आदि शक्ति माता दुर्गा कैसे हुई प्रकट?

-आदि शक्ति मां दुर्गा में है समस्त देवी-देवताओं का वास

जब भी इस धरती पर पाप, अन्याय, अधर्म ने अपने पैर पसारे। तब-तब देवी देवताओं ने धरती पर अवतरित हो कर पाप, अन्य़ाय को समाप्त कर धर्म की स्थापना की। धरती पर महिषासुर के फैले आतंक को समाप्त करने के लिए आदि शक्ति मां दुर्गा प्रकट हुई। क्या आप जानते हैं कि माता दुर्गा में समस्त देवी देवताओं का समावेष हैं। आईए आपको बताते हैं कि कैसे और कब मां दुर्गा ने प्रकट होकर असुरों का वध किया।

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महिषासुर का अंत करने के लिए प्रकट हुई थी माता
पौराणिक कथा अनुसार महिषासुर का जन्म पुरुष और महिषी (भैंस) के संयोग से हुआ था। इसी कारण उसे महिषासुर कहा जाता था। महिषासुर अपनी इच्छा अनुसार भैंसे या इंसान का रूप धारण करने में सक्षम था। उसने अमर होने की इच्छा से भगवान श्री ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। भगवान ब्रह्माजी ने उसके तप से प्रसन्न होकर इच्छानुसार वर मांगने को कहा। महिषासुर ने उनसे अमर होने का वर मांगा। परंतु ब्रह्माजी ने कहा जन्मे हुए जीव का मरना तय है। तब महिषासुर ने कहा कि आप मुझे यह आशीर्वाद दें कि मुझे देवता, असुर और मानव कोई भी मुझे न मार पाए। किसी स्त्री के हाथ से ही मेरी मृत्यु हो। ब्रह्माजी ने तथास्तु कह दैत्यराज को यह वर प्रदान किया कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी कह कर अपने लोक चले गए। वरदान पाकर महिषासुर ने तीनो लोकों में आतंक मचा दिया। इतना ही नहीं देवताओं के इंद्र लोक पर भी आक्रमण किया। जिससे सारे देवता परेशान हो गए। तब सभी देवता ने देवी का आवाहन किया तब आदि शक्ति देवी की उत्पत्ति हुई। कहा जाता है कि देवी का युद्ध महिषासुर से नौ दिनों तक चला था। और नौवे दिन माँ ने महिषासुर का वध कर इस धरती को महिषासुर के आतंक से मुक्ति दिलाई।

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आदि शक्ति माता दुर्गा कैसे हुई प्रकट?
असुरों के अत्याचार से तंग आकर जब समस्त देवताओं ने अपने सम्मिलित तेज से देवी के इस रूप को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने। कहा जाता है कि भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख, यमराज के तेज से मस्तक के केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पौरों की ऊं गलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं। आदि शक्ति के प्रकट होने के बाद देवों के देव महादेव शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल, माता लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु जी ने चक्र, अग्नि देव ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण देव ने दिव्य शंख, हनुमान जी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र देव ने वज्र, भगवान श्री राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया। इसके अलावा समुद्र ने बहुत उज्ज्वल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां भेंट कीं। इन सब वस्तुओं को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया।

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महाभारत में मिलता है माता दुर्गा का ताल्‍लुक
ऐसी ही एक अन्य किदवंती महाभारत में भी आती है। महाभारत के युद्ध से पहले भगवान कृष्ण ने अर्जुन को माँ वैष्णो की गुफा में पूजा करने को कहा था। ऐसा कहा जाता है कि नवरात्र के आखरी दिन पांडवों ने अपनी पहचान बता दी थी। यह उनके वनवास का आखिरी समय था। इसी दिन उन्होंने शमी के पेड़ से अपने सारे हथियार निकाल लिए जो उन्हों ने राजा विराट के महल में प्रवेश शमी के पेड़ के नीचे छुपाये थे। इसीलिए विजया दश्मी के दिन शमी की पत्तियों का भेट की जाती हैं जिससे जीत और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

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नवरात्र पर मां दुर्गा भक्तों के मध्य करती है वास
मां दुर्गा को इस सृष्टि की आदि शक्ति कहा गया हैं। पितामह ब्रह्माजी, भगवान हरि विष्णु और भगवान शंकरजी भी आदि शक्ति की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। इसके अलावा अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं। माँ दुर्गा को अदि शक्ति, शक्ति, भवानी, और जगदम्बा जैसे कई नामों से पूजते हैं। पौराणिक कथा अनुसार माँ दुर्गा का अवतरण राक्षसों का नाश करने के लिए हुआ था। यही कारण हैं कि नवरात्रि में माँ दुर्गा सहित उनके रुपों की पूजा की जाती है। इन दिनों में माता की पूजा और भक्ति का फल जल्दी मिलता है। क्योंकि माता नवरात्रि के नौ दिनों में पृथ्वी पर आकर भक्तों के बीच में वास करती है। माता इस मंत्र-
ॐ दुर्गा देव्यैः नमः, ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैः विच्चे॥ की स्तुति से प्रसन्न होती हैं।

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वेदों में भी है माता दुर्गा का उल्लेख
वेदों में तो दुर्गा का व्यापक उल्लेख है। उपनिषद में देवी को उमा हैमवती (उमा, हिमालय की पुत्री) का वर्णन है। पुराण में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है। दुर्गा असल में शिव की पत्नी आदिशक्ति का एक रूप हैं। शिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित बताया गया है। आदि शक्ति ही माता सरस्वती, लक्ष्मी, और पार्वती (सती) के रूप में जन्म लिया। इस त्रिशक्ति ने ही ब्रह्मा जी, विष्णु जी और महेश से विवाह किया था। तीनों रूप होने के बावजूद भी भी दुर्गा (आदि शक्ति) का ही रुप है।

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माता दुर्गा के हैं कई रुप
देवी दुर्गा का मुख्य रूप गौरी है। उनका सबसे रौद्र रूप काली है। सप्तशती अनुसार इनके अन्य स्वरूप भी बताए गये हैं। इनमें ब्राह्मणी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, एन्द्री, शिवदूती, भीमादेवी, भ्रामरी, शाकम्भरी, आदिशक्ति, रक्तदन्तिका, उग्रचंडी प्रमुख नाम हैं।

 

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प्रदीप शाही

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