श्रीकृष्ण के श्राप कारण पांच हजार साल से भटक रहे हैं अश्वत्थामा

-किले के शिवमंदिर में प्रतिदिन पूजा करने आता है अश्वथामा
यह सच है कि दिया गया श्राप कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है। यही कारण है कि महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य के बेट वीर अश्वथामा को एक चूक का खामियाजा भगवान श्री कृष्ण से मिले श्राप के कारण चुकाना पड़ा। श्री कृष्ण से मिले श्राप के कारण अश्वथामा पांच हजार हजार साल से इस धरती पर भटक रहे है। इतना ही नहीं अश्वथामा आज भी एक किले में बने भगवान शिव के मंदिर में रोजाना पूजा करने आते है। आईए आज आपको बताते हैं कि अश्वथामा कहां पर भटक रहा है। यह कौन से इलाका है जहां पर अश्वथामा रोजाना आते है।

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कहां भटक रहा है वीर अश्वथामा
महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य के वीर बेटे अश्वथामा को अपने एक बुरे काम के कारण भगवान श्री कृष्ण से मिले श्राप के कारण युगों-युगों से भटकना पड़ रहा है। अश्वत्थामा महाभारतकाल अर्थात द्वापर युग में जन्मे थे। उनकी गिनती उस युग के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती थी। वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र व कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के भानजे थे। गुरु द्रोणाचार्य ने कौरवों और पांडवों को एक समान शस्त्र विद्या में पारंगत किया था।।

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कहां पर स्थित है भगवान शिव का मंदिर
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर स्थित असीरगढ़ किले में भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। जहां पर आज भी भगवान श्री कृष्ण से मिले श्राप से मुक्ति पाने के लिए अश्वथामा पूजा करने आते हैं। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग पर रोजाना ताजा फूल व गुलाल चढ़ा मिलता है। जो आज भी एक रहस्य बना हुआ है। बुरहानपुर का इतिहास महाभारतकाल से जुड़ा हुआ माना जाता है। पहले यह जगह खांडव वन से जुड़ी हुई थी। किले का नाम असीरगढ़ यहां के एक प्रमुख चरवाहे आसा अहीर के नाम पर रखा गया था। किले को यह स्वरूप 1380 ई. में फारूखी वंश के बादशाहों ने दिया था।

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क्यों दिया था श्री कृष्ण ने श्राप
महाभारत के युद्ध में जब द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की मृत्यु की सत्यता जाननी चाही तो युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा यानि कि अश्वत्थामा मारा गया है, लेकिन मुझे पता नहीं कि वह नर था या हाथी)। यह सुन गुरु द्रोण पुत्र मोह में शस्त्र त्याग कर युद्धभूमि में बैठ गए। इस अवसर का लाभ उठाकर पांचाल नरेश द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया था। पिता की मृत्यु से आहत हुए वीर अश्वत्थामा ने अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडवों के सोए हुए पुत्रों का वध कर दिया। इतना ही नहीं उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र भी चला दिया। तब भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन करते हुए युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दे दिया।

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अश्वथामा को देखने वाला खो देता है मानसिक संतुलन
कहा जाता है कि असीरगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के गौरीघाट (नर्मदा नदी) के किनारे अश्वत्थामा भटकते रहते हैं। लोगों का कहना है कि कभी-कभी वह अपने मस्तक के घाव से बह रहे खून को रोकने के लिए हल्दी और तेल की मांग भी करते हैं। जब कुछ लोग मछली पकडऩे वहां के तालाब में गए थे, तो अंधेरे में उन्हें किसी ने तेजी से धक्का दिया था। गांव के कई बुजुर्गों कहते हैं कि जो एक बार अश्वत्थामा को देख लेता है, वह अपना मानसिक संतुलन खो देता है।

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शिव मंदिर में रोजाना पूजा-अर्चना करने आते हैं अश्वथामा
किले में स्थित तालाब में स्नान करके अश्वत्थामा रोजाना शिव मंदिर में पूजा करने जाते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वे उतावली नदी में स्नान करके पूजा के लिए यहां आते हैं। पहाड़ की चोटी पर बने किले में स्थित यह तालाब बुरहानपुर की तपती गरमी में भी कभी नहीं सूखता है। तालाब के कुछ आगे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर चारों तरफ से खाइयों से घिरा हुआ है। इन्हीं खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन से सीधा इस मंदिर में निकलता है। इसी रास्ते से होते हुए अश्वत्थामा मंदिर के अंदर आते हैं। भले ही इस मंदिर में रोशनी की सही ढंग से व्यवस्था नही है, लेकिन पूजा यहां लगातार जारी है। शिवलिंग पर प्रतिदिन ताजा फूल व गुलाल चढ़ा रहता है।

प्रदीप शाही

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