श्राप या प्रतिस्पर्धा ? किस कारण नहीं बन पाया यह मंदिर आज तक पूरा

भारत में ईश्वर के कई रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। देश के कोने-कोने में विभिन्न देवी-देवताओं से  संबंधित मंदिर मौजूद हैं। यह प्राचीन मंदिर भारतीय वास्तुकला के जीते जागते प्रमाण हैं। यह मंदिर चाहे सदियों पुराने हैं लेकिन आज भी श्रद्धालुओं की आस्था व श्रद्धा का केन्द्र हैं। इन प्राचीन मंदिरों के दर्शन करने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी श्रद्धालु आते हैं साथ ही यह मंदिर इतिहासकारों के लिए शोध का विषय बने हुए हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में जानकारी देंगे जो सदियों पुराना होने के बावजूद आज भी अधूरा है। यह प्राचीन मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है।

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जांजगीर भगवान विष्णु का मंदिर

प्राचीन जांजगीर भगवान विष्णु का मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है इस मंदिर से जुड़ी खास बात यह है कि  यह मंदिर कई वर्षों से अधूरा है। यह प्राचीन मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य में वैष्णव मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण छत्तीसगढ़ के कल्चुरी नरेश जाज्वल्य देव प्रथम ने भीमा तालाब के किनारे करवाया था। इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। सप्तरथ योजना से बना यह प्राचीन मंदिर भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

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मंदिर के अधूरे निर्माण से जुड़ी की कथाएं

जांजगीर विष्णु मंदिर के अधूरे निर्माण कार्य को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार एक ही समय में दो मंदिरों का निर्माण कार्य आरंभ किया गया था। जिनमें से एक शिवरीनारायण मंदिर और दूसरा जांजगीर मंदिर था। मान्यता है कि भगवान नारायण ने स्वयं घोषणा करके कहा था कि इन मंदिरों में से जो मंदिर पहले बनकर तैयार होगा, मैं उसी में ही वास करूंगा। दोनों मंदिरों के निर्माण कार्य को लेकर एक प्रकार की प्रतियोगिता शुरू हो गई जिसके चलते शिवरीनारायण मंदिर का निर्माण कार्य पहले समाप्त हो गया और जांजगीर मंदिर उस दौरान अधूरा रह गया।

दूसरी प्रचलित कथा के अनुसार मंदिर के पास बने भीमा तालाब को पांडव भीम ने केवल पांच बार फावड़ा चलाकर खोदा था। कहा जाता है कि जांजगीर मंदिर का शिल्प कार्य भी भीम ने ही अपने हाथों से किया था। कथा इस प्रकार है कि मंदिर निर्माण को लेकर भगवान विश्वकर्मा और भीम के बीच मुकाबला हुआ था। इस दौरान यह शर्त रखी गई कि मंदिर का निर्माण केवल एक रात में ही पूरा करना होगा। इसके बाद भीम ने खुद इस मंदिर के निर्माण कार्य की शुरूआत की। कथा के अनुसार निर्माण के दौरान भीम के हाथ से जब भी छेनी या हथौड़ा नीचे गिरता तो भीम का हाथी उसी समय छेनी व हथौड़ा उठा लाता था। इसी दौरान भीम के हाथ से छेनी तालाब में गिर गई। तालाब में गिरी छेनी को बाहर लाने में हाथी असफल रहा और सुबह होने तक मंदिर का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका। कहते हैं कि इस प्रतियोगिता को हारने पर भीम बहुत दुखी हुआ और गुस्से में आकर हाथी के दो टुकड़े कर दिए। मंदिर में आज भी भीम और हाथी की खंडित मूर्ति मौजूद है।

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वास्तु कला का उत्कृष्ट उदाहरण

यह प्राचीन मंदिर एक विशाल चबूतरे पर बना हुआ है। इस चबूतरे की लंबाई 33.3 मीटर, चैड़ाई 22.3 मीटर व उंचाई 2.75 मीटर है। इसके पूर्वी भाग में राम कथा के चित्र बनाए गए हैं जिनमें भगवान राम, माता सीता लक्षमण व रावण इत्यादि के साथ सीताहरण को दर्शाते चित्र हैं। और पश्चिमी भाग में भगवान कृष्ण के जीवन को दर्शाया गया है जिसमें मुख्य रूप से वासुदेव भगवान श्री कृष्ण को उपर उठाए गतिशील मुद्रा में दिखाई देते हैं। जांजगीर विष्णु मंदिर चाहे अधूरा है लेकिन फिर भी छत्तीसगढ़ में स्थित अन्य वैष्णव मंदिरों की तुलना में जांजगीर मंदिर में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों के ज्यादा चित्र देखे जा सकते हैं। मुख्य रूप से इसमें भगवान विष्णु के दशावतारों की मूर्तियां दर्शनीय हैं। मंदिर के पिछले भाग में सूर्य देव की मूर्ति बनी हुई है।

धर्मेन्द्र संधू

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