आज भी इस धरती पर विचरते हैं, यह अष्ट चिरंजीवी

-किसी न किसी वचन, श्राप से बंधे हैं यह अष्ट चिरंजीवी

प्रदीप शाही

यह पूर्ण तौर से सत्य है कि नर हो या नारायण। जब भी किसी ने सच्चे मन से या फिर आहत हो कर किसी को वरदान या श्राप दिया। वह अवश्य फलित हुआ। आज हम आपको इस धरती पर ऐसे आठ लोगों की जानकारी देंगे। जिन्हें चिरंजीवी होने का वरदान मिला है। यह सभी आठ लोग किसी न किसी वचन या फिर श्राप में बंधे होने के कारण अजर-अमर हैं। आखिर कौन हैं यह अष्ट चिरंजीवी।

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माता सीता ने दिय़ा था श्री हनुमान जी को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद

त्रेता युग में भगवान विष्णु जी के अवतार भगवान श्री राम के अनन्य भक्त श्री हनुमान को भगवान शिव का अंशावतार भी कहा जाता है। श्री हनुमान जी अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं। बनवास के दौरान लंकापति रावण की ओऱ से देवी सीता का हरण करने के बाद पहली बार श्री हनुमान जी ने अशोक वाटिका में माता सीता के दर्शन कर उन्हें श्री राम का संदेश दिया। तब माता सीता ने श्री हनुमान जी पर अपना स्नेह लुटाते हुए उन्हें अजर-अमर होने का वरदान दिया। अजर-अमर वह इंसान होता है, जो कभी न मरता है। औऱ न ही कभी बूढा होता है। कलियुग में सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वालों में श्री हनुमान जी प्रमुख हैं। यह भी कहा जाता है कि जहां पर भी श्री रामायण जी का पाठ होता है। वहीं पर श्री हनुमान जी किसी न किसी रुप में अवश्य विराजमान रहते हैं। श्री हनुमान जी को हमेशा ही शक्ति स्रोत माना गया है।

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भगवान शिव से मिले फरसा के बाद राम बने परशुराम

परशुराम जी भगवान श्री विष्णु हरि जी के छठे अवतार हैं। ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका की संतान परशुराम का बचपन में नाम राम रखा गया था। परशुराम जी का जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बालकाल में ही राम ने कठोर तपस्या की। देवों के देव महादेव ने प्रसन्न हो कर उन्हें फरसा बतौर उपहार में प्रदान किया। इस फरसे को धारण करने के बाद ही राम, परशुराम बन गए। सतयुग औऱ त्रेतायुग के संधिकाल में जन्म लेने वाले परशुराम के बारे कहा जाता है कि वह बेहद क्रोध वाले इंसान थे। परशुराम जी ने इस धरती को 21 बार क्षत्रियों से विहीन कर दिया था।

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महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि ने बनाया चिरंजीवी

ऋषि मार्कण्डेय देवों के देव महादेव भगवान शिव के परम भक्त हैं। ऋषि मार्कण्डेय ने भगवान शिव को अपनी कठोर तपस्या से प्रसन्न किया। ऋषि मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि हासिल करने से अजर-अमर हो गए।

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पुराणों के रचयिता, वेदों के संपादक महर्षि वेद व्यास

ऋषि पराशर और माता सत्यवती के सपुत्र वेद व्यास का जन्म यमुना नदी के पास स्थित एक द्वीप पर हुआ। जन्म के समय सांवला रंग होने के कारण यह कृष्ण द्वैपायन कहलाए थे। महर्षि वेद व्यास ने सभी 18 पुराणों के अलावा महाभारत औऱ श्रीमद् भागवत गीता की रचना की। इसके अलावा महर्षि वेद व्यास ने ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद (चारों वेद) का संपादन भी किया। महर्षि वेद व्यास जी अजर-अमर हैं।

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कौरवों, पांडवों के कुलगुरु थे कृपाचार्य

द्वापर युग में हुए महाभारत काल में कृपाचार्य, कौरवों और पांडवों के कुलगुरु थे। कृपाचार्य, गौतम ऋषि के सुपुत्र हैं। कृपाचार्य की बहन का नाम कृपी था। कृपी का विवाह गुरु द्रोणाचार्य से हुआ था। ऐसे में कृपाचार्य, अश्वथामा के मामा हैं। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य ने कौरवों का साथ दिया था।

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श्राप कारण चिरकाल से भटक रहे हैं अश्वथामा

महाभारत युद्ध के अश्वथामा एक ऐसे पात्र हैं। जो भगवान श्री कृष्ण से मिले श्राप के कारण सदियों से आज भी मुक्ति पाने को भटक रहे हैं। महाभारत अनुसार गुरु द्रोणाचार्य के बेटे अश्वथामा, काल, क्रोध, यम औऱ भगवान शिव शंकर के अंशावतार हैं। इसी कारण वह अत्यंत शूरवीर, अति क्रोधी स्वभाव के हैं। अश्वथामा ने द्वापर युग में कौरवों का साथ दिया था। अश्वथामा के बारे कहा जाता है कि मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर असीरगढ़ का किला है। इस किले में भगवान शिव शंकर का एक प्राचीन शिव मंदिर है। इलाके में रहने वाले लोगों का कहना है कि अश्वथामा हर रोज इस शिव मंदिर में मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।

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भगवान राम का साथ देने पर अजर-अमर हैं विभीषण

लंकापति रावण के अनुज विभीषण, भगवान श्री राम की मदद करने के कारण अष्ट चिरंजीवी में से एक हैं। विभीषण भी प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त हैं। जब लंकापति रावण ने देवी सीता का हरण किया तो विभीषण ने भरी सभा में श्री राम से दुश्मनी न करने की सलाह दी थी। सलाह मिलने पर रावण ने अपने भाई विभीषण को देश निकाला दे दिया था। विभीषण ने अधर्म पर धर्म की जीत दिलाने में अहम अदा किया।

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भक्त प्रहलाद के वंशज हैं राजा बलि

राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। राजा बलि ने भगवान विष्णु हरि के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इसी वजह से राजा बलि महादानी की श्रेणी में आते हैं। उनकी इसी सोच को देखते हुए भगवान श्री विष्णु जी अति प्रसन्न हुए। इतना ही नहीं पाताल लोक के राजा बलि से प्रसन्न हो कर ही भगवान श्री विष्णु उनके द्वारपाल भी बन गए थे। राजा बलि भी अजर-अमर की श्रेणी में शामिल हैं।

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प्राचीन मान्यताओं के आधार पर यदि कोई इंसान प्रतिदिन उक्त आठ अजर-अमर लोगों (अष्ट चिरंजीवी) के नाम भी लेता है। तो उसकी उम्र लंबी हो जाती है। इतना ही नहीं सुबह-सुबह स्मरण करने से उनके सभी रोग भी समाप्त हो जाते हैं।

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