राज्य में राष्ट्रीय स्तर के वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट की स्थापना के लिए मुख्यमंत्री का प्रस्ताव केंद्र द्वारा मंज़ूर

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह की विनती को स्वीकृत करते हुए भारत सरकार ने पंजाब में उत्तरी ज़ोन के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी सैंटर (वायरस-विज्ञान का केंद्र) की स्थापना करने के लिए सैद्धांतिक मंज़ूरी दे दी है।
इस समय पर देश में पूणे में ही नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एन.आई.वी.) ही ऐसी संस्था है जो आपातकालीप स्थिति में बेहतर तालमेल वाले चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया करने के समर्थ है।
मुख्यमंत्री, जिन्होंने कोविड महामारी के मद्देनजऱ कुछ हफ़्ते पहले केंद्र के पास ऐसी संस्था का प्रस्ताव रखा था, ने इसको मंज़ूरी मिलने का स्वागत करते हुए कहा कि यह संस्था वायरोलॉजी के क्षेत्र में खोज के काम को और तीव्रता से आगे ले जाने में सहायक होगी और भविष्य में भारत को वायरस का जल्द से जल्द पता लगाने के भी समर्थ बनाएगी, जिससे इसकी रोकथाम के लिए ज़रुरी कदम उठाए जा सकें। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने आगे कहा कि यह केंद्र हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और चंडीगढ़ और जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेशों समेत पूरे उत्तरी क्षेत्र की ज़रूरतों का भी निपटारा करने में भी मददगार सिद्ध होगा।
मुख्यमंत्री कार्यालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि राज्य के मुख्य सचिव ने इस संस्था को केंद्र की सैद्धांतिक मंज़ूरी देने का पत्र भारत सरकार ने स्वास्थ्य अनुसंधान मंत्रालय के सचिव-कम-भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के डायरैक्टर जनरल प्रोफ़ैसर (डॉक्टर) बलराम भार्गव से हासिल किया। उन्होंने राज्य सरकार को लंबे समय के लिए लीज़ पर लगभग 25 एकड़ ज़मीन की पहचान करने की अपील की है, जिससे चिकित्सा अनुसंधान परिषद् जल्द से जल्द इस अहम प्रोजैक्ट की स्थापना कर सके।
जि़क्रयोग्य है कि कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर अपील की थी कि वह प्रस्तावित केंद्र की स्थापना के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण को निर्देश दें, जो कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए विषाणू-विज्ञान, जांच, शोध और इलाज के अध्ययन में क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक ज़रूरतों के हल पर केंद्रित होगा। मुख्यमंत्री ने विशेष केंद्र न्यू चंडीगढ़ में मैडीसिटी में स्थापित करने का प्रस्ताव पेश किया था, जो चंडीगढ़ में अंतरराष्ट्रीय हवाई संपर्क सेवा होने के कारण उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के हितों की पूर्ति कर सकेगा। उन्होंने यह भी बताया कि इस केंद्र को आसानी से पी.जी.आई. के अधीन विकसित किया जा सकता है, जो प्रस्तावित मैडीसिटी से केवल 7-8 किलोमीटर दूर स्थित है।
बी.एस.एल.-3 फैसिलिटी के साथ यह केंद्र स्थापित करने के लिए लगभग 400 करोड़ रुपए की राशि की ज़रूरत होगी और बी.एस.एल.-4 फैसिलिटी के लिए और 150 करोड़ रुपए की ज़रूरत होगी, जबकि इसमें ज़मीन शामिल नहीं है, क्योंकि यह ज़मीन राज्य सरकार द्वारा दी जानी है।
कोविड-19 के दौरान मुल्क को पेश आई अनिर्धारित संकटकालीन स्थिति का जि़क्र करते हुए मुख्यमंत्री ने उम्मीद ज़ाहिर की कि यह केंद्र वायरस की खोज और जांच के साथ-साथ इस क्षेत्र में सामथ्र्य निर्माण के लिए कारगर सिद्ध होगा, जिससे वायरस से होने वाली बीमारियों के लिए मानक जांच, स्वास्थ्य सेवाओं के अलावा एम.एस.सी. मैडीकल वायरोलॉजी और डॉक्टरेट ऑफ मैडिसन (डी.एम.) के लिए टीचिंग कोर्सों की शुरुआत भी की जा सकेगी।

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