ये सच है शेषनाग के फन पर टिकी है यह धरती

-वेद, पुराण, महाभारत में भी है नागों का उल्लेख

नागों के बारे वेद, पुराण, महाभारत में भी उल्लेख है। नागों में आलौकिक शक्तियों का होना भी माना गया है। नागों को तो इच्छाधारी शक्ति से आसीन भी माना गया है। आलौकिक शक्तियों से संपन्न शेषनाग के फन पर धरती को टिका होना भी माना गया है। हिंदू धर्म में शेषनाग को भगवान श्री हरि विष्णू का सेवक माना गया है। शेषनाग पर ही भगवान विष्णू को आराम करते दिखाया जाता है। क्या आप शेषनाग और नागों की उत्पत्ति के बारे जानते हैं। यदि नहीं तो आईए आपको इस बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं।

इसे भी पढ़ें…जानिए कहां दिन में तीन बार रंग बदलता है शिवलिंग ?

 

आदिकाल से थी यह प्रमुख जातियां

प्राचीन काल में अधिकतर लोग हिमालय के आसपास ही रहते थे। वेद, पुराण और महाभारत में भी नागों का उल्लेख पाया गया है। आदिकाल में प्रमुख रूप से देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, भल्ल, वसु, अप्सराएं, पिशाच, सिद्ध, मरुदगण, किन्नर, चारण, भाट, किरात, रीछ, नाग, विद्‍याधर, मानव, वानर का उल्लेख हैं। इनमें से कुछ जातियां तो भरपूर आलौकिक शक्तियों से संपन्न थी। नागों में सबसे महत्वपूर्ण नाग शेषनाग माना गया है।

इसे भी पढें….पंच तत्वों में हुई गड़बड़ी तो समझो बजी खतरे की घंटी

क्या शेषनाग सांप है या मनुष्य ?

नागों के बारे यह प्रचलित है कि नाग इच्छाधारी भी होते हैं। जो कभी भी इंसान का या फिर नाग का रुप धरने में सक्षम होते हैं। शेषनाग क्या सचमुच में हजार फन वाले सांप थे या फिर मनुष्य? इस पर हमेशा चर्चा जारी रही है। यह शोध का विषय माना गया है। शेषनाग के बारे यह भी कहते हैं कि वह एक हजार भाई थे। यह भी कहते हैं कि वे अपनी इच्छा से नाग का रूप धारण करने की क्षमता रखते थे। शेषनाग के बारे में कहा जाता है कि इन्हीं के फन पर धरती टिकी हुई है। समुद्र के भीतर से प्रकट हुई एक महाद्वीप वाली धरती पूर्वाकाल में शेषनाग की तरह ही दिखाई देती थी। पुराणों अनुसार नागों का पाताल लोक में वास होता है। यह भी मान्यता है कि शेषनाग के हजार मस्तक हैं। इनका कही अंत नहीं है, इसीलिए इन्हें अनंत नाग के नाम से भी किया जाता है।

इसे भी देखें…सदियों से क्यों जल रही है यहां ज्वाला, जलती ज्वाला का रहस्य

कश्यप ऋषि के सबसे बड़े पुत्र थे शेष

प्रजापति दक्ष की कन्या कद्रू और ऋषि कश्यप से सम्पूर्ण नाग जाति का जन्म होना माना गया है। कद्रू को इसीलिए नाग माता के नाम से भी जाना जाता हैं। ऋषि और उनकी पत्नी कद्रू के बेटों में सबसे बड़े बेटे नागराज बेहद पराक्रमी थे। कश्मीर का अनंतनाग जिला इनका गढ़ माना गया है। नागराज अपने पारिवारिक क्लेश के चलते अपने परिवार का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने चले गए हैं। भगवान श्री ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया। साथ ही उन्हें भगवान विष्णु का सेवक भी बना दिया। इसे नागराज ने अपना सबसे बड़ा पुण्य समझा। वहीं शेषनाग के जललोक में जाते ही परिवार ने उनके स्थान पर उनके छोटे भाई वासुकि का राज्यतिलक कर दिया गया। सबसे खास बात यह कि पुराणों में सात पातालों अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल का उल्लेख मिलता है। सुतल नामक पाताल में कश्यप की पत्नी कद्रू से पैदा हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का क्रोधव नामक एक समुदाय रहता है। उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण प्रधान नाग हैं।

इसे भी देखें….महाबली भीम और घटोत्कच यहां खेलते थे इन विशाल गोटियों से शंतरज

भगवान शिव की बेटी देवी मनसा भी हैं नाग माता

भगवान शिव जी की बेटी देवी मनसा को भी नाग माता कहा जाता है। जिनका विवाह जरत्कारु नाम के ऋषि के साथ हुआ था। एक समय राजा जनमेजय ने अपने पिता के नाग दंश से मृत्यु हो जाने पर, नागों को भस्म कर देने वाला नाग यज्ञ करवाया। इस यज्ञ में सभी नाग गिरकर भस्म होने लगे। तब देवी मनसा के पुत्र आस्तिक उपाय कर नाग यज्ञ को बंद करवा नागों की रक्षा की। तब से देवी मनसा को नाग माता के रुप में पूजा जाने लगया।

इसे भी देखें….भगवान श्री कृष्ण के आशीर्वाद से बर्बरिक कैसे बने कृष्णावतार…

नागों के नाम से स्थापित हैं कई शहर व गांव 

नाग प्रजाति के 12 नाग हैं। इनमें अनंत, कुलिक, वासुकि, शंकुफला, पद्म, महापद्म, तक्षक, कर्कोटक, शंखचूड़, घातक, विषधान और शेष नाग प्रमुख हैं। भारत में अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला प्रजाति का वर्चस्व है। नागवंश इनसे ही चलता है। महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था। यहां के लोग सर्प पूजक होने के कारण नागवंशी कहलाए। यह भी माना जाता है कि यह प्रजाति कश्मीर से संबंधित है। कश्मीर का अनंतनाग इलाका इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित कुछ अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है। तक्षक प्रजाति ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने कुल को चलाया था। अथर्ववेद में भी कुछ नागों के नामों स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव, चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर का उल्लेख है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंश तथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया। कई शहर और गांव नाग शब्द पर आधारित हैं। महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां नदी का नाम नाग नदी भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा।

इसे भी देखें….भगवान श्री राम से पहले लक्ष्मण जी ने किया था मृत्युलोक से प्रस्थान…

प्रदीप शाही

LEAVE A REPLY