आज भी समाज में विचरते हैं भगवान शिव के पुरोहित

-भगवान शिव से मिला है जंगमों को अमरत्व का वरदान
बम, बम , बम लहरी। भोले नाथ का गुणगान करेंगे। भोले नाथ जी कृपा करेंगे……
क्या आपने इस तरह के शिव स्तुति वाले भजनों को सुना है। आप कहेंगे, हां बिल्कुल सुना है। इस तरह के शिव स्तुति वाले भजनों को हाथों में भगवान शिव की सवारी नंदी के प्रतीक के रूप में टल्ली, कानों में माता पार्वती के कर्णफूल (पीतल के आभूषण), सिर पर भगवान विष्णु का प्रतीक मोरपंखी मुकुट और भगवान श्री विष्णु जी व माता लश्र्मी जी की सेज शेषनाग, सृष्टि के रचियता ब्रहमा का पवित्र जनेऊ, सफेद कुर्ता, धोती धारण किए जंगम के मुख से सुना होगा। शिव स्तुति कर ही भिक्षा मांगने वाले इन जंगमों के बारे आप क्या-क्या जानते हैं। आखिर कौन हैं यह लोग। इस तरह की वेशभूषा धारण करने का क्या मकसद है। तो आईए आज आपको इस बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं।

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कैसे हुई जंगमों की उत्पत्ति ?
शांतचित से भगवान शिव की स्तुति गान और भिक्षा के अलावा किसी अन्य चीज की इच्छा न रखने वाले जंगमों के परिधान सदियों से यही हैं। जंगमों की उत्पत्ति के बारे कई मत प्रचलित हैं। पहले मत अनुसार हिंदू पौराणिक कथा अनुसार देवी पार्वती ने दावा किया उन्होंने भगवान गणेश (हाथी का नेतृत्व करने वाले देवता) को जन्म दिया। तब भगवान शिव ने अपनी जांघ को काटा। जांघ से निकला उनका रक्त कुशा के रूप में जानी जाने वाली बेजान प्रतिमा पर गिर गया। जिससे वह तुरंत जीवित हो गई। जो बाद में जंगम के रूप में उत्पन्न हुए।
दूसरे मत अनुसार जंगमों की उत्पत्ति भगवान शंकर और पार्वती माता के विवाह के बाद दान देने के समय हुई। विवाह के बाद भगवान शिव दान देना चाहते थे। किंतु भगवान श्री ब्रह्मा जी और भगवान श्री हरि विष्णु जी भिक्षा ग्रहण से मना कर दिया। तब देवों के देव महादेव शिव ने अपनी जांघ से जंगम उत्पन्न करते हुए उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। साथ ही जांघ से उत्पन्न जंगमों को केवल भिक्षा लेकर ही जीवन व्यतीत करने का आशीर्वाद दिया। भगवान शिव की जांघ से उत्पन्न होने के कारण ही इन्हें जंगम नाम से संबोधित किया गया।
तीसरे मत अनुसार भगवान शिव ने पावर्ती से विवाह के समय भिक्षा प्रदान करने के लिए दो संप्रदायों की उत्पत्ति की। पहला अपनी भृकुटि से जंगम। दूसरा अपनी जांघ से लिंगम। इस प्रकार शैव संप्रदाय में जंगम की दो शाखाएं भी मानी जाती है। मौजूदा समय में उत्तर भारत में जंगम और दक्षिण में लिंगम का वास है।

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भोले नाथ की अमरत्व कथा का करते हैं गान
भगवान शिव के पुरोहित कहे जाने वाले जंगम लोगों को समाज के नैतिक पतन पर सचेत करते हैं। साथ ही भगवान की सत्ता का स्मरण भी करवाते हैं। जंगम प्रमुख तौर से भगवान शिव और मां पार्वती विवाह की स्तुति करते हैं। इसके अलावा भगवान शिव की ओर से माता गौरी को सुनाई अमर कथा का सार, सृष्टि की रचना से लेकर ​सृष्टि के अंत तक की भविष्यवाणी को काव्य रुप में टल्ली बजाते हुए बेहद सुर में गाते हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर यह शिव पुरोहित जंगम सारी रात शिव विवाह व शिव भक्ति का गायन करते हैं। हरियाणा क्षेत्र के जंगम जोगी लोक संगीतकार हैं। यह जंगम शिव स्तुति के दौरान डफली, खंजरी, खरताल जैसे वाद्य यंत्रों का उपयोग करते हैं। इनका शिव स्तुति का अंदाज हर किसी को सहज ही आकर्षित कर देता है।

भगवान शिव का स्वरुप हैं यह जंगम
जंगमों को वास्तव में जंगम लिंग के रूप में माना जाता है। जंगम को एक मानव लिंग तीर्थ माना जाता है। जंगमों को भगवान शिव का (चतुर्वर्ण से उपर ) पुरोहित भी माना जाता है। जंगम की उत्पत्ति के बारे में दक्षिण भारत के शैव संतों अनुसार जब देवों के देव महादेव भगवान शिव ने श्री ब्रह्मा जी को सृष्टि रचने का निर्देश दिया तो श्री ब्रहमा ने शिवजी से कहा कि उन्हें मनुष्य बनाना सिखाए। तब भगवान शिव ने अपने पांच मुखों (ज्योर्तिलिंगों) से पांच मनुष्यों का सृजन किया। इन पांचो से ब्रहमा जी ने प्रेरित हो कर मानव सृष्टि का निर्माण किया। यही कारण है कि यह पांचों मनुष्य पंचाचार्य कहलाए। साथ ही ब्रह्मा जी द्वारा बनाए गए चारों वर्णों से उपर माना गया। उक्त संप्रदाय अनुसार जंगम मठों का संचालन करते हुए शैव मत प्रचार किया करते थे।

 

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जंगमों का मूल स्थल कहां है?
भगवान शिव का आशीर्वाद हासिल किए जंगमों का मूल स्थल हरियाणा का धर्मक्षेत्र, कुरूक्षेत्र माना गया है। एेसे में उत्तर भारत में वास करने वाले जंगमों की ओर से की जाने वाली शिव स्तुति की भाषा हरियाणवी ही है। जंगम परंपरा अनुसार जंगम परिवारों में कम से कम एक व्यक्ति को जंगम की परंपरा को निभाना पड़ता है। वर्ष में एक बार परिवार के सदस्य को जंगम बनकर भिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य है। शिव भक्ति और भिक्षा में संतुष्टि ही, जंगम परंपरा की धरोहर है।

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भारत में जंगमों को किन नामों से पुकारा जाता है ?
भारत में भगवान शिव के पुरोहित जंगमों को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। हिमालय में जंगम या जंगम ऋषि, हिंदू मंदिरों में काशी और कुंभ मेला में जंगम साधु, कर्नाटक में जंगम अय्या पुजारी, तमिल में जंगम लिंगायत पंडाराम, केरल, हरियाणा में जंगम जोगी, उत्तर भारत में जंगम बाबा, आंध्र प्रदेश में जंगम देव, नेपाल में जंगम गुरु कहा जाता है।

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जंगम मठ का नौंवी शताब्दी में मिलता है उल्लेख
नेपाल में नौवीं शताब्दी में लिच्छवी वंश के राजा नरेंद्र देव की ओर से जंगलिंग प्रतिष्ठान का वर्णन किया है। जो अनंतलिंगेश्वर मंदिर में पत्थर के शिलालेख में उपलब्ध है। जिसमें उन्होंने जंगमों को प्रतिष्ठान के कुलाधिपति के नाम से संबोधित किया है। इस प्राचीन प्रमाण मिलने के बाद यह माना जा सकता है कि जंगम समुदाय 9 वीं शताब्दी से पहले नेपाल में मौजूद था। कर्नाटवंश के राजा श्री नान्य देव 11 वीं शताब्दी में अपने वंश का विस्तार करके मिथिला राज्य मौजूदा उत्तरी बिहार के शासक बने। वहां पर उन्होंने वीरशैव धर्म का प्रसार किया। जब नेपाल में मल्ल वंश की स्थापना हुई थी। तब वीरशैव धर्म शुरू हुआ था। था।नेपाल में जंगम गणित में कई स्टोन लेखन और ताम्रपात्र उपलब्ध हैं।

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जंगमों की विशेष अमूल्र्य जानकारी 
जंगमों का सर्वोच्च वर्ग, विरक्त, स्वयं को ब्रह्मचर्य के लिए समर्पित करता है। यह वर्ग शादी विवाह भी नहीं करता है। सामन्य जंगम विवाह भी करते हैं, भीख मांगते हैं। मंदिर में सेवा कर, कृषि या नौकरी कर जीवन यापन करते हैं। जब यह जंगम भिक्षा मांगने जाते हैं, तो वह अपने दाहिने घुटने के नीचे जंग नामक घंटियों का एक गार्टर पहनते है। और एक कोबरा बेंत भी उठाते है। जंगम धर्म से हिंदू हैं। यह सभी वीरशैव लिंगायत खंड के सिद्धांतों का पालन करते हैं। वह अपने शरीर पर लिंगा पहनते हैं, लिंगा को हमेशा चांदी के डिब्बे में रखा जाता है, जिसे चौका कहा जाता है। जिसे शिवभद्र नामक धागे से गर्दन पर बांधा जाता है। वे स्नान करने के बाद प्रतिदिन लिंग की पूजा कर उसे अपने मस्तक को मसलते हैं। वहीं जंगमों के तीन प्रकार के गुरु होते हैं। पहला दीक्षा गुरु जो लिंग को चिन्हित करते हैं। दूसरा शिक्षा गुरु जो शिक्षा प्रदान करते हैं। तीसरा मोक्ष गुरु जो एक धार्मिक मार्गदर्शक होते हैं।

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प्रदीप शाही

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