स्वर्ग में निर्मित रहस्यमयी शिव मंदिर धरती पर है स्थापित

-मंदिर के रहस्य समक्ष विज्ञान भी नतमस्तक
यह पूर्णतया सच है कि शिव को समझना है, शिव को पाना है तो सर्वप्रथम शिव में लीन होना होगा। इस धरती पर देवों के देव महादेव शिव, लिंग रुप में विराजमान है। भगवान शिव को ही इस सृष्टि का सृजन और सृष्टि का अंत कहा गया है। यही कारण है कि भगवान शिव की कोई भी थाह नहीं पा सका है। इतना ही नहीं शिव शंकर के मंदिरों में छिपे रहस्य भी सबकी समझ से परे हैं। आखिर क्या वजह है कि मंदिरों के रहस्य को हमारी आजकी उन्नत साइंस भी समझ नहीं पाई। एक एेसा ही रहस्यमयी कैलाश मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है। इस मंदिर के रहस्य के समक्ष विज्ञान भी नतमस्तक हो चुका है। इस मंदिर के बारे कहा जाता है कि इस शिव मंदिर को स्वर्ग में निर्मित कर धरती पर स्थापित किया गया था। आईए जाने कि आखिर क्या खास है इस मंदिर के निर्माण में।

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क्या सचमुच स्वर्ग में निर्मित हुआ कैलाश शिव मंदिर

इस मंदिर को देखकर ऐसा लगता है कि इस मंदिर को स्वर्ग में निर्मित किया गया। इसके बाद  इस मंदिर को यहां पर स्थापित किया गया। मंदिर की नक्काशी और भव्य प्रतिमाएं इस बात को दर्शाती हैं कि इसको निर्मित करना साधारण मानव के बस की बात नहीं है। पहाड़ को खोद कर तराशना आज की उन्नत साइंस के भी बस से बाहर है। कुछ लोग इस मंदिर को एलिंयस द्वारा निर्मित किया बताया जाता है। शायद पुरातन समय में एलियंस इस धरती पर आते रहे हों। यह रहस्य आज भी बरकरार है। मंदिर के निर्माण की सही उम्र बता पाना किसी के बस में नहीं है। क्योंकि इस मंदिर के निर्माण में चट्टान के सिवा कोई दूसरी वस्तु का उपयोग ही नहीं हुआ है। यदि चट्टान की कार्बन डेटिंग की जाए, तो वह मंदिर की आयु नहीं चट्टान की आयु बताएगी। कुछ वैज्ञानिक इस मंदिर को 1900 साल पुराना और कुछ इस मंदिर को 6000 साल से भी पुराना मानते हैं।

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औरंगाबाद के कैलाश शिव मंदिर में क्या है खास
औरंगाबाद स्थित कैलाश शिव मंदिर के निर्माण का रहस्य आज तक नहीं विज्ञान भी नहीं सुलझा पाया है। भगवान शिव के कैलाश मंदिर के रहस्य के बारे में आज भी नाममात्र लोग ही वाकिफ हैं। इस मंदिर के निर्माण में कहीं ईंट, पत्थर या गारे का इस्तेमाल नहीं किया गया है। एक पहाड़ी को इस तरह से तराश कर मंदिर का रुप दिया, जो कल्पना से परे है। इस मंदिर को निर्माण नीचे से ऊपर नहीं, बल्कि उपर से नीचे हुआ है। यह एक रहस्य सदियों से विज्ञान के लिए चुनौती है। आखिर किस तरह की मशीनों से इस शिव मंदिर का निर्माण किया गया होगा। भारत ही नहीं विश्व के सभी वैज्ञानिक इस मंदिर की निर्माण कला से हतप्रभ हैं।

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मंदिर के निर्माण में किया गया होगा बौमास्त्र का इस्तेमाल
कैलाश शिव मंदिर की अद्भुत रचना को देख कर केवल यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस मंदिर के निर्माण में वेदों में उल्लेख बौमास्त्र का उपयोग किया गया होगा। क्योंकि इस अस्त्र से पत्थर को पिघलाने की भी शक्ति थी। इस मंदिर को देखने के बाद ऐसा लगता है मानो मंदिर का नक्शा पहले से ही तैयार रहा होगा। मंदिर के भीतर बहुत से ऐसे विशाल खंब हैं, जिनको जोड़ते हुए पुल भी बने हुए हैं। मंदिर में बालकनी भी है।

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मंदिर के नीचे है सुरंगों का मायाजाल
मंदिर के नीचे सुरंगों का ऐसा मायाजाल है । जहां पर कुछ ही लोग पहुंच पाए थे। एक विदेशी शोधकर्ता ने मंदिर के नीचे बनी सुरंगों के अंतिम छोर तक जाने का दावा किया। उसने बताया की मंदिर के नीचे एक विशाल कमरा है। जो की एक मंदिर की तरह है। वहां उसने कुल सात लोगों को देखा। जिसमें से दो लोग कभी दिखते और कभी गायब हो जाते थे। कुछ लोगों का मानना है कि मंदिर के नीचे पूरा एक शहर हुआ करता था। मौजूदा समय में यह गुफाएं आम लोगों के लिए बंद की हुई हैं।

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कैसे बना है ये मंदिर
इस कैलाश शिव मंदिर की उंचाई 90 फीट है। 276 फीट लंबे, 154 फीट चौड़े इस मंदिर के निर्माण में 200 साल लगे माने जाते हैं। मंदिर को बनाने में सात हजार कारीगर निरंतर काम करते रहे। इस मंदिर में कभी पूजा किए जाने का कोई भी प्रमाण नहीं मिला। आज भी इस मंदिर में कोई पुजारी नहीं है। इसके निर्माण में करीब 40 हज़ार टन वजनी पत्थरों को तराशा गया। मंदिर के आंगन के तीनों तरफ कोठरियां हैं और सामने खुले मंडप में नंदी विराजमान है। इसके दोनों तरफ विशालकाय हाथी व अन्य स्तंभ बने हैं। यह शिव मंदिर इतना शक्तिशाली माना गया है कि यहा पर भगवान शिव के दर्शन मात्र से ही रोग खत्म हो जाते हैं। इस मंदिर के नीचे कई रहस्मयी गुफाएं हैं। जहां भगवान शिव से जुड़े कई राज इन गुफाओं में बंद हैं। मंदिर में भैरव की मूर्ति का रुप रौद्र है। वहीं माता पार्वती की प्रतिमा उतनी ही स्नेहशील है। मंदिर में विशाल और भव्‍य नक्काशी देखते ही सम्मोहित करती है।

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प्रदीप शाही

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