आठवीं शताब्दी में हुआ था कुंभ का शुभारंभ…

-15 जनवरी 2019 को प्रयागराज में होगा अर्ध कुंभ का शुभारंभ
अमृत मंथन के बाद देवताओं की ओर से अमृत कलश को स्वर्ग ले जाने के दौरान कलश से छलकने के कारण हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक व उज्जैन पर अमृत बूंदें गिरी। इन अमृत बूंदों का ही परिणाम है कि इन चारों पावन स्थानों पर कुंभ पर्व का आयोजन किया जाता है। 15 जनवरी 2019 को प्रयागराज में अर्ध कुंभ का शुभारंभ हो रहा है। आइए आपको बताएं कि अर्ध कुंभ में स्नान के इंसान के जीवन में क्या हैं आध्यात्मिक, ज्योत्षीय और सामाजिक महत्व। कुंभ को असल मतलब अमृत कलश ही है। अमृत कलश से छलकी अमृत की बूंदों के कारण ही इन पावन स्थानों से बहने वाली नदियों की पावनता भी विशेष हो गई है। कुंभ पर्व का शुभारंभ 8वीं शताब्दी से माना जाता है।

कुंभ पर्व का केंद्र बिंदू रहा है प्रयागराज
प्रयागराज में कुंभ पर्व का आयोजन सदियों से ही विशेष माना गया है। 664 ईसा पूर्व राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में कुंभ का शुभारंभ माना गया है। इतना ही नहीं यात्री हयूनसांग ने अपने भारत भ्रमण के दौरान कुंभ मेले के महानता का उल्लेख किया था। साथ ही राजा हर्षवर्धन की दानवीरता के बारे भी विस्तार से चर्चा की थी। राजा हर्षवर्धन अपने शासन काल में नदी के किनारे रेत पर एक पंचवर्षीय सम्मेलन का आयोजन करते थे। अपने राज्य कोष का बड़ा भाग अपने राज्य के सभी वर्गो के गरीब एवं धार्मिक लोगों के विकास के लिए बांट देते थे। इस व्यवहार का अनुसरण उनके वंशजों ने भी किया। कुंभ का आयोजन विद्वानों के लिए हमेशा ही शोध का विषय रहा है। इस शोध में खास कर प्रयागराज को कुंभ का केंद्र बिंदू ही माना गया है।

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प्रयागराज में कुंभ पर्व का है विशेष महत्व
प्रयागराज में कुंभ पर्व के आयोजन को ज्ञान और प्रकाश के संगम रुप में माना जाता है। शास्त्रों में सूर्य को ज्ञान का प्रतीक कहा गया है। शास्त्रों अनुसार भगवान स्री ब्रह्मा जी ने पावन गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम के दशाश्वमेघ घाट पर अश्वमेघ यज्ञ किया था। और सृष्टि का सृजन किया था।

 

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कुंभ का क्या है तात्विक अर्थ
कुंभ को सृष्टि में सभी संस्कृतियों का संगम कहा गया है। कुंभ को आध्यत्मिक चेतना, मानवता, नदियों, वनों व ऋषि संस्कृति का प्रवाह है। कुंभ में जीवन की गतिशीलता समाहित है। कुंभ में प्रकृति व मानव जीवन का समावेष है। कुंभ उर्जा का स्रोत व आत्मप्रकाश का मार्ग है।

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कुंभ के साथ जुडा है खगोल विज्ञान
शास्त्रों अनुसार कुंभ पर्व के साथ खगोल विज्ञान जुड़ा है। ग्रहों की विशेष स्थितियां कुंभ पर्व के काल का निर्धारण करती है। कुंभ पर्व एक ऐसा पर्व है। जिसमें तिथि, मास, साल का योग होता है। कुंभ पर्व का योग सूर्य, चंद्रमा, गुरू और शनि के संबंध सुनिश्चित है। पुराण अनुसार जिस-जिस दिन अमृत कुंभ कलश जिन स्थानों पर छलका, उन्हीं स्थलों पर कुंभ पर्व का आयोजन होता है। देव दैत्यों के मध्य अमृत कलश् को हासिल करने के लिए हुआ युद्ध 12 दिन तक 12 स्थानों में चला था। उन 12 स्थलों में अमृत कलश से अमृत छलका। जिनमें चार स्थल मृत्युलोक में है। जबकि शेष आठ अन्य लोकों में (स्वर्ग आदि लोकों में माने जाते हैं।

कुंभ का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष अनुसार प्रत्येक ग्रह अपनी-अपनी राशि को एक निर्धारित समय में भोगता है। जैसे सूर्य एक राशि में 30 दिन 26 घडी 17 पल 5 विपल का समय लेता है। चंद्रमा एक राशि का भाग लगभग 2.5 दिन में पूरा करता है। बृहस्पति एक राशि का भोग 361 दिन एक घडी 36 पल में करता है। सबसे खास बात यह है कि 50वें वर्ष जब कुंभ पर्व आता है, तब वह 11वें वर्ष ही जाता है।

प्रदीप शाही

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