महाबली भीम और घटोत्कच यहां खेलते थे इन विशाल गोटियों से शंतरज

-हिडिंबा के वंशज आज भी दीमापुर में करते हैं वास
कुछ लोग महाभारत को एक काल्पनिक कथा कहते हैं। परंतु इसे सच नहीं माना जा सकता है। क्योंकि महाभारत काल से संबंधित शहरों, गांवों के अस्तित्व होने के अलावा धरती में से मिले अवशेष इस बात को प्रमाणित करते हैं, कि महाभारत काल एक हकीकत था। क्या आप जानते हैं कि महाबली भीम की पत्नी हिडिंबा के वंशज आज भी नागालैंड के दीमापुर में वास करते हैं। इतना ही नहीं यहां पर आज भी शतरंज की विशाल गोटियां पड़ी हैं। जिनसे कभी महाबली भीम व उनके बेटे घटोत्कच शतरंज खेला करते थे। इन गोटियों को देख कर ही महाबली भीम व घटोत्कच के बाहुबल का अंदाजा लगाया जा सकता है। इन विशाल शतरंज गोटियों को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।

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दीमापुर में मौजूद हैं विशाल शतरंज की गोटियां
महाभारत काल की विरासत आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। नागालैंड का एक शहर दीमापुर जो कभी हिडिंबापुर के नाम से पहचाना जाता था। महाभारत काल में यहां हिडिंब राक्षस और उसकी बहन हिडिंबा रहा करते थे। यही पर हिडिंबा ने महाबली भीम से विवाह किया था। यहां रहनेवाली डिमाशा जनजाति अपने आप को महावली भीम की पत्नी हिडिंबा का वंशज मानती है। यहां आज भी हिडिंबा का का विशाल वाड़ा है। जहां राजवाड़ी में शतरंज की उंची-उंची गोटियां पड़ीं है। इनमे से कुछ अब सही ढंग से संभाल न होने के कारण खंडित हो चुकी है। यहां मान्यता है कि इन शतरंज की गोटियों से भीम और उसका पुत्र घटोत्कच दोनों शतरंज खेलते थे।

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भीम, हिडिंबा और उनका बेटा घटोत्कच
महाभारत अनुसार वनवास काल में जब पांडवों को लाक्षागृह में षडय़ंत्र के तहत जलाकर मारने की कौरवों ने साजिश की। तब वह एक सुरंग के जरिए बाहर निकल कर एक वन में चले गए। वहां हिडिंब राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था। एक दिन हिडिंब ने अपनी बहन हिडिंबा को वन में भोजन की तलाश करने के लिये भेजा। वन में हिडिंबा को महाबली भीम दिखा। जो सोए हुए अपने परिवार की रक्षा के लिए पहरा दे रहा था। राक्षसी हिडिंबा को भीम पसंद आ गया। और वो उससे प्रेम करने लगी। इस कारण वो उन सब को जीवित छोड़ कर वापस आ गई, लेकिन यह बात उसके भाई हिडिंब को पसंद नहीं आई। उसने पांडवों पर हमला कर दिया। इस लड़ाई में हिडिंब महाबली भीम के हाथों मारा गया था।
हिडिंब के मारे जाने के बाद जब पांडव वहां से आगे जाने लगे तो हिडिंबा ने पांडवों की माता कुंती से प्रार्थना करते कहा कि माता, मैंने आपके पुत्र भीम को अपने पति के रूप में स्वीकार किया है। आप लोग मुझे कृपा करके स्वीकार करें। यदि आप लोगों ने मझे स्वीकार नहीं किया, तो मैं इसी क्षण अपने प्राणों का त्याग कर दूंगी। हिडिंबा के हृदय में भीम के प्रति प्रेम की भावना देख कर युधिष्ठिर ने कहा कि हिडिंबा मैं तुम्हें अपना भाई सौंपता हूं। यह केवल दिन में तुम्हारे साथ रहा करेगा। और रात्रि को हम लोगों के साथ रहा करेगा हिडिंबा इसके लिये तैयार हो गई और भीम सेन के साथ रहने लगी। एक साल बाद हिडिंबा ने पुत्र को जन्म दिया। बच्चे को सिर पर केश न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। हिंडिंबा अपने पुत्र को पांडवों के पास ले जा कर कहा कि यह आपके भाई की संतान है। अब यह आप लोगों की सेवा में रहेगा। इतना कह कर हिडिंबा वहां से चली गई। माता कुंती ने कहा तुम मेरे वंश के सबसे बड़ा पौत्र हो। समय आने पर तुम्हारी सेवा अवश्य ली जाएगी। घटोत्कच ने कहा कि जब भी आप मुझे याद करेंगे। मैं आप लोगों की सेवा में उपस्थित हो जाउंगा। इसी घटोत्कच ने महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से लड़ते हुए वीरगति पायी थी।

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मनाली में स्थापित है हिडंबा देवी का मंदिर
हिडिंबा मूल रूप से नागालैंड की थी। पुत्र जन्म के बाद घटोत्कच को पांडवो को सौप कर वर्तमान हिमाचल प्रदेश के मनाली में आ गई । माना जाता है इसी स्थान पर उनका राक्षक्षी योनि से मुक्ति मिली। और उनका दैवीय योनि में रूपांतरण हुआ था। मनाली में देवी हिडिंबा का एक मंदिर बना हुआ है। जो कला की नजर से बेहद दर्शनीय है। मंदिर के भीतर एक प्राकृतिक चटटान है। जिसे देवी का स्थान माना जाता है। इस चट्टान पर देवी हिडिंबा के पैरों के विशाल चिह्न मौजूद है। इस चटटान को यहां पर ढूंग कहते हैं। इसलिए हिडिंबा देवी को ढूंगरी देवी भी कहा जाता है। इस चट्टान के उपर लकड़ी के मंदिर का निर्माण वर्ष 1553 में किया गया।

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प्रदीप शाही

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