अद्भुत..! इस मंदिर में मौजूद है 200 ग्राम का गेहूं का दाना

भगवान शिव की महिमा को कौन नहीं जानता ? भगवान शिव की महिमा अपरमपार है। पूरे भारत में भगवान शिव, शिवलिंग के रूप में बिराजमान हैं। भगवान शिव इसी रूप में अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। देव भूमि हिमाचल प्रदेश के प्रत्येक कोने में कई प्राचीन मंदिर स्थित  हैं। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जिसका संबंध पांडवों के साथ है। साथ ही सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस मंदिर में गेहूं का एक ऐसा दाना मौजूद है जिसके वजन के बारे में सुनकर आप दांतों तले उंगलियां दबा लेंगे। आपने आमतौर पर गेहूं के छोटे-छोटे दाने देखे होंगे लेकिन इस मंदिर में 200 ग्राम वजन का गेहूं का दाना मौजूद है। ममलेश्वर महादेव के नाम से विख्यात यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले की तहसील करसोग के गाँव ममेल में स्थित है।

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200 ग्राम वजन का गेहूं का दाना है विशेष आकर्षण
ममलेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इस मंदिर का संबंध पांडवों से भी है। पांडवो ने अपने अज्ञातवास के दौरान कुछ समय इस गाँव में व्यतीत किया था। ममलेश्वर महादेव मंदिर में 200 ग्राम वजन का गेहूं का दाना मौजूद है। खास बात यह है कि यह गेहूं का दाना महाभारत काल का है यानि 5000 साल पुराना। पुरातत्व विभाग भी इस दाने के अति प्राचीन होने की पुष्टि कर चूका है। यह दाना मंदिर के पुजारी के पास होता है।
यहां भीम ने किया था बकासुर नामक राक्षस का वध
ममलेश्वर महादेव मंदिर में एक धुना भी है। कहा जाता है कि यह धुना महाभारत काल से निरंतर जल रहा है। इस अखंड धुने के साथ एक कथा जुड़ी है कथा के अनुसार जब पांडव अज्ञातवास में थे तो वह कुछ समय के लिए इस गाँव में रुके थे। इस गांव में स्थित एक गुफा में एक राक्षस रहता था । उस राक्षस के डर से और बचने के लिए गांव वासियों ने उस राक्षस के साथ एक समझौता किया कि वह एक साथ ही गांव के सारे लोगों को ना मारे इसलिए वह रोज़ाना एक गांव वासी को खुद उसके पास भेजेंगे। एक दिन उस घर के लड़के की बारी आई जिस घर में पांडव ठहरे हुए थे । लडके की मां ने पांडवों को बताया कि आज उसे अपने बेटे को राक्षस के पास भेजना पड़ेगा। अपना अतिथि धर्म निभाते हुए पांडवो में से भीम ने उस लडके के स्थान पर उस राक्षस के पास जाने का फैसला किया। इसके बाद भीम और उस राक्षस के बीच भयंकर युद्ध हुआ और भीम ने उस राक्षस को मार गिराया। मान्यता है कि भीम की इस जीत की याद में यह अखंड धुना निरंतर जल रहा है।
मंदिर में मौजूद है प्राचीन ढोल
इस मंदिर में एक प्राचीन ढोल भी मौजूद है। कहा जाता है कि यह ढोल भीम का है। यह ढोल भेखल की लकड़ी से बना हुआ है। भेखल पतला लकड़ी का झाड़ होता है लेकिन यह ढोल एक बड़े पेड़ के तने की तरह गोलाकार है।
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मंदिर का पौराणिक इतिहास
ममलेश्वर महादेव मंदिर सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग और कलयुग का जीता जागता प्रमाण है। इस पावन स्थान पर भृगु ऋषि ने तपस्या की थी । कहा जाता है कि हिमयुग के अंत में किन्नर कैलाश में धरती के अंदर हुए बदलाव के कारण किन्नर इस स्थान पर आ गए और कहा जाता है कि भृगु ऋषि ने माम्लिषा नामक एक किन्नर लड़की से विवाह किया था। उस लड़की के नाम पर ही इस स्थान यानि गांव का नाम ममेल पड़ा । इनकी दो पुत्रियां पैदा हुईं जिनका नाम इमला और बिमला था। जो आज भी दो नदियों के रूप में इस स्थान पर मौजूद हैं। यह दोनों नदियां सम्पूर्ण इलाके की भूमि को आज भी सिंचित करती हैं।

शिव-पार्वती की मूर्ति है दर्शनीय
मंदिर की मुख्य इमारत लकड़ी की बनी हुई है। लकड़ी से बनी दीवारों पर बेहतरीन नक्काशी की गई है, जिसमें देवी-देवताओं के अलावा अन्य मूर्तियां भी विशेष दर्शनीय हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर भी भगवान शिव और माता पार्वती के युगल रूप में दर्शन होते हैं। कहा जाता है कि यह दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है, जिसमें भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां युगल के रूप में स्थापित हैं।

मंदिर में स्थापित हैं पांच शिवलिंग
ममलेश्वर महादेव मंदिर में पांच शिवलिंग स्थापित हैं कहा जाता है कि इन शिवलिंगों की स्थापना स्वयं पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान की थी। मान्यता के अनुसार इस मंदिर में पांच पांडवों ने पांच शिवलिंगों की स्थापना की थी। यह भी कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने स्वयं करसोग घाटी में 80 शिवलिंग स्थापित किए थे। और साथ ही भगवान परशुराम ने ही भगवान शिव की प्रतिमा के रूप में 81वें शिवलिंग की स्थापना इस स्थान पर की थी।

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पास के मंदिर दी जाती थी नर बलि
ममलेश्वर महादेव मंदिर के पास ही एक और प्राचीन मंदिर स्थित है। यह मंदिर सदियों से बंद है कहा जाता है कि प्राचीन समय में इस मंदिर में यज्ञ के दौरान नर बलि दी जाती थी। तब इस मंदिर में केवल पुजारी ही प्रवेश कर सकते थे। आज भी उसी परंपरा के चलते इस प्राचीन मंदिर में केवल पुजारी ही जा सकते हैं।
धर्मेन्द्र संधू

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