गया।

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झारखंड में स्थित हैं लंकापति रावण का शिवलिंग

जिस जगह पर शिवलिंग पर धरती पर रखा गया था। वह स्थान आज झारखंड में देवधर के नाम से पहचानी जाती है। इसी स्थान के पास ही एक कुंड बना हुआ है। जहां पर रावण ने मूत्र किया था। इसे रावण का मूत्र कुंड कहा जाता है। यहां पर श्रावण के माह में श्रद्धालूओं की भारी भरकम भीड़ लगती है। भक्तजान यहां पर पैदल ही कांवड़ ले कर जाते हैं।

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