11वीं सदी में निर्मित हुआ था विश्व का इकलौता ग्रेनाइट का मंदिर

-80 टन वजनी पत्थर से बना है बृहदीस्वरर मंदिर का शिखर
-इंजीनियरिंग को हर पल चुनौती देता रहा मंदिर का निर्माण
भारत में सदियों पहले वास्तु कला से निर्मित मंदिर मौजूदा समय की इंजीनियरिंग को आज भी चुनौती दे रहे हैं। 11वीं सदी में तमिलनाडु के तंजौर में ग्रेनाइट से बनाया गया विश्व का इकलौता मंदिर साइंस के लिए अजूबा बना हुआ है। सबसे हैरानीजनक बात तो यह है कि इस मंदिर का शिखर 80 टन वजन वाले पत्थर से बना हुआ है। मंदिर के गुंबई की परछाई का जमीन न पड़ना सबसे खास बातों में से एक है। इस मंदिर के अजूबे सुनने वालों को दांतों तले अंगुली दबाने के लिए मजबूर कर देते हैं।

समूचा मंदिर ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित
समूचा बृहदीस्वरर मंदिर ग्रेनाईट पत्थरों से बनाया गया है। इस मंदिर से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर ग्रेनाईट पत्थरों की खदान है। परंत सवाल यह है कि इतने भारी भरमक ग्रेनाइट के प्त्थरों को मंदिर निर्माण स्थल तक कैसे लाया गया होगा। ग्रेनाइट की चट्टानें सबसे कठोर मानी जाती है। इनको तराशने के लिए या फिर इनमें छेद करने के लिए हीरे के कण लगे औजार का प्रयोग होता है। यह भी कौतहूल का विषय है कि उस समय भी इस ग्रेनाइट के पत्थरों को इस ढंग से तराशा गया है। जो आज भी बेहद दर्शनीय है। गौर हो इस मंदिर को बनाने में कुल 1.30 लाख टन पत्थर का प्रयोग करते हुए सात साल में बना दिया गया था। यह मंदिर अब तक 6 बड़े भूकंपों का सामना कर चुका है। परंतु इस मंदिर को किसी तरह का कोई भी नुकसान नहीं हुआ है।

इसे भी पढ़ें एक ही पर्वत को तराश कर बनाए इस मंदिर में नहीं होती पूजा….

मंदिर के गुबंद की परछाई जमीन पर नहीं पड़ती
वास्तुकला की अनुपम कलाकृति माने जाने वाले मंदिर के निर्माण कला की एक विशेषता यह है। इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है।

इसे भी पढ़ें किस संत, फकीर को भक्तों ने दिया भगवान का दर्जा…

बृहदेश्वर मंदिर
तंजौर स्थित मंदिर बृहदेश्वर या बृहदीश्वर कहें। एक ही बात है। भगवान शिव का यह मंदिर 11वीं सदी के आरंभ में बनाया गया था। यह मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट से बनाया गया है। जो विश्व का एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित है। इस मंदिर को भव्यता, वास्तुकला के भव्यता चलते ही यूनेस्को ने विश्व धरोहर के तौर संरक्षित किया हुआ है। मंदिर का निर्माण 1003 से 1010 ईस्वी के मध्य चोल शासक प्रथम राजा राज चोल ने स्वप्न में दैवीय प्रेरणा प्राप्त होने करवाया था। इस मंदिर की कुल तेरह मंजिलें है।

मंदिर के 61 मीटर उंचे मुख्य शिखिर पर लगा है 80 टन का पत्थर
मंदिर के शिखर पर 80,000 किलोग्राम यानि कि 80 टन भारी नक्काशी युक्त पत्थर स्थापित है। जो 61 मीटर उंचाई पर स्थापित है। यह मंदिर 16 फीट उंचे ठोस चबूतरे पर बनाया गया है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि मंदिर के शिखर तक 80 टन वजनी पत्थर कैसे ले जाया गया होगा। यह रहस्य आज भी इंजीनियरों के लिए बना हुआ है। कुछ माहिरों का कहना है कि मंदिर के शिखर तक 1.6 किलोमीटर लंबा एक रैंप बनाया गया होगा। जिस पर इस भारी भरकम पत्थर को खिसका कर शिखर तक पहुंचाया गया होगा।

मंदिर के प्रांगण में स्थापित है 12 फीट उंचा शिवलिंग
मंदिर के प्रांगण में 12 फीट उंटा शिव लिंग स्थापित है। वहीं प्रवेश द्वार के पास गोपुरम के भीतर एक चौकोर मंडप बना हुआ है। जिस पर भगवान शिव के सबसे प्रिय नंदी जी की 20 टन वजन वाले पत्थर से तराशी 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर उंची प्रतिमा बनी हुई है।

सरकार ने जारी किया था एक हजार का नोट व  सिक्का

रिजर्व बैंक ने मंदिर के एक हजार साल पूरे होने पर एक अप्रैल 1954 को एक हजार रुपये का नोट जारी किया था। जिस पर बृहदेश्वर मंदिर की भव्य तस्वीर थी। यह नोट लोकप्रिय हुआ। इस मंदिर के एक हजार साल पूरे होने के उपलक्ष्‍य में आयोजित मिलेनियम उत्सव के दौरान एक हजार रुपये का स्‍मारक सिक्का भी जारी किया। 35 ग्राम वज़न का यह सिक्का 80 प्रतिशत चाँदी और 20 प्रतिशत तांबे से बना है।

मंदिर में ज्योति जलाने का था विशेष प्रबंध
मंदिर को ज्योति से जगमगाने के लिए घी का विशेष प्रंबध किया गया था। राजा राज चोल ने मंदिर के प्रंबधन को चार हजार गाए, सात हजार बकरियां, 30 भैंस प्रदान की। साथ ही 2500 एकड़ जमीन दी। ताकि इन मवेशियों को सही ढंग से रखा जा सके। मंदिर की व्यवस्था की देखरेख के लिए 192 कर्मचारी भी तैनात किए गए थे।

LEAVE A REPLY