माता सीता के विवाह में इस भाई ने निभाई थी विवाह की रस्में

-कौन था वह माता सीता का भाई

प्रदीप शाही

सतयुग के बाद आए त्रेतायुग में धरती पर बढ़ चुके अधर्म, अत्याचार, हिंसा को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु हरि जी ने भगवान श्री राम के रुप में धरती पर अवतार लिया। भगवान श्री राम का विवाह मिथिला के राजा जनक की सबसे बड़ी पुत्री जानकी (देवी सीता) से हुआ। सर्वविदित है कि राजा जनक की चार पुत्रियां ही थी। उनका कोई भी बेटा नहीं था। देवी सीता भी राजा जनक को एक खेत में मिली थी। देवी सीता के विवाह में भाई की रस्मों को निभाने के लिए एक देव ने अपना योगदान दिया। कौन थे वह देव। जिन्होंने देवी सीता का भाई बन कर सभी रस्मों का पूर्ण किया था। भगवान श्री राम और देवी सीता के इस पावन विवाह में भगवान श्री ब्रह्मा जी, भगवान श्री विष्णु के अलावा अन्य सभी देवी-देवता किसी न किसी रुप में उपस्थित हुए थे। इतना ही नहीं, विवाह में ब्रह्मऋषि वशिष्ठ, ऋषि विश्वामित्र भी विशेष तौर से शामिल हुए थे। आईए, आज आपको इस रोचक प्रसंग के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं।

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देवी सीता एक खेत से मिली थी

देवी सीता को जानकी, धरती पुत्री के नाम से भी संबोधित किया था। देवी सीता राजा जनक की सबसे बड़ी बेटी थी। इसलिए उन्हें जानकी कहा जाता था। वहीं देवी सीता को एक खेत से मिलने के कारण उन्हें धरती की पुत्री के नाम से पुकारा जाता है। देवी सीता की तीन छोटी बहनें भी थी। इनका विवाह भगवान श्री राम के छोटे भाईयों भरत, लक्ष्मण व शत्रुघन के संग हुआ था। सबसे खास बात यह है कि भगवान श्री राम और जानकी (देवी सीता) का विवाह मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ था। इसलिए पंचमी का विशेष महत्व माना गया। तभी से पंचमी की पहचान विवाह पंचमी के रुप में हुई मानी जाती है।

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विवाह की रस्मों को किस देव ने स्वीकारा भाई बनना

भगवान श्री राम और देवी सीता के विवाह की रस्मों को पूरा करने के लिए जब पुरोहित जी ने फेरों के दौरान कन्या के आगे-आगे चलते हुए लावे का छिड़काव के लिए कन्या के पिता राजा जनक को कन्या के भाई को भेजने के लिए कहा तो राजा जनक संकट में आ गए। क्योंकि राजा जनक का कोई बेटा नहीं था। ऐसे में सभी उपस्थित गण आपस में चर्चा करने लग गए। इसके चलते विवाह की रस्मों में देरी होने लगी। अपनी बेटी की शादी में आए व्यवधान के चलते धरती माता भी दुखी हो गई। तभी धरती माता ने एक युवा को संकेत किया। तब एक श्याम रंग का युवक खड़ा हुआ और बोला कि वह देवी सीता के भाई की सभी रस्मों को पूर्ण करने के लिए सज्ज हैं। क्योंकि मैं इनका भाई हूं। असल में यह मंगल देव थे। जो भेष बदल कर विवाह में सम्मलित होने आए थे। देवी सीता की जन्म धरती से हुआ था। इसलिए वह धरती की पुत्री थी। जबकि मंगल का जन्म भी धरती से ही हुआ था। इसलिए देवी सीता और मंगल देव रिश्ते में भाई ही लगते थे।

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राजा जनक की समस्या का महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र ने किया समाधान

किसी अंजान पुरुष की ओर से रस्म निभाने की बात सुन कर राजा जनक ने कहा कि जिस इंसान के कुल, गोत्र व परिवार के बारे वह नहीं जानते हैं उसे कैसे अपनी बेटी का भाई स्वीकार सकते हैं। जब उन्होंने युवक को अपना परिचय देने के लिए कहा, तो मंगलदेव ने कहा कि हे, राजन मैं आपकी बेटी का भाई कहलाने के पूर्ण योग्य हूं। यदि आप मेरे बारे जानना ही चाहते हैं तो आप महर्षि वशिष्ठ और महर्षि विश्वामित्र से मेरे बारे पूछ सकते हैं।

तब राजा जनक ने महर्षि वशिष्ठ और महर्षि विश्वामित्र से पूछा। महर्षि वशिष्ठ औऱ महर्षि विश्वामित्र इस बाबत सारी बात जानते थे। इसलिए उन्होंने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। तब मंगल देव ने अपनी बहन देवी सीता के भाई के रुप में सभी विवाह की रस्मों को पूरा किया। रामायण और रामचरितमानस में इसका उल्लेख मिलता है।

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