शिव और शक्ति के मिलन की रात्रि : महाशिवरात्रि

शिव और शक्ति के मिलन की रात्रि को शिवरात्रि कहा जाता है भगवान शिव शंकर महादेव के भक्त इस दिन व्रत रखकर अपने आराध्य देवादि देव का व्रत रखकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं |आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष तत्व के मिलन की रात के रूप में माना और मनाया जाता है| शिवरात्रि के दिन सभी शिव मंदिरों में पूरा दिन जलाभिषेक का कार्यक्रम चलता रहता है |

हमारे पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव पहली बार प्रकट हुए थे | शिव जी का यह प्रथम प्रकट रूप एक ज्योतिर्लिंग अर्थात अग्नि के शिवलिंग के रूप में था | यह एक ऐसा शिवलिंग था जिसके ना तो आदि का ही पता चल रहा था और ना ही अंत का |

बताया जाता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्मा जी हंस पर सवार होकर शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने का प्रयास करते रहे परंतु उन्हें कोई सफलता नहीं मिली | वो शिवलिंग के ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए | दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग का आधार ढूंढने लगे परंतु वह भी सफल नहीं हुए उन्हें भी आधार का पता नहीं चल सका |

एक अन्य कथा के अनुसार शिवरात्रि के दिन ही कुल 64 जगह पर शिवलिंग प्रकट हुए थे | इनमें से अभी केवल 12 ज्योतिर्लिंगों का स्थान है पता चला है | महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में लोग भी दीप स्तंभ लगाते हैं ताकि भगवान शिव के अग्नि वाले अनंत लिंग का अनुभव कर सकें |

जो मूर्ति है उसका नाम लिंगोभव अर्थात लिंग से प्रकट हुए माना गया है जिसका ना तो आदि है और ना ही अंत | इस दिन भगवान शिव और मां शक्ति का मिलन भी हुआ था | महाशिवरात्रि को सभी भक्तों पूरी रात जागकर अपने आराध्य देव भगवान शिव और शक्ति के विवाह का उत्सव मनाते हैं | इस दिन शिव जी ने शक्ति से विवाह कर वैराग्य जीवन का त्याग करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था |

महाशिवरात्रि के 15 दिन पश्चात होली का त्योहार मनाने के पीछे भी यही कारण बताया जाता है | देवाधिदेव भगवान शिव महायोगी भी है और सांसारिक भी, वह ध्यानस्थ भी हैं और त्रिकालदर्शी भी, भोले भाले भी हैं और रौद्र रूप भी धारण कर लेते हैं | यह भगवान महादेव ही हैं जिन्होंने सागर मंथन से उत्पन्न हलाहल यानी कि विष का सेवन करके उसे अपने गले में स्थिर किया और स्वयं नीलकंठ कहलाए |

संपूर्ण जगत की रक्षा कर उन्होंने ही विश्व की सभी त्याज्य वस्तुओं को पूज्य प्रतीक का स्वरूप प्रदान किया | एक ओर जहां शिव भस्म धारण करते हैं और इस संसार के क्षणभंगुर होने का सार तत्व प्रदान करते हैं, वही वह धतूरे और बिल्ला पत्र को भी धारण करते हैं | यह इस बात का प्रतीक है कि यदि अपने जीवन की बुराइयां, दुख, चिंताएं और कांटे आप भगवान शिव के चरणों में समर्पित कर देते हैं तो आपके जीवन की सब बाधाएं वह दूर कर देते हैं | बिल्वपत्र के तीन पत्ते हमारे तीन गुण सत्व, रजस, और तमस को दर्शाते हैं|

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