यश, विजय, सुख, समृद्धि, लक्ष्मी का प्रतीक है शंख

-शंख नाद होता है बेहद शुभ

प्रदीप शाही

हिंदु धर्म में बेहद पावन माने जाने वाले शंख को सुख, समृद्धि, यश, विजय, लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। शंख की शक्ति और चमत्कारों का उल्लेख महाभारत और पुराणों में वर्णित हैं। हिंदु धर्म में शंख नाद को बेहद शुभ माना जाता है। पुराणों में कई तरह के शंखों की किस्मों का उल्लेख मिलता है।

शंख क्या होता है ?

शंख सागर के जलचर द्वारा बनाया एक ढांचा है। समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत कलश, 14 रत्नों में छठा रत्न पाञ्चजन्य शंख भी निकला था। समुद्र से निकलने वाले शंख अधिकतर पेचदारवामावर्त या दक्षिणावर्त में बने होते हैं। प्राकृतिक रूप से शंख कई तरह के होते हैं। इनके दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख और वामावृत्ति शंख प्रमुख हैं। शंखों के कई उप प्रकार भी होते हैं। हिंदूओं में शंख को धर्म का प्रतीक माना गया है। किसी भी धार्मिक अवसर पर शंख का नाद करना बेहद पवित्र माना गया है। परंतु शैव मत में शंख का पूजन वर्जित माना गया है।

शंख का महत्व

शंख का महत्व बेहद खास माना गया है। यही वजह है कि भगवान श्री विष्णु हरि के दाएं उपरी हाथ में शंख शोभायमान है। महाभारत काल में भगवान श्री कृष्ण ने समुद्र मंथन के दौरान निकला पाञ्चजन्य शंख धारण किया। इतना ही नहीं वीर अर्जुन के पास देवदत्त नामक, युधिष्ठिर के पास अनंतविजय नामक, भीष्म के पास पोंड्रिक नामक, नकुल के पास सुघोष नामक, सहदेव के पास मणिपुष्पक नामक शंख था। इन सभी के शंखों का महत्व खास था। और शक्ति भी अलग-अलग थी। यही कारण है कि शंखों की शक्ति और इनक चमत्कारों का उल्लेख वर्णन महाभारत और पुराणों में मिलता है। महाभारत में राजा विराट के एक पुत्र का नाम शंख था।

भगवान श्री कृष्ण ने केसे धारण किया पाञ्चजन्य शंख

योग, ब्रह्म विद्या के आचार्य महर्षि सादीपनि देवताओं के ऋषि थे। उन्होंने ही भगवान श्री कृष्ण, बलराम और सुदामा को शिक्षा प्रदान की। इसी आश्रम में श्री कृष्ण ने 64 कलाओं का ज्ञान हासिल किया था। गुरु ऋषि सांदीपनि ने श्री कृष्ण से गुरु दक्षिणा के रूप में अपने पुत्र को वापिस लाने की मांगी। गुरु का पुत्र शंखासुर नामक राक्षस के कब्जे में था। श्री कृष्ण गुरु का आदेश मिलने पर गुरु पुत्र को राक्षस से छुड़वाने के लिए दैत्य नगरी पहुंचे। वहां उन्होंने राक्षस को एक शंख में सोया हुआ पाया। उन्होंने दैत्य को मारकर शंख को अपने पास रख लिया। जब श्री कृष्ण को पता चला कि गुरु पुत्र तो यमपुरी चला गया है। तब श्री कृष्ण यमलोक चले गए। वहां पर यमदूतों ने उन्हें भीतर नहीं जाने दिया। तब श्री कृष्ण ने असुर से हासिल किए शंख का नाद किया। शंख के नाद से यमलोक हिलने लगा। यमराज ने खुद प्रकट हो कर श्रीकृष्ण को उनके गुरु के पुत्र की आत्मा को लौटा दिया। भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और अपने गुरु पुत्र के साथ दोबारा धरती पर लौट आए। और उन्होंने गुरु पुत्र के साथ ही पाञ्चजन्य शंख को भी गुरु को प्रस्तुत कर दिया। गुरु सादींपनि ने पाञ्चजन्य शंख  को श्रीकृष्ण को देते हुए कहा कि यह तुम्हारे लिए ही है। तब श्री कृष्ण ने गुरु से वापिस मिले इस शंख को धारण किया।

पाञ्चजन्य शंख का नाद

कहा जाता है कि गुरु सांदीपानि से मिले पाञ्चजन्य शंख को जब श्री कृष्ण बजाते थे तो उसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी। महाभारत युद्ध में इस शंख की ध्वनि से पांडव सेना में उत्साह का संचार होता था। जबकि शत्रुओं में इस धव्नि से भय फैल जाता था। माना जाता है कि इसकी ध्वनि सिंह गर्जना से भी भयानक थी। हिंदु धर्म में शंख को विजय, यश, कीर्ति का प्रतीक माना जाता है। शंख में पांच अंगुलियों की आकृति होती है। मौजूदा समय में भी पाञ्चजन्य शंख मार्किट में उपलब्ध है, लेकिन वे सभी चमत्कारिक नहीं हैं। मौजूदा समय में शंख को घर में वास्तु दोष को मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है। इससे राहु और केतु के प्रभाव को भी कम किया जाना माना जाता है।

आदि ब्रदी में आज भी संरक्षित है भगवान श्री कृष्ण का पाञ्चजन्य शंख

कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण के पास जो पाञ्चजन्य शंख था। उसकी मौजूदगी के बारे कई जानकारियां मिलती है। माना जाता है कि यह शंख आज भी कहीं मौजूद है। पहली जानकारी अनुसार पाञ्चजन्य शंख के हरियाणा के करनाल में होने के बारे में कहा जाता था।  करनाल से करीब 15 किलोमीटर से दूर पश्चिम में काछवा व बहलोलपुर गांव के समीप स्थित पराशर ऋषि के आश्रम में रखा था। परंतु यह शंख 20 अप्रैल 2013 को चोरी हो गया था। इस चोरी में हिंदु धर्म से संबंधित कई अन्य कीमती चीजें चोरी हो गई थी। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि श्रीकृष्ण का पाञ्चजन्य शंख आदि बद्री में सुरक्षित रखा है। पाञ्चजन्य शंख के बारे कहा जाता है कि इसमें फूंक एक तरफ से मारी जाती थी। जबकि आवाज पांच जगहों से  निकलती थी। इस शंख को ग्रामीणों ने बहुत बजाने की कोशिश की। परंतु कोई भी कामयाब नहीं हो सका था।

 

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